कस्तूरी मृग का नाम सुना ही होगा आप सभी ने।
कहते हैं कुछ हिरणों की नाभि में कस्तूरी
होती है और कस्तूरी की सुगंध अनोखी होती है। हिरण इस सुगंध से बावरा सा हो जाता है
और सुगंध को सारे जंगल में ढूंढता रहता है। उसे पता ही नहीं होता है कि यह सुगंध
तो उसके स्वयं के अन्दर से ही आ रही है! माँ भी ऐसी ही होती है। उसके अन्दर भी
ममता नामक कस्तूरी होती है। इस कस्तूरी की सुगंध भी सारे जगत में व्याप्त होती है। माँ को भी पता नहीं होता कि उसकी ममता अनोखी है, अनमोल
है और यह केवल उसी में है। जब कोई भी महिला माँ बनती है तो यह ममता रूपी कस्तूरी उसके अन्दर बस जाती है, वह महिला कस्तूरी
मृग की तरह विशेष हो जाती है। सृष्टि की सारी माताएं फिर चाहे वे पशु हो या पक्षी
सभी में ममता का वास है। ये ही ममता संतान का सुरक्षा चक्र है।
हिरण को पता नहीं है कि उसके अन्दर कस्तूरी है
और संतान को पता नहीं है कि माँ के अन्दर ममता है। हिरण जंगल में भटकता है और
संतान ममता की गंध को नजर अंदाज कर प्यार की गंध के पीछे दौड़ता है, यही प्रकृति
है। संतान को समाधान मिल जाता है लेकिन ममता को नहीं। मुझे देवकी का स्मरण होता
है, कृष्ण को उससे छीन लिया गया है, वह नन्हें बाल-गोपाल बना लेती है और सारा दिन बाल-गोपाल
के साथ कभी स्नान तो कभी भोजन और कभी निद्रा का खेल खेलती है और अपनी ममता को जीवित
रखती है। क्योंकि स्त्री की ममता ही उसे सभी से विशेष बनाती है, बस ये ही शाश्वत
रहनी चाहिये क्योंकि जो शाश्वत है वही सत्य है।
बुढ़ापे ने दस्तक दे दी है, संतान भी पास नहीं
है तब ममता भी कठोरता धारण करने लगती है, ऐसे में विश्व मातृ-दिवस मनाता है और
मुझे कस्तूरी मृग का ध्यान हो जाता है। ममता मुझे अमूल्य लगने लगती है और मैं इसके
संरक्षण की बात सोचने लगती हूँ। इस एक-तरफा प्यार को बनाये रखने का उपाय ढूंढने
लगती हूँ जिससे कस्तूरी की सुगंध जगत में हमेशा व्याप्त रहे। जिस ममता नें माँ को
अमूल्य बना दिया वह ममता शाश्वत रहनी चाहिये तभी यह ममता सत्य बनेगी। जो भी माँ है
वह अनोखी है और इस अनोखेपन को दुनिया नमन करती है। आज मातृ-दिवस है तो दुनिया में
कस्तूरी गंध की तरह व्याप्त ममता को घारण करने वाली माँ को नमन।
4 comments:
नमस्कार अजीतजी , आज सलिल जी के माध्यम से ब्लॉग जगत की सैर का मौक़ा मिला. अंतिम पंक्तियों ने भावुक कर दिया हालाँकि हर माँ की ममता में यही अनोखापन अटल सत्य है !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-05-2017) को
टेलीफोन की जुबानी, शीला, रूपा उर्फ रामूड़ी की कहानी; चर्चामंच 2632
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मीनाक्षी जी आभार आपका।
अंतर में समाया ममत्व कभी रीतता नहीं,अवसर पाते ही उछाल लेने लगता है.
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