गणतन्त्र दिवस का उत्सव मनाया जा रहा है। बच्चे चबूतरे पर बैठे हैं, गाँव वाले पेड़ों के नीचे और महिलाएं अपने झोपड़े के आगे घूंघट निकालकर बैठी हैं। कुछ बच्चे पास के पक्के मकान की छत पर भी चढ़ गए हैं। विद्यालय के बच्चे आज प्रस्तुति देंगे। कोई कविता पाठ करेगा तो कोई नृत्य। सामूहिक नृत्य करने को भी बालिकाएं सज-धज कर तैयार हैं। कल तक गंदे कपड़ों में आकर बैठने वाले बच्चों के तन पर अब स्कूल की साफ धुली हुई यूनिफार्म है। कुछ छोटे बच्चों ने जरूर गंदी ही ड्रेस पहन रखी है, वो ड्रेस उसके बड़े भाई या बहन की होगी। पूरे गाँव में उत्सव का सा माहौल है।
मेरे शहर से मात्र 12 कि मी की दूरी पर बसा है एक गाँव ‘नयाखेड़ा’। इसे हमारी संस्था भारत विकास परिषद ने गोद ले रखा है और वहाँ वर्तमान में एक सिलाई केन्द्र संचालित हैं। हम स्वतंत्रता दिवस और गणतन्त्र दिवस वहाँ प्रतिवर्ष मनाते हैं। सिलाई केन्द्र के पूर्व संस्था वहाँ विद्यालय संचालित करती थी लेकिन अब वहाँ सरकारी विद्यालय खुल गया है तो हमने विद्यालय के स्थान पर सिलाई केन्द्र संचालित करने का निश्चय किया। इन दोनों राष्ट्रीय पर्वों पर हम विद्यालय के बालक-बालिकाओं को माध्यम बनाकर वहाँ उत्सव मनाते हैं। इस उत्सव में सारा गाँव ही भागीदारी करता है। इस वर्ष गाँव में पंचायत के चुनाव हो रहे हैं तो इस गणतन्त्र दिवस पर गाँव में गहमा-गहमी थी। वर्तमान सरपंच हमारे साथ मंच पर बैठे थे। मुझे बताया गया कि इस बार उनकी पत्नी सरपंच का चुनाव लड़ रही है। मैंने उनसे पूछा कि कहाँ है आपकी पत्नी? उन्होंने दूर बैठी, लम्बा घूंघट निकाले एक महिला की तरफ इशारा किया।
इतने में ही संचालक ने घोषणा की कि अब पूजा आपके सामने कविता पाठ करेगी। ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली पूजा का काव्य पाठ प्रारम्भ हुआ। पूजा ने एक लम्बी कविता बड़े ही जोश के साथ बोली। कभी यही लड़की हमारे विद्यालय में ही पढ़ती थी और आज इतने जोश के साथ कविता पाठ कर रही थी। अटक-अटक कर पढ़ने वाले बच्चे कब इतने होशियार हो गए? लेकिन मन को बहुत अच्छा लगा। मैंने गाँव वालों को अपने संदेश में यही कहा कि हमें हर घर में पूजा चाहिए।
कुछ ही देर में बिजली चले गयी। नृत्य करने को तैयार बच्चे मायूस होने लगे। हमने हमारे पति से कहा कि आप गाड़ी को आगे लगाकर उसका टेप रिकार्डर चालू कर दीजिए। काम हो गया और बच्चों ने अपना नृत्य प्रारम्भ कर दिया। लेकिन इस सबमें नृत्य करने का स्थान बदल गया। एक दस वर्षीय बच्ची मेरे पास आ खड़ी हुई। हमारी ही एक सदस्य ने मुझे बताया कि यह नन्हीं बच्ची सिलाई मशीन चला लेती है और बड़ी अच्छी सिलाई करती है। एक और लड़की भी पास आ गयी, उसने घाघरा, ब्लाउज पहन रखा था और उसने बताया कि उन सबकी उसने ही सिलाई की है। मन को तृप्ति सी होने लगी इस नन्हीं बालिकाओं को देखकर।
तीन विभिन्न आयु की स्त्री-शक्ति मेरे सम्मुख थी। एक सरपंच का चुनाव लड़ रही थी लेकिन वो घूंघट में थी, दूसरी अठारह साल की नौजवान लड़की, जो धडल्ले से कविता पाठ कर रही थी और तीसरी दस वर्ष की बालिका जो अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के बल पर सिलाई सीख रही थी। आज गमेरा लाल की पत्नी सरपंच बनेगी, सारे ही काम गमेरा लाल ही करेगा लेकिन शहर से जब अफसर आएंगे तब पेमली बाई ही उनसे बात करेगी। धीरे-धीरे गमेरा की जगह पेमली ले लेगी। घूंघट चले जाएगा और महिला में हिम्मत का संचार होगा। जब पूजा बड़ी हो जाएगी और वह नन्हीं सी बच्ची कुसुम बड़ी हो जाएगी तब तो गाँव की तस्वीर ही बदल जाएगी, महिलाओं का स्वरूप ही बदल जाएगा।
गाँव तेजी से करवट बदल रहे हैं। महिलाएं तेजी से सोपान चढ़ रही हैं। आत्मविश्वास लौट रहा है। अब पढ़ी-लिखी पत्नी के सामने पति शराब पीकर आने की हिम्मत नहीं करेगा और ना ही उसपर हाथ उठाने की जुर्रत। पत्नी के हाथ में भी पैसा होगा। वह भी शहर जाकर मीटींग में भाग लेगी। आज पेमली सरपंच बनेगी तो कल पूजा विधायक और कुसुम शायद मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या शायद राष्ट्रपति भी।
9 comments:
आपकी पोस्ट में आशा की किरण नज़र आती है ....... काश देश के हर गाँव में कोई पमली पैदा हो सके ........ गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ........
अजित जी,
हर गांव में ऐसे ही पूजाओं की गिनती बढ़ने लगे तो देश का आज तो सुधरेगा ही, आने
वाला कल भी इस बदलाव के लिए हमेशा ऋणी रहेगा...
जय हिंद...
सुन्दर आलेख अजित जी।
आज हमारे गावों में इसी तरह की उन्नति की ज़रुरत है।
और चेतना आ रही है।
मैम आपने बिलकुल सही कहा है औरत की दशा बहुत तेजी से बदल रही है। आपकी पोस्ट मे आने वाले समय के लिये जो सकारात्मक भाव लिये है उसकी इन लोगों को बहुत जरूरत है जरा सी हल्ला शेरी कई ऐसी लड्कियों का रास्ता साफ करेगी । धन्यवाद और शुभकामनायें
सुन्दर आलेख
सकारात्मक भाव लिये है पोस्ट
सुन्दर आलेख
सकारात्मक भाव लिये है पोस्ट ........ गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ........
सुन्दर आलेख
सकारात्मक भाव लिये है पोस्ट
mpsahityaparishad@gmail.com
आपका पोस्ट पढ़कर तो आनन्द आ गया!
इसे चर्चा मंच में भी स्थान मिला है!
http://charchamanch.blogspot.com/2010/01/blog-post_28.html
गाँव तेजी से करवट बदल रहे हैं। महिलाएं तेजी से सोपान चढ़ रही हैं। आत्मविश्वास लौट रहा है।
अजित जी,
पढ़कर बहुत अच्छा लगा. भारत विकास परिषद जैसी संस्थाओं को नमन!
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