आज सुबह से ही मन अपने अन्दर बसी माँ को ढूंढ रहा
है। ढूंढते-ढूंढते कभी अपनी माँ सामने खड़ी हो जाती है, कभी अपनी बेटी सामने होती
है तो कभी अपनी बहु सामने आ जाती है। तीन पीढ़ियों की तीन माँ की कहानी मेरे अन्दर
है। एक माँ थी जिसे पता ही नहीं था कि दुलार क्या होता है! बस वह काम में जुती
रहकर, बेटी
को डर सिखाती थी। पिता का डर, भाइयों का डर, समाज का डर, दुनिया का डर, हव्वे का
डर, भूत का डर। जितने डर माँ ने सिखाए उतने डर तो समय ने भी नहीं सिखाए। इस डर में
दुलार कहीं खो जाता था। बस हम ही कभी उसके पेट
पर तो कभी पल्लू से लिपट जाया करते थे और हो जाता था दुलार। वह दौर ही डर
का था, पिता घर में आते और सारा घर अनुशासन में आ जाता। ऐसा पता ही नहीं चलता कि
अभी कुछ समय पहले तक यहाँ कितनी धमाल हुई है, लेकिन पिता के आने पर सबकुछ शान्त।
आज की माँ और तब की माँ में कोई समानता नहीं है। प्यार चुप था, मुखर नहीं था।
लड्डू बनते थे, हलुआ बनता था लेकिन ढिंढोरा नहीं पिटता था कि तेरे लिये बनाया है।
ना माँ रोटी का कौर लेकर हमारे पीछे भागती थी और ना ही सोते समय लौरी सुनाती थी,
बस कहानियाँ खूब थी। कभी राजकुमार की कहानी तो कभी चिड़िया की कहानी तो कभी ढोंगी
बाबा की कहानी। बस जो भी दुलार था, यही था।
एक पीढ़ी गुजर गयी, मेरी पीढ़ी आ गयी। कुछ ज्यादा
शिक्षित। बच्चों का मन समझने की पैरवी करती शिक्षा और प्रयोगों से लैस। तब नौकरी
करती माँ सामने खड़ी थी, कितना समय किसको देना है, हिसाब-किताब रखती माँ थी।
बच्चों की दुनिया माँ के इर्द-गिर्द रहने लगी, अब माँ ही दोस्त थी, माँ ही शिक्षक भी थी। मेरे जैसी
माँ सबकुछ सुनती, बच्चे स्कूल से आते ही ढेर सारी बातों का पिटारा साथ लाते, एक-एक
बातों को बताने की जल्दी करते, माँ चुपके से उनका मन पढ़ लेती। हमने माँ से कुछ
नहीं मांगा था लेकिन अब मुझसे बहुत कुछ मांगा जाता था। यही अन्तर में देख रही थी। कितना
देना है, कितना नहीं देना है, अब मुझे यह अघिकार मिलने लगा था। मेरी माँ के पास भोजन
का अधिकार था, कितना मिष्ठान्न देना है, कितना नहीं देना लेकिन मेरी पीढ़ी के पास
बाजार के अधिकार भी आ गये थे। पूर्ण अधिकार वाली माँ के रूप में मैं खड़ी थी। मैं
खुश थी कि मैं बच्चों को संस्कारित कर रही हूँ, उनके पीछे माँ का साया खड़ा है,
इसलिये कोई डर उनके जीवन में आ ही नहीं सकता। मेरी माँ डर से परिचय करा रही थी और मैं
डर को भगा रही थी। शायद दो पीढ़ियों का यही मूल अन्तर है।
आज तीसरी पीढ़ी मेरे सामने खड़ी है, मेरी बेटी के
रूप में और मेरी पुत्रवधु के रूप में। माँ का गौरवगान बढ़ने लगा है, मातृदिवस भी
मनने लगा है। मेरी माँ को पता ही नहीं था कि वही सबकुछ है, लेकिन मुझे समझ आने लगा
था कि मैं भी कुछ हूँ, लेकिन आज माँ ही सबकुछ है, यह स्पष्ट होने लगा है। मेरी माँ
से हम कुछ नहीं मांगते थे, मुझसे थोड़ा मांगा जाता था लेकिन अब मांग बढ़ गयी है।
मांग बढ़ी है तो जिद भी बढ़ी है। डर जीवन से एकदम से रफूचक्कर हो गया है। अपने
जीवन को अपने मन की इच्छाओं से मेल का समय है। संतान अपने मन के करीब जा रही है और
माँ से दूर हो रही है। अब रिश्ते को बताना पड़ रहा है, पहले का मौन सा दुलार अब
मुखर हो रहा है और मुखर होते-होते प्रखर वार करने लगा है। माँ को बताना पड़ रहा है कि मैं तुम्हारी माँ
हूँ, संतान से अपने रिश्ते की दुहाई देनी पड़ रही है। कभी लगने लगा है कि मनुष्य
के बच्चे से अधिक अब गाय के बछड़े बन गये हैं, पैदा होते ही अपने पैरों पर खड़े
हैं। अब बच्चे को माँ का पल्लू पकड़कर बैठने की फुर्सत नहीं है, वह कहानी भी नहीं
सुनना चाहता, उसके पास मोबाइल है। मेरी माँ को याद करते-करते मैं खुद को देख लेती
हूँ और फिर बेटी और पुत्रवधु को देख लेती हूँ। तीन पीढ़ियों की तीन माँ मेरे सामने
हैं। कभी हम माँ से शिकायत करते थे कि माँ तुम हमें समय क्यों नहीं देती? फिर हम
सीमित समय देने लगे लेकिन अब माँ पूछने लगी है कि बेटा क्या मेरे लिये कुछ समय है
तुम्हारे पास! कल तक माँ के लिये कोई चर्चा नहीं थी लेकिन माँ परिवार में शीर्ष पर
बैठी थी, आज मातृ-दिवस मनाती माँ, परिवार में कहीं नहीं है! कल दुलार मौन था और आज
दुलार का दिखावा मुखर है! कल तक रिश्ते सहज थे और आज रिश्ते असहज हैं। फिर भी माँ
तो है, संतान भी है, दुलार भी है, अनुशासन भी है, बस जो नाभिनाल से जुड़ाव के कारण
संतान और माँ एकरूप थे आज मातृदिवस पर एक दिखायी देते हैं। लेकिन प्यार मुखर होकर
खड़ा है, माँ भी खूब प्यार कर रही है और संतान भी मुखरता से कह रही है कि माँ मैं
तुम्हें प्यार करता हूँ। यह मुखरता कम से कम एक दिन तो मुखर होकर सुख दे ही जाती
है, पहले तो एक दिन भी नहीं था।
बस आज मेरा मन ये सब ही देख पाया, तो आपको बता
दिया। मैं खुश हूँ कि मैं माँ हूँ, मैं खुश हूँ कि जो भी स्त्री माँ है, वह
जिम्मेदारी से पूर्ण है। यह जिम्मेदारी ही दुनिया को जिम्मेदार बनाती है। हे माँ
तेरा वंदन है, अभिनन्दन है।
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