लोकतंत्र में छल की कितनी गुंजाइश है यह अभी
लोकसभा में देखने को मिली। कभी दादी मर गयी तो कभी बाप मर गया से लेकर ये तुमको
मार देगा और वो तुमको लूट लेगा वाला छल अभी तक चला है, लेकिन
शुक्रवार को नये प्रकार के छल का प्रयोग किया गया! प्यार का छल! हम सबसे प्यार
करते हैं, दुश्मन
से भी गले लग जाते हैं, हम
प्यार के मसीहा हैं! सत्ता के लिये छल के तो लाखों उदाहरण राजशाही में देखे जाते
हैं लेकिन लोकतंत्र में भी प्यार का छल यह नया प्रयोग था। इस छल से तो पीठ में छुरा
ही घोंपा जाता है, दूसरी
तो कोई बात हो ही नहीं सकती। लोकतंत्र में सत्ता की प्राप्ति तो जनता द्वारा होती
है, राजाशाही में बल
या छल से होती थी। मौत के सौदागर से लेकर सूट-बूट वाले चोर के गले में लटक जाना
प्यार कैसे हो गया! यह तो निरा छल है। आपके द्वारा लगाए गये पोस्टर नफरत या प्यार, एक धोखा है। लोकसभा
में ऐसा लग रहा था जैसे एक अफीमची अपनी ही पीनक में अनर्गल प्रलाप कर रहा हो और
फिर नौटंकी करते हुए प्रधानमंत्री के गले जा पड़े। यह प्यार कैसे हो गया! मुझे
अपनी शरण में ले लो, यह तो
हो सकता है लेकिन प्यार तो कदापि नहीं।
लोकतंत्र में आप अपने कार्य प्रणाली की बात करिये
और जनता का दिल जीतिये, लेकिन
जनता को बेवकूफ मानते हुए छल मत करिये। जनता के सामने अब भोजन की थाली सजने लगी है, उसे बाप मरने
की और दादी मरने का छल भी समझ आने लगा है तो कैसे अपनी थाली तुम जैसे छली को दे
दे। बहुत भूखा मारा है तुमने, अब और नहीं। तुमने अपना घर भर लिया और अपने को
बचाने के लिये 10 प्रतिशत लोगों को टुकड़े फेंक कर सुरक्षा दीवार खड़ी कर ली, इसका यह अर्थ
नहीं कि शेष 90 प्रतिशत जनता हमेशा छली जाएगी! छलना बन्द करो और काम करो। पड़ोसी
देश तक में नारे लग रहे हैं कि हम मोदी की तरह काम करके दिखाएंगे और तुम अभी भी
नौटंकी से ही काम चलाना चाहते हो। 10 प्रतिशत अपने चाटुकारों से बाहर निकलो और
जनता की आँखों में देखो, वहाँ
सपने पलने लगे हैं। मोदी की आँख में आँख डालने से कुछ नहीं होगा, हो सके तो
जनता की ओर देखो। जिस झोपड़ी में तुम गये थे, उसी झोपड़ी में तुम्हारे पिता भी गये थे, झोपड़ी झोपड़ी
ही रही लेकिन तुम्हारे खानदान ने सत्ता हड़प ली। हमारे देश में तो सुदामा एक बार
गया था कृष्ण के घर और उसकी झोपड़ी महल में बदल गयी थी। तुम तो झोपड़ी में खुद जा
आए और झोपड़ी वैसी ही खड़ी है!
प्यार का नाटक बहुत हुआ, तुम्हारे
पोस्टर से लग रहा है कि आखिर तुमने भी मोदी का सहारा ही लिया। मोदी गाय नहीं है जो
उसकी पूंछ पकड़कर वैतरणी पार कर जाओंगे! एक काम करो,
राजनीति से संन्यास लो और मोदी के शरणागत आ जाओ, तुम्हें ओर
कुछ नहीं तो जीने का तरीका जरूर आ जाएंगा। जीवन में छल और श्रेष्ठों के लिये
तुम्हारे अन्दर जो गालियों का समन्दर लहराता रहता है उसका अवसान हो जाएगा। यदि यह
मंजूर नहीं और मोदी का मुकाबला ही करना चाहते हो तो मोदी का सहारा मत लो, अपने ऊपर विश्वास
करना सीखो। लोकतंत्र में छल की जगह नहीं होती है, लेकिन तुम्हारे पूरे खानदान ने छल
से ही सत्ता हथियायी है बस अब और नहीं। तुम्हारा मोदी के गले पड़ना तुमको सत्ता से
बहुत दूर ले गया है इसलिये अपने पादरी के पास जाकर प्रायश्चित कर लो, शायद कुछ पवित्रता
का आभास हो जाए।
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7 comments:
आजकल राजनीति में सब जायज है। वोट देते समय राजनेता कहते हैं कि हम जनता के सेवक हैं, लेकिन बाद में देखो उसी जनता को सेवक बना बैठते हैं। राजनीति एक बहुत बड़ा छलावा बनकर रह गया है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-07-2018) को "अज्ञानी को ज्ञान नहीं" (चर्चा अंक-3042) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी आभार।
आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 25 जुलाई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अमित जी आभार।
प्रेम का नाटक करके प्रेम नहीं पाया जा सकता....देश की जनता अब पहले की तरह भोली और भावुक नहीं रह गई है। लोग सब देख समझ रहे हैं। बहुत अच्छा आलेख दिया आपने छलनीति पर ! सादर आभार।
मीना जी आभार।
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