हमारा जमाना भी क्या जमाना था! बचपन में पाँच साल
तक घर में ही धमाचौकड़ी करो और फिर कहीं स्कूल की बात माता-पिता को याद आती थी।
स्कूल भी सरकारी होते थे और बस घर में कोई भी जाकर प्रवेश करा देता था। हमारे साथ
भी यही हुआ और हमारी उम्र के सभी लोगों के साथ कमोबेश यही हुआ है। पिताजी ने एक
भाई को कह दिया कि इसका भी स्कूल में नाम लिखा दो, भाई की अंगुली पकड़कर हम चल दिये
स्कूल। हेडमास्टर/मास्टरनी ने कहा कि फार्म भरो। फार्म में पूछा गया कि जन्मतारीख
क्या है? अब भाई को कहाँ याद की जन्मतारीख क्या है! पहले की तरह हैपी बर्थडे का
रिवाज तो था नहीं बस माँ ने बताया कि फला तिथि पर हुई थी। भाई को जो याद आया वह
लिखा दिया गया। तारीख भी और वर्ष भी। आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा! हमारी
पढ़ाई शुरू हो गयी, एक जन्म तारीख हमारी भी लिख दी गयी, कागजों पर। लेकिन जब दसवीं
कक्षा में पहुँचे तब पता लगा कि हम दसवीं की परीक्षा नहीं दे सकते क्योंकि उम्र कम
है। पिताजी पढ़ाई के प्रति जागरूक थे तो आनन-फानन में नए कागजात मय जन्मपत्री बनाई
गयी और अब हमारी जन्म तारीख बदल गयी।
माँ कहती कि तुम्हारा जन्म देव उठनी ग्यारस को
हुआ है और स्कूल कहता कि सितम्बर में हुआ है। जैसे-जैसे हम बड़े हो रहे थे,
जन्मदिन मनाने की प्रथा भी बड़ी हो रही थी। हमें लगता कि हम तो माँ ने जो बताया है
उसे ही जन्मदिन मानेंगे लेकिन स्कूल में जो दर्ज था लोग उसी दिन बधाई दे देते।
इतना ही नहीं तिथि तो अपनी गति से आती और अंग्रेजी कलेण्डर से आगे-पीछे हो जाती,
अब तिथि और तारीख में भी झगड़ा होने लगा! हमने फिर पंचांग को सहारा लिया और असली
तारीख ढूंढ ही डाली। वास्तविक जन्मपत्री भी मिल गयी तो तारीख पक्की हो गयी।
लेकिन कठिनाई यह है कि सरकारी कागजों में जन्म
तारीख कुछ और है और हमारे मन में कुछ और! सरकारी कागजों की तारीख याद रहती भी
नहीं, लेकिन कभी-कभी अचानक से कोई कह देता है कि जन्मदिन की बधाई! तो हम बगलें
झांकने लगते हैं कि आज? आपके साथ भी होता ही होगा। कल ऐसा ही हुआ, चुनाव आयोग का
बीएलओ आया, उसने कहा कि मतदाता सूची आनलाइन हो रही है तो आप बदलाव कराने हो वे करा
सकती हैं, जन्म तारीख की जब बात आयी तो ध्यान आया कि यहाँ तो सरकारी ही लिखवानी
है। मैंने बताया कि 30 सितम्बर तो वह युवा एकदम से बोल उठा कि अभी से जन्मदिन की बधाई
दे देता हूँ। मैं चौंकी, लेकिन मुझे ध्यान आ गया और उसकी बधाई स्वीकार की।
ऐसी ही एक
बार अमेरिका के इमिग्रेशन ऑफिसर के सामने हुआ। उसने आने का कारण पूछा,
मैंने कहा कि बेटे से मिलने आयी हूँ। फिर वह बोला कि ओह आपका जन्मदिन सेलीब्रेट
होने वाला है, मैं एक बार तो चौंकी लेकिन दूसरे क्षण ही मुझे ध्यान आ गया और उसकी
हाँ में हाँ मिलाकर आ गयी। यदि मुझे तारीख का पता नहीं होता तो शायद वह मुझे वापस
भेज देता कि कागजों में गड़बड़ है।
लेकिन ठाट भी हैं कि मैं जब चाहे बधाई स्वीकार कर
लेती हूँ, ज्यादा सोचने का नहीं। कौन से जन्मदिन पर तीर मारने हैं! ना तो हम अनोखे
लाल हैं जो हमने धरती पर आकर किसी पर अहसान किया है और ना ही हमारे जाने से धरती
खाली हो जाएगी! लेकिन जन्मदिन मनाते समय एहसास जन्म लेता है कि चलो एक दिन ही सही,
कोई हमें विशेष होने का अवसर तो देता है। नहीं तो हमारे आने की सूचना थाली बजाकर
भी नहीं दी गयी थी और ना ही किन्नर आए थे नाचने। लेकिन माँ बहुत खुश थी, पिताजी भी
खुश थे। हम उन्हीं की खुशी लेकर बड़े होते रहे और अब अपने जमाने की रीत के कारण
दो-तीन जन्मदिन मना लेते हैं। सोच लेते हैं कि क्या कुछ अच्छा कर पाए या यूँ ही
बोझ बढ़ाते रहे। अभी बधाई मत देना, अभी जन्मदिन दूर है।