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Sunday, October 17, 2010

ब्‍लागिंग में आना और कार्यशाला में पहचाना एक-दूसरे को – अजित गुप्‍ता

एक दूसरे को समझने की ललक मनुष्‍य में हमेशा ही रहती है, बल्कि कभी-कभी तो अन्‍दर तक झांकने की चाहत जन्‍म ले लेती है। लेखन ऐसा क्षेत्र है जहाँ हम लेखक के विचारों से आत्‍मसात होते हैं तो यह लालसा भी जन्‍म लेने लगती है कि इसका व्‍यक्तित्‍व कैसा होगा? आज से लगभग 6 वर्ष पूर्व नेट पर हिन्‍दी कविता संग्रह नामक एक समूह से परिचय आया, लेकिन ज्‍यादा लम्‍बा साथ नहीं रह पाया। इसके बाद हिन्‍दी भारत समूह के साथ कविता वाचक्‍नवी जी से परिचय हुआ, मात्र परिचय ही। ब्‍लाग के बारे में मेरी तब तक कोई विशेष जानकारी नहीं थी। आज से लगभग 3 वर्ष पूर्व मेरे पास एक फोन आया, नम्‍बर अमेरिका का था और अपरिचित था। सामने से एक मधुर आवाज सुनायी दी और उन्‍होंने कहा कि आपका मधुमती में सम्‍पादकीय पढ़ा और मैं आपकी हो गयी। सामने फोन पर मृदुल कीर्ति जी थी। उसके बाद उनसे बात का सिलसिला चल पड़ा और उन्‍होंने हिन्‍दयुग्‍म के पोडकास्‍ट कवि सम्‍मेलन के बारे में बताया। पोडकास्‍ट सुनते हुए एक दिन अकस्‍मात ही एक बटन दब गया और सामने था कि अपना ब्‍लाग बनाएं। जैसे-जैसे निर्देश थे मैं करती चले गयी और एक ब्‍लाग तैयार था। लेकिन पोस्‍ट कैसे लिखते हैं और कैसे लोग इसे पढ़ते हैं, कुछ पता नहीं था। कविता जी से बात हुई, उन्‍होंने बताया कि इसे चिठ्ठा जगत और चिठ्ठा चर्चा के साथ इस प्रकार जोड़ लें। मैंने उनके निर्देशानुसार अपना ब्‍लाग जोड़ लिया। जोड़ते ही टिप्‍पणियां आ गयी और हम हो गए एकदम खुश। धीरे-धीरे पोस्‍ट लिखने का और टिप्‍पणी करने का सिलसिला आगे बढ़ा। लेकिन किसी को भी प्रत्‍यक्ष रूप से नहीं जानने का मलाल मन में रहता था। कविता जी से कई बार फोन पर बात भी हुई और उनके बारे में जिज्ञासा ने जन्‍म भी लिया।
अचानक ही वर्धा में ब्‍लागिंग की कार्यशाला में जाने का अवसर मिल गया और तब लगा कि चलो कुछ लोगों से परिचय होगा। सिद्धार्थ जी से भी हिन्‍दी भारत समूह के कारण परिचय हुआ था। वे भी बड़े अधिकारी हैं इतना ही मुझे पता था। जब तय हो गया कि वर्धा जाना ही है तो एक दिन सिद्धार्थ जी से पूछ लिया कि कौन-कौन आ रहे हैं? मुझे तब तक मालूम हो चुका था कि इन दिनों कविता जी भारत में हैं। तो मेरी उत्‍सुकता उनके बारे में ही अधिक थी। सिद्धार्थ जी से पूछा तो उन्‍होंने कहा कि वे तो एक सप्‍ताह पहले ही आ जाएंगी। साथ में उन्‍होंने बताया कि श्री ॠषभ देव जी भी आएंगे। ॠषभ जी को मैं ब्‍लाग पर पढ़ती रही हूँ और उनके लेखन की गम्‍भीरता से भी वाकिफ हूँ। एक और नाम बताया गया वो नाम था अनिता कुमार जी का। यह नाम मेरे लिए अपरिचित था तो मैं तत्‍काल ही उनके ब्‍लाग पर गयी तो वहाँ कुछ भजन लगे हुए थे। एक छवि बन गयी।
