Friday, October 13, 2017

पहले जुड़िये फिर बात कहिये

बोल झमूरे, खेल दिखाएगा? हाँ दिखाऊंगा। आज बन्दरियाँ को कहाँ- कहाँ घुमाया? बन्दरियाँ के लिये नये कपड़े लेने कहाँ गया था? क्या कहा, मॉल में! एकदम नये फैशन के कपड़े लाया हूँ। अरे मॉल में तो कपड़े बड़े महंगे मिलते हैं! तो क्या? मेरी बन्दरियां भी तो बेशकीमती है। तो मेहरबानों और कद्रदानों देखिये एक नायाब खेल। तैयार हैं आप लोग? आप भी महंगी चीज से मत घबराइए, अपनी घरवाली की कद्र करिये, वह भी आपकी कद्र करेगी। कुछ इसी प्रकार से शुरुआत होती है सड़क किनारे खेल की। जैसे ही तमाशा दिखाने वाले व्यक्ति की आवाज वातावरण में गूंजने लगती है, लोग भीड़ लगाना शुरू कर देते हैं। यदि कोई सीधे ही तमाशा दिखाना शुरू कर दे तो तमाशबीन कम ही जुट पाते हैं। ऐसे ही लिखना एक अलग बात है लेकिन उसे पाठक देना अलग बात है। मेरा तो यह अनुभव है कि किस रचना को पढ़ना है या नहीं, उसके पहले शब्द या वाक्य पर निर्भर करता है। पाठक का जुड़ाव सबसे आवश्यक बात है, पहले पाठक को जोड़िये और फिर अपनी बात कहिये। कड़वी से कड़वी बात भी चाशनी में लपेटकर गले उतारी जा सकती है। जब तक पाठक की उत्सुकता नहीं बढ़ेगी वह रचना को नहीं पढ़ेगा। इसलिये यदि आप लिखते हैं तो इस गुर को जरूर अपनाएं। मैंने भी फेसबुक से ही सीखा है कि पहले व्यक्ति को कनेक्ट करो और फिर अपनी बात कहो।

माँ हमें कहानी सुनाती थी, शुरुआत राजा-रानी, चिड़िया, बन्दर आदि से होती थी। हम माँ के पेट से चिपक जाते थे लेकिन कुछ ही देर में कहानी किसी शिक्षा में बदल जाती थी और हम अभी तक उस कहानी के माध्यम से उस शिक्षा को अपने अन्दर बसाये हुए हैं। पिताजी सीधे ही शिक्षा की बात करते थे और हम कहते थे कि रात-दिन उपदेश सुनकर दुखी हो गये हैं। माँ की कहानी बार-बार सुनते थे और पिताजी की बात से बचने का उपाय ढूंढते थे। पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी, याद भी नहीं लेकिन उनके अन्दर छिपी शिक्षा याद है। बस यही अन्तर है लिखने और पाठक बनाने में। उपदेश कोई नहीं सुनना चाहता लेकिन अनुभव के साथ उपदेश सारे ही सुन लिये जाते हैं इसलिये अपने सच्चे अनुभव बच्चों के सामने रखो, फिर देखों बच्चे आपकी बात सुनेंगे भी और हृदयंगम भी कर लेंगे। लेकिन सबसे पहले जुड़ाव जरूरी है। बस जुड़ाव बनाकर रखिये और देखिये आपकी बात क्या घर वाले और क्या बाहर वाले सभी सुनेंगे। फेसबुक पर भी नये-नये लोग जुटना शुरू हो जाएंगे।

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (14-10-2017) को "उलझे हुए सवालों में" (चर्चा अंक 2757) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

ब्लॉग बुलेटिन said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, याद दिलाने का मेरा फ़र्ज़ बनता है ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

अजित गुप्ता का कोना said...

शास्त्रीजी और ब्लाग बुलेटिन का आभार।

Jyoti Dehliwal said...

बिल्कुल सही कहा पहले जुडाव महसूस होना जरुरी हैं।

Unknown said...

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