Wednesday, August 7, 2013

मृत्‍यु का सैलाब और अपनों के हाथ में तराजू

भाई नहीं रहा ! यह सूचना है या फिर काल जलधि की हलचल। मन के अनन्‍त में एक लहर सी उठती है, एक शून्‍य बन जाता है। मन का एक कोना टूटकर बिखर जाता है। मन हाहाकार कर उठता है। टूटे हुए कोने को जोड़ने में लग जाता है मन। अपने सगे सम्‍बन्धियों की बाहों में लिपटकर बह जाना चाहता है पीड़ा का सैलाब और भर लेना चाहता है कुछ बूंद प्रेम-रस की।
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2 comments:

Madan Mohan Saxena said...

सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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अजित गुप्ता का कोना said...

आभार