अब हम वर्धा में फादर कामिल बुल्‍के छात्रावास के सामने थे और हमारे सामने थे सिद्धार्थ जी। सिद्धार्थ जी को एक सलाह कि वे अपने ब्‍लाग पर तुरन्‍त ही अपना फोटो बदलें। इतने सुदर्शन व्‍यक्तित्‍व के धनी का ऐसा फोटो? किस से खिचवा लिया जी? हम चाहे कैसे भी हो, लेकिन फोटो तो अच्‍छा ही लगाते हैं। लेकिन अभी तो कई आश्‍चर्य हमारे सामने आने शेष थे। सामने से जय कुमार जी आ गए, वही जी ओनेस्‍टी वाले। सारी कार्यशाला में इतना बतियाते रहे कि लगा कि कोई शैतान बच्‍चा कक्षा में आ गया है। भाई हमने तो आपकी और ही छवि बना रखी थी। दिमाग पर इतनी जल्‍दी-जल्‍दी झटके लग रहे थे कि सामने ही अनिता कुमार जी दिखायी दे गयी। बोली कि मैं अनिता कुमार। अब बताओ क्‍या व्‍यक्तित्‍व है, एकदम धांसू सा और ब्‍लाग पर लगा रही हैं भजन? हमारे दिमाग की तो ऐसी तैसी हो गयी ना।
लेकिन हमें तो मिलने की उत्‍सुकता थी सर्वाधिक कविता जी से, तो सामने ही कुर्सी पर बैठी थी, हमने झट से उन्‍हें पहचान लिया। भाई उनके बालो का एक स्‍टाइल जो है। बहुत ही आत्‍मीयता से मिलन हुआ और खुशी जब ज्‍यादा हो गयी तब मालूम हुआ कि हम एक ही कक्ष में रहने वाले हैं। कविता जी पूरे समय जिस तरह चहचहाती रहीं उससे लग ही नहीं रहा था कि मेरे कल्‍पना की कविता जी हैं। मेरा संकोच एकदम से फुर्र हो गया। कुछ देर बाद ॠषभ देव जी से भी सामना हो गया और मैंने अपना आगे बढ़कर परिचय कराया तो वे बड़ी सहजता से बोले कि मैं तो आपको जानता हूँ। दो दिन तक कई बार उनके साथ बैठना हुआ और लगा कि ब्‍लाग से निकलकर कोई दूसरा ही व्‍यक्तित्‍व सामने आ गया है। या उस परिसर का ही ऐसा कमाल होगा कि सभी लोग अपनी गम्‍भीरता को बिसरा चुके थे। बहुत ही आत्‍मीयता और बहुत ही सहजता।
अब बात सुनिए सुरेश चिपनूलकर जी की, अरे क्‍या छवि बना रखी है? खैर अब शायद उन्‍होंने ब्‍लाग की फोटो तो बदली कर दी है, ऐसा कहीं पढ़ा था। मजेदार बात तो यह है कि वे स्‍वयं फोटोग्राफर है और ऐसी फोटो? उन्‍हें शायद पहले देख लिया होता तो उनके गम्‍भीर आलेखों पर इतनी गम्‍भीरता से विश्‍वास ही नहीं किया होता। कहने का तात्‍पर्य है कि एकदम युवा, सुदर्शन और हँसते रहना वाला व्‍यक्तित्‍व। बात चली है तो अनूप शुक्‍ल जी की हो ही जाए। मेरा उनसे परिचय नहीं था, लेकिन वहाँ देखकर मुझे वे एक जिन्‍दादिल इंसान लगे। प्रवीण पण्‍ड्या जी के लिए बताया गया कि वे कल आएंगे। खैर वे आए और फिर दिमाग की बत्ती लप-झप करने लगी। इतने युवा? लेकिन कठिनाई यह है कि उनका लेखन इतना परिपक्‍व है कि उन्‍हें तुम से सम्‍बोधित करने का साहस नहीं हो रहा।
