घर में हम क्या करते हैं? या तो आपस में प्यार
करते हैं या फिर लड़ते हैं। जब भी शान्त सा वातावरण होने लगता है, अजीब सी घुटन हो
जाती है और हर व्यक्ति बोल उठता है कि बोर हो रहे हैं। हमारे देश का भी यही हाल
है, कभी हम ईद-दीवाली मनाने लग जाते हैं और कभी हिन्दुस्थान-पाकिस्तान करने पर उतर
आते हैं। दोनों स्थितियों में ही ठीकठाक सा लगता है लेकिन जैसे ही शान्ति छाने लगती है, बस हम बोर होने लगते
हैं। फिर कहते हैं कि कुछ और नहीं तो क्रिकेट ही करा दो। क्रिकेट करा दिया लेकिन
हराना तो पाकिस्तान को है, कितनी बार हराएंगे! जैसे ही मौका मिला फिर से हरा दिया।
हम भारतीय भी अपनी ताकत भी दिखा देते हैं और
सामने वाले को छोड़ भी देते हैं। हमारे अन्दर माफ करने का भाव कूट-कूटकर भरा है,
दुश्मन को चारों खाने चित्त करके, उसके सीने पर तलवार रखकर, बोल देते हैं कि जा
माफ किया। दुश्मन फिर आ टपकता है, हम फिर माफ कर देते हैं। समस्या को जड़ से खत्म
नहीं करते। लेकिन जब कोई समस्या को उखाड़ने की कोशिश करता है तो अपनी नाराजी प्रगट
कर देते हैं। हमारी क्रिकेट टीम ने कहा कि ना रहेगा बाँस और ना बजेगी बांसुरी, तो
समस्या खत्म कर दी। अब हम सब कुलबुलाए जा रहे हैं कि मजा ही नहीं आया। समस्या खत्म तो हम बोर!
हमने सारी बाते कर लीं, हर पहलू पर बात कर ली,
लेकिन हमने इंग्लेण्ड को अपनी ताकत दिखाकर माफ कर दिया इसपर बात नहीं की। खेल ही
खेल में कोई 300 रन कैसे बना सकता है! तीन-तीन मेडन ओवर डालकर, एक भी छक्का लगाए
बिना 300 रन बनाना, हँसी खेल तो नहीं था! लेकिन हमने अंग्रेजों के सीने पर तलवार
रख दी और कहा की माफ किया।
खेल दोनों के बीच चल रहा था लेकिन सफाया खरपतवार
का हो गया। जब मैदान ही साफ हो गया तो हमारा बोर होना लाजिमी ही है ना! सुबह उठकर
जब तक हम रोज दुश्मन को गाली ना दें लें, तब तक चाय तक हजम नहीं होती, अब बेकार
में ही बोर हो रहे हैं। बोर होते-होते हम गलियों में ही डण्डे चलाने लगे,
तोड़-फोड़ मचाने लगे। हमारे देश में तो खुद ही हिन्दुस्तान-पाकिस्तान मचा है, हमें
सीमा पार जाने की जरूरत ही नहीं है, जब भी बोर होते हैं, यहाँ ही लठ्मलठ्ठा हो
जाते हैं।
सरकारें कहती हैं कि छोटी-मोटी लड़ाई है, दो दिन
में चुप बैठ जाएंगे लेकिन हम कहते हैं कि लड़ाई इस पार और उस पार की है, सरकारों
को कुछ करना ही पड़ेगा। हम फेस बुक पर एक स्टेटस को कॉपी करते हैं और जाकर मन्दिर
की लाइन में खड़े हो जाते हैं। हम वर्जिश तक नहीं करते कि कभी हमें भी लाठी उठाना
पड़े तो तैयारी तो कर लें, लेकिन नहीं!
क्रिकेट टीम ने दरियादिली नहीं दिखायी तो हम रूठ
गये, दरियादिली दिखाकर जीत जाते तो भी नाराज हो जाते, कहते कि क्या जरूरत थी? असल
में हम प्यार करना तो भूल ही चुके हैं, हम
जब अपनों से ही प्यार नहीं कर पाते तो दूसरों से कहाँ कर पाएंगे! लड़ाई करने
की हिम्मत भी खो चुके हैं बस तू बचा तू बचा का खेल खेलते हैं।
जब सरकार सेना को आदेश देकर सर्जिकल स्ट्राइक करा
देती है तो ताली बजा लेते हैं, नहीं करा पाती तो बोर हो जाते हैं। बोर होते हैं तो
गाली देने लगते हैं कि साले निकम्मे हैं। खुद कुछ नहीं करते। अभी देश में ऐसा ही
माहौल है, राजनेता संसद में चीर फाड़ कर रहे हैं, सेना सीमा पर लेकिन हम यहाँ
फेसबुक पर चिल्ला रहे हैं कि सरकारें कुछ
नहीं करती।
वे भीड़ बनकर निकल जाते हैं अपने घरों से और तुम दुबक
जाते हों, अपने घरों में। कुछ ना कर सको तो कम से कम मौहल्ला समिति ही बना डालो,
कुछ दण्ड पेल लो, वर्जिश कर लो। थोड़ा त्याग तो कर लो मेरे भाई। कमा-कमाकर क्यों
कठफोड़वे जैसा आचरण कर रहे हो, कमाना बन्द करो और सुरक्षित रहना शुरू करो। कबीले
ही कबीले खड़े कर दो, फिर देखना कौन तुम्हारे मन्दिर की ओर झांकने की हिम्मत करता
है!
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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