एनडीटीवी के रवीश जी ने कल अमिताभ को महानालायक कहा। इसके विपरीत यही चैनल राखी सावंत और राहुल महाजन को नायक बनाने में तुले हैं। मैं कांच के टुकड़े को भी हीरा कहूं तो मेरी मर्जी, यदि मुझे हीरे को भी कांच का टुकड़ा सिद्ध करना पड़े तो यह है मेरी शक्ति। अमिताभ नायक हैं, लायक हैं या फिर नालायक हैं, यह आज के तथाकथित तानाशाह सामन्त तय करते हैं। इनकी एक नायिका सरे आम अपनी माँ को गाली देती है और दूसरा नायक पिता की अस्थि कलश को गोद में रखकर जमकर नशा करता है। दोनों का ही ये स्वयंवर कराते हैं।
इस देश की जनता का आदर्श कौन बने, यह आज टीवी चैनल तय करते हैं। एक बार शाहरूख खान ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि ‘हम तो भांड हैं, केवल अभिनय करते हैं’। अब अभिनय करने वाले लोग इस देश के नायक कैसे हो जाते हैं? फिर महानायक भी बन जाते हैं। कौन बनाता हैं इन्हें? यही टीवी चैनल। इस देश की युवा-शक्ति आज इन्हीं अभिनेताओं के पीछे पागल है। वे इन्हें अपना आयडल मानते हैं। विज्ञान का विद्यार्थी जिसे डाक्टर या इंजिनीयर बनना है भला उसका आयडल ये अभिनेता कैसे हो सकते हैं? वे इनके पसन्दीदा अभिनेता हो सकते हैं लेकिन जिनके पदचिन्हों पर या जिनके समान हमें बनना है उनको हम आयडल नहीं कहते। लेकिन ये टीवी वाले युवाशक्ति को भ्रमित करते हैं। उन्हें ऐसा ग्लेमराइज करते हैं कि सब उनके पीछे पागल हो जाते हैं।
मेरा रवीश जी से या जिनको मक्खन लगाने के लिए उन्होंने अमिताभ को महानालायक कहा, क्यो वे राहुल महाजन को अब नायक बनाने में तुले हैं? उन्होंने क्यों राखी सावंत को नायिका बनाकर पेश किया? हम तो किसी भी अभिनेता को चाहे वो अमिताभ हो या फिर और कोई, कभी भी नायक या महानायक नहीं मानते। वे केवल एक अभिनेता हैं, बस। यदि वे अपने अभिनय द्वारा किसी ऐसे मुद्दे को उठाएं जिससे सारा देश एकता के सूत्र में बंध जाए तब हम उन्हें नायक कहेंगे। जैसे पूर्व में मनोज कुमार देश भक्ति का जज्बा जगाने के लिए फिल्में बनाते थे। वे नायक थे। लेकिन यदि आज के ये नायक जो कभी किसी फिल्म के नायक बनते हैं और कभी खलनायक, उन्हें कैसे हम अपना नायक मान लें। स्वांग भरने वाले इस देश के नायक कैसे हो गए? मीडिया आज जितना चरित्र हरण कर रहा है उतना तो शायद किसी तानाशाह राजा ने भी नहीं किया होगा। आज जो भी मीडिया की कमाई का जरिया बनता है वो नायक हो जाता है और जो उनके विरोधी के पक्ष में जा खड़ा होता है वो नालायक बन जाता है। यह दोहरा चरित्र अब जनता समझने लगी है, बस देश का दुर्भाग्य तो तब समाप्त होगा जब युवा पीढ़ी समझदार बनेगी। कौन नायक है, कौन लायक है और कौन नालायक है, यह मीडिया तय नहीं करती। मीडिया का काम है जो सत्य है उसको दिखाना, बस। अपनी राय थोपना मीडिया का काम नहीं है।
19 comments:
बिलकुल सही बात कही आपने डा० अजित , आपकी बात से सहमत !
और जैसा की एक टिपण्णी में सुरेश चिपलूनकर जी ने कहा, रवीश जी को और हमारे तथाकथित सेक्युलर मीडिया को अमिताभ जी इसलिए अखरने लगे है क्योंकि अमिताभ जी ने मोदी जी का समर्थन किया
मैंम आपकी हर बात से सहमत हूँ आपने बेबाकी से इस विषय को उठाया है। सही बात है मीडिया ने अपनी सोच के साथ और अपने स्वार्थ को मुख्य रख कर हमेशा लोगों को गुमराह किया है। और बाजार्वाद के हिसाब से इनके मापडंड भी बदल जाते हैं। बहुत अच्छी पोस्ट है बधाई
बेशक रवीशजी अमिताभ को महानालायक का खिताब दे सकते हैं लेकिन अपने ही चैनल पर चलने वाली अमिताभ रामायण के खिलाफ वे प्रतिवाद नहीं कर सकते क्योंकि उसमें नौकरी का जोखिम है।
दूसरा, दोष सिर्फ मीडिया का नहीं है हम-आप भी उतना ही दोषी हैं इसे मनभर कर देखने के। हम अपना प्रतिवाद इन सड़कछाप प्रोग्रामों के खिलाफ खड़े होकर क्यों नहीं दर्ज करवाते?
आपने बिल्कुल ठीक कहा है ........... ये मीडीया वाले जिसको मर्ज़ी चाहते हैं उसे नायक और किसी नायक को खलनायक कभी भी बनाने का दंभ रखते हैं, पर अंकुश नही रखते अपने ऊपर ............ एन डी टी वी का भारत की सांस्कृति विरोध तो अब जग आम हो गया है ........