मुझे लगता था कि ब्‍लाग जगत में युवा कम हैं लेकिन यह क्‍या? यहाँ तो जिसे देखो वो ही युवा है, ऐसा लगा कि मैं ही सबसे अधिक बुजुर्ग हूँ। एक और दिलचस्‍प व्‍यक्तित्‍व यशवन्‍त। रात को आलोक धन्‍वा जी कहीं घूमकर आए थे उनके साथ यशवन्‍त भी थे। आलोक जी बड़े प्‍यार से कहने लगे कि तुम कुछ खाना खा लो। यशवन्‍त बोले कि नहीं मुझे नहीं खाना। स्‍नेहिल पिता की तरह ही वे फिर बोले कि अरे तुमने कुछ नहीं खाया है, जाकर कुछ तो ले लो। लेकिन यह क्‍या, यशवन्‍त जी उठे और सीधे ही आलोक जी के चरणों में ढोक लगा दी, कि मुझे नहीं खाना। कुछ देर बाद ही यशवन्‍त गाने के मूड में थे और अपनी धुन में राग छेड़ रहे थे। मुझे लगा कि इस नवयुवक के अन्‍दर जितना तेज है उसे अभी मार्ग नहीं मिल रहा है उद्घाटित करने का। निश्चित रूप से यह एक क्रान्ति लाएगा। फिर भी मुझे मलाल रहा कि मैं काश उसे और समझ पाती।
इसी कड़ी में एक और नाम है संजय बेंगाणी जी का। वे बोले कि मेरा बेटा मुझसे लम्‍बा निकल चुका है। भाई क्‍या बात है? इतनी सी उम्र अभी लग रही है और ये तो इतने बड़े बेटे की भी बात कर रहे हैं? ऐसे ही युवा हस्‍ताक्षरों में विवेक सिंह, हर्षवर्द्धन जी और गायत्री थे। बस थोड़ा-थोड़ा ही परिचय आया। संजीत त्रिपाठी और डॉ. महेश सिन्‍हा जी तो स्‍टेशन से ही साथ थे तो पहला परिचय उन्‍हीं से आया। अविनाश वाचस्‍पति जी रविन्‍द्र प्रभात जी अपने काम की धुन वाले व्‍यक्ति लगे। और हाँ जाकिर अली रजनीश और शैलेष भारतवासी की बात को कैसे भूल सकती हूँ, जाकिर अली जी के ब्‍लाग को तो मैं साँप की छवि से ही जानती थी और शैलेष तो हिन्‍दयुग्‍म के कारण पूर्व परिचित थे। दोनों ही एकदम शान्‍त स्‍वभाव के लग रहे थे, लेकिन जो शान्‍त दिखते हैं उनमें उर्जा बहुत होती है। प्रियंकर पालीवाल जी और अशोक मिश्र जी से पहला परिचय था तो अभी उनके बारे में लिखने में असमर्थ हूँ। अब बात करें रचना त्रिपाठी की। मैं तो एक ही बात कहूंगी कि ऐसी पत्‍नी सभी को मिल जाए तो इस देश में न जाने कितने सिद्धार्थ सिद्ध हो जाएं। समय बहुत कम था, इसलिए अभी जानना और समझना बहुत शेष है। यह तो आगाज भर था, लेकिन अब ब्‍लाग पढ़ते समय अलग ही भाव आने लगे हैं। इसलिए जितने भी सक्रिय ब्‍लागर हैं उनसे और मिल लें तब देखिए ब्‍लागिंग का आनन्‍द और ही कुछ होगा। मैंने आप सबके बारे में जाना हो सकता है कि मेरे बारे में भी कोई राय बनी होगी? तो सुनो साथियों, राय कैसी भी बना लेना बस स्‍नेह बनाए रखना। हम इस ब्‍लाग जगत में नए विचारों से अवगत होने आए हैं तो आप लोगों से मिलकर अच्‍छा लग रहा है और नवीन विचार भी जान रहे हैं।