यह ब्लेकमेलिंग नहीं तो क्या है? खुले आम हो रही
है ब्लेकमेलिंग, सबसे ज्यादा मीडिया कर रहा है ब्लेकमेलिंग। कई दिन पुराना
साक्षात्कार कल सुना, मीडिया की एक पत्रकार मोदीजी से प्रश्न करती है कि आपने
मुस्लिमों के लिये क्या किया, क्यों आपसे मुस्लिम दूरी बनाकर रखते हैं?
मोदीजी ने उत्तर दिया – एक घटना बताता हूँ जब मैं
मुख्यमंत्री था – सच्चर कमेटी के बारे में मीटिंग थी। मुझसे यही प्रश्न पूछा गया।
मैंने कहा कि मैंने मुस्लिमों के लिये कुछ नहीं किया, लेकिन साथ में यह भी बता देता हूँ कि मैंने हिन्दुओं के लिये भी
कुछ नहीं किया। मैंने गुजरात के 5 करोड़ नागरिकों के लिये किया है।
यह प्रश्न बार-बार दोहराया जाता है, अब मुझे
बताइये कि ये ब्लेकमेल नहीं है तो क्या है? अकेले किसी के लिये कोई भी शासक क्यों
कुछ करेगा? यदि किसी के लिये करना पड़े तो वह कोई दवाब है जैसे बलेकमेल में होता
है। यह दर्शाता है कि शासक हमें विशेष घोषित करे, यह सिद्ध करे कि उनका सम्प्रदाय
शेष सम्प्रदाय से विशेष है। कोई भी शासक किसी भी सम्प्रदाय का सम्मान करे लेकिन
उसका वेश धारण करके दूसरे सम्प्रदायों को गौण बताने की कोशिश करने की बाध्यता
ब्लेकमेल नहीं है तो क्या है?
आखिर यह ब्लेकमेल की परम्परा कहाँ से और कब
विकसित हुई? इकबाल और जिन्ना के सम्मिलित प्रयासों से यह शुरू हुई। अंग्रेज देश को
565 रियासतों में बांटना चाहते थे लेकिन सरदार पटेल के कारण यह सम्भव नहीं हो पा
रहा था तो दो भागों में ही बाँट दिया। जिन्ना और इकबाल ने ब्लेकमेल की परम्परा
शुरू की और इसे गाँधी और नेहरू ने अंजाम दिया।
एक बार धर्म के नाम पर ब्लेकमेलिंग शुरू होकर देश
का बँटवारा हो गया तो यह परम्परा मुस्लिमों की विरासत बन गयी। हम विशेष है, केवल
हमारे लिये ही सोचो, हम हज यात्रा पर जाएं तो हमें सब्सिडी दो, हमें नवाज पढ़ने की
विशेष छुट्टी मिले, हमें जनसंख्या वृद्धि की छूट मिले, हमें टीकाकरण से छूट मिले,
हमें बहुविवाह की छूट हो, आदि आदि अनन्त छूट इसी का हिस्सा रही। प्रशासन ब्लेकमेल
होता रहा और ब्लेकमेलिंग की आदत सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती रही। आखिर मोदीजी ने
लगाम लगाई। वे बोले कि मैं यदि गैस कनेस्शन दे रहा हूँ तो सभी को दे रहा हूँ, मैं
यदि जनधन योजना में खाते खोल रहा हूँ तो सभी के खोल रहा हूँ, मैं यदि आयुष्मान
योजना में स्वास्थ्य बीमा कर रहा हूँ तो सभी के लिये कर रहा हूँ तो ऐसे में किसी एक
सम्प्रदाय के लिये ही करूँ यह स्वीकार नहीं। यह देश यदि धर्मनिरपेक्ष है तो एक
सम्प्रदाय के लिये किसी योजना को इंगित करना संविधान के विरोध में जाएगा।
इसी ब्लेकमेलिंग के चलते रौल विंसी की हालत ना घर
की रही और ना घाट की रही। उसे कभी अपना नाम राहुल रखना पड़ता है कभी रौल विंसी। वह
आखिर दम ठोक कर क्यों नहीं कह पाता कि वह फिरोज खान का पोता है, उसकी माँ ईसाई है।
वह कभी जनेऊ धारण कर लेता है, कभी टोपी पहन लेता है। रौल विंसी की ही तरह हर नेता
इस ब्लेकमेलिंग का शिकार होता है। उसे मजबूर किया जाता है कि तुम्हें हमारे लिये
ही बोलना होगा, हमारे परिधान पहनने होंगे।
मुझे गर्व है कि देश में एक नेता तो ऐसा आया
जिसने इस ब्लेकमेलिंग को सिरे से नकार दिया। उसने कहा कि मेरे लिये सारे देशवासी
एक हैं। ना मैं किसी का लिबास पहनूगा और ना ही किसी के लिये विशेष रियायत घोषित
करूंगा। बस इस देश को ऐसा ही नेता चाहिये था। जिस दिन विशेष-विशेष का खेल और उससे
उपजा ब्लेकमेल इस देश से मिट जाएगा, सारे देश में अमन चैन आ जाएगा। इसलिये मुझे
मोदी पसन्द है, जो सीना चौड़ा करके कहते हैं कि ना मैं मुस्लिम के लिये काम करता
हूँ और ना ही हिन्दू के लिये काम करता हूँ, मैं तो देश की समस्त जनता के लिये काम
करता हूँ। सबका साथ – सबका विकास।
7 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (10-05-2019) को "कुछ सीख लेना चाहिए" (चर्चा अंक-3331) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को सादर नमन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
सार्थक लेख
आवश्यक सूचना :
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शास्त्रीजी आभार।
सेंगर जी आभारी हूँ।
मालती मिश्राजी आभार।
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