खरी खरी -शुक्रिया !
इस बेबाक विश्लेषण के लिए बधाई।
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घूँघट में रहने वाली इतिहास बनाने निकली हैं।
खाने पीने में लोग इतने पीछे हैं, पता नहीं था।
असल में हुआ यह है कि जब से मीडिया वालों ने ब्लॉग लिखना शुरु किये हैं, उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि - 1) मन की लिखें, या 2) मालिकों को खुश करने जैसा लिखें, या 3) अपने-आप को बड़ा साबित करने के लिये अपने प्रभाव के अनुसार लिखें… या 4) पद्म पुरस्कार प्राप्त होने जैसा लिखें… :) :)
इस चक्कर में मीडिया जगत के तथाकथित बड़े-बड़े नाम अपनी हँसी उड़वाये जा रहे हैं, दोहरी बातें कर-करके…
बहुत सटीक.
रामराम.
जैसी फिल्मी बातें!
वैसे ही डायलॉग!
शब्दशः सहमत हूँ आपसे....
अपसंस्कृति को ग्लेमेराइज करने में वर्तमान मिडिया ने कोई कोर कसार न उठा रखी है.....और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि सरकारी तंत्र को इससे कोई लेना देना नहीं कि जनमानस को धीमा जहर परोसने वाले देश को कहाँ लिए जा रहे हैं...
अमिताभ जैसी हस्ती को महानालायक कहना सरासर गलत है। अरे कलाकार में तो भगवान बसता है।
कोई भी कला का पुजारी ऐसी सोच नहीं रख सकता।
ऐसा नहीं हैं कि अभिनेता देश का नेता नहीं हो सकता हमारे देश मे भी हुए हैं लेकिन जिस प्रकार से आज कल के प्रायोजित कार्यक्रम हो रहे हैं उनमे केवल और केवल पैसा कमाना मकसद हैं । राखी सावंत हो राहुल महाजन सब एक ही हैं । राखी सावंत के भाई बनाए रवि किशन तो राहुल महाजन कि बहिन बन रही हैं सम्भावना सेठ यानी अपने भाई बहिन भी अब अपने नहीं हैं । मीडिया खुद इन सब को आगे लाता हैं और फिर खुद ही फ़तवा देता हैं ।
रविश कुमार और एनडीटीवी में वैसा ही रिश्ता है जी, जैसा एक मलिक और कर्मचारी में। जो रवीश अपने ब्लॉग पर लिखते हैं, वो चैनल से बहुत अलग है।
आप अमिताभ बच्चन की प्रशंसक हो सकती हैं, उनके अभिनय का मैं भी प्रशंसक हूँ, लेकिन सच से मुँह मोड़ नहीं सकता, युवा हूँ।
हो सके तो एक नजर जरूर।
राजू बन गया 'दी एंग्री यंग मैन'
बाजारवाद में ढलता सदी का महानायक
कुलवन्त जी
मेरे कहने का अभिप्राय यह था कि ये चैनल वाले राखी सावंत और राहुल महाजन जैसों को पहले तो नायक बनाते हैं और जब ये विरोधी पक्ष में जा खड़े होते हैं तब इन्हें नालायक कहते हैं। मैं किसी भी अभिनेता की प्रशंसक नहीं हूँ और न ही इन्हें नायक मानती हूँ। ये केवल अभिनेता हैं, कभी ये फिल्म में नायक बनते हैं और कभी खलनायक। कल तक अमिताभ को इन्हीं ने महानायक कहा और आज ये ही महानालायक कह रहे हैं। जैसे मीडिया का काम ही यह हो गया हो कि किसी का भी चरित्र हनन करो।
बहुत सही विषय उठाया है आपने....ऐसे कार्यक्रम दिखाने का मकसद क्या है ये भी मालूम नहीं...
सटीक विश्लेषण...बिल्कुल सहमत!
सहमत हूँ आपसे ।
बहुत सही. दो टूक बात कहने के लिये बधाई. साहित्यिक कृतियों के दिन अब लद गये, अब तो तरह तरह के फ़ूहड स्वयंवरों के दिन हैं. जब तक जनता देख रही है , ये दिखाते रहेंगेऔर कमाते रहेंगे.
नायक / नायिका के कैसे गुण और आचरण होने चाहिए इसकी विस्तृत चर्चा भरतमुनि के नाट्य शास्त्र में है। वस्तुत: नाट्य शास्त्र में किसी नाटक अथवा फिल्मी में अभिनय करने वाले पात्रों को ‘नट’ अथवा ‘नटी’ कहा जाता है । इसके अलावा अभिनेता और अभिनेत्री कहना समीचीन होगा । नायक और नायिका शब्द का प्रयोग उन उदात्त गुण समपन्न और चरित्र वाले पात्रों के लिए किया जाना चाहिए जिसमें देश और समाज को सही राह दिखाने की इच्छा शक्ति हो, नेतृत्व का गुण हो, साथ ही उनका आचरण सामाजिकों के लिए अनुकरणीय हो । ऎसा आचरण न तो आज के नटों में दिखता है और न ही नटियों में। अत: नायक और महानायक जैसे विशिष्ट शब्दों को भारत की एक अरब से अधिक जनता के ऊपर थोपना धोखाधडी है। बिना विचार मंथन किए मीडिया नाना प्रकार के विशेषणों से उन्हें अलंकृत कर जनता को गुमराह करती है। यह मीडिया द्वारा जनता के साथ किया गया छल है। आपने अच्छे मुद्दे को उठाया है। मैं आपके विचारों से सहमत हूँ। सद्भावी-डा0 डंडा लखनवी।
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