Saturday, May 20, 2017

कितने घोड़ों को कुशल सवार मिलता है?

जब में नौकरी में थी और मुझे विश्वविद्यालय की एक मीटिंग में फेकल्टी सदस्य के रूप में जाना था। मेरी वह पहली ही मीटिंग थी और फिर अंतिम भी हो गयी। मीटिंग के दौरान ही मुझे समझ आ गया था कि मेरा अधिकार मुझ से छीन लिया जाएगा। अब आपको अपनी टीम में क्यों रखा जाता है? इसलिये की आप बॉस की हाँ में हाँ मिलाएं। मीटिंग में एक बहस शुरू की गयी जिसका कोई औचित्य नहीं था, औचित्यहीन बहस लम्बी खिंचती गयी आखिर मैंने प्रश्न कर लिया कि हम किस  पर बहस कर रहे हैं? बहस तत्क्षण ही समाप्त हो गयी। मेरे साथी ने कहा कि आप का प्रश्न आपको सदस्य बनाये रखने का औचित्य सिद्ध करता है, लेकिन मैं तब मन ही मन हँस दी थी कि यही प्रश्न मुझे मेरे अधिकार से वंचित कर देगा। यही हुआ! लोग फायदे का मार्ग ढूंढ रहे थे और मैंने बहस पर विराम लगवा दिया, यह तो बड़ा अपराध था। मेरे साथ हर जगह ऐसा  ही होता रहा, मेरी शक्ल  पर ही कुछ ऐसा लिखा है कि पहले तो लोग मुझे अपनी टीम में रखते नहीं और यदि किसी योग्य अधिकारी ने रख भी लिया तो उनके जाते ही सबसे पहले मेरा ही नम्बर आता  है बाहर करने में।
आप सोच रहे होंगे कि कौन सी रामायण लेकर मैं आज बैठ गयी हूँ! मैं आपको बताना चाह रही हूँ कि यदि आप किसी नेतृत्व की पड़ताल करना चाहते हैं तो उसकी टीम को देखें। उसकी टीम में नायाब हीरे हैं तो समझिये की वह व्यक्ति क्षमतावान है और यदि हमारा नेतृत्व ऐसे  हाथों में है जिसकी टीम में स्तरहीन लोग हैं तो समझ लीजिये कि यह हीरो नहीं जीरो है। यदि आपको किसी की टीम में बामुश्किल जगह मिलती है तो समझिये कि आप योग्य  हैं और यदि सभी आपको लेना चाहते हैं तो आप कमजोर व्यक्ति हैं। मैंने इस बात को अच्छी तरह समझ रखा है और हमेशा अव्वल दर्जे के प्रबुद्ध व्यक्ति के साथ जुड़ती  हूँ लेकिन पता नहीं क्या होता है कि मुझे अधिकतर निराशा  ही हाथ लगती है। योग्य व्यक्ति मुझे काम तो करने देते हैं लेकिन हमेशा कमतर सिद्ध भी करते रहते हैं और अयोग्य व्यक्ति तो ऐसा वातावरण बना देते हैं कि मैं स्वयं  ही काम छोड़ दूं।
एक बात पर और विचार करते हैं कि कभी आपने इस बात पर गौर किया है कि एक युवती अपने विवाह के समय कैसा वर चाहती है और एक युवक विवाह के समय कैसी वधु चाहता है? शत-प्रतिशत युवतियाँ अपने से अधिक योग्य व बुद्धिमान युवक से विवाह करना चाहती हैं जबकि शत-प्रतिशत युवक अपने से कम योग्य और कम बुद्धिमती युवती से विवाह करना चाहते हैं। वैवाहिक विज्ञापन में लिख दिया जाता है कि शिक्षित और प्रबुद्ध कन्या चाहिये लेकिन जैसे ही परिचय-पत्र हाथ में आता है तब कहा जाता है कि अरे लड़का तो स्नातक ही है और लड़की स्नातकोत्तर नहीं चलेगी। ऐसा ही कन्या के माता-पिता भी कहते हैं कि लड़की से कम पढा-लिखा लड़का नहीं चलेगा।

हमारे समाज ने एक धारणा बना दी है कि लड़की को कमतर रखो और लड़के को सुरक्षित  रखने के लिये प्रयास करो। लड़की योग्य वर पाकर भी राज करती है और लड़का अयोग्य पत्नी पाकर भी दबा  हुआ अनुभव करता है। इसका अर्थ है कि लड़की में वंशानुगत आत्मविश्वास है और उसके अन्दर असुरक्षा का भाव नहीं है। तभी तो वह अनजान परिवार में  भी अपना अधिपत्य बना लेती है और लड़का बेबस दिखायी देने लगता है। लड़कों में वंशानुगत असुरक्षा का भाव शायद होता है तभी तो सारा समाज उसकी चिन्ता करता है और वह अपने कार्यस्थल पर भी अयोग्य व्यक्तियों के सहारे ही काम करता है। ऐसे कितने लोग हैं हमारे समाज में, जिनकी टीम में रत्न भरे हों! लेकिन मैंने अनुभव किया है कि हमारे #प्रधानमंत्रीमोदी जी की टीम में एक से बढ़कर एक रत्न हैं जो उनकी नेतृत्वक्षमता को उजागर करता है। वे स्वयं इतने प्रबुद्ध हैं कि उनके समक्ष दुनिया छोटी दिखायी देने लगी है। हर विषय  पर उनका विश्लेषण अद्भुत होता है, इसलिये वे स्वयं में इतने सुरक्षित हैं कि उनकी टीम में अच्छे से अच्छा प्रबुद्ध व्यक्ति भी काम करने को स्वतंत्र होता है। काश हमें  भी उनके समान या उनका एक अंश-धारक नेतृत्व मिला होता तो हम भी कभी मन लगाकर काम करते और अपना योगदान देश को दे पाते। कितने घोड़ों को कुशल सवार मिलता है? कुछ सवार तो खच्चरों पर ही अपना दांव लगाकर खुश होते रहते हैं और दमदार घोड़े पेड़ की छांव में बंधे रहकर ही बूढ़े हो जाते हैं। 

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार शास्त्रीजी।

Pammi singh'tripti' said...


आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 07 जून 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!