दुर्भाग्य से आपको किसी डॉक्टर के पास जाना पड़ जाए,
तो आपकी हालत तीन दिन पुराने खिले फूल सी हो जाती है। दिल की धड़कन, भैंस के गले
में बंधी घण्टी की तरह हो जाती है, जो अपने आप बजती ही रहती है। इस पर डॉक्टर
आपकी बात सुनने के स्थान पर आप से कहे कि "आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए"
तो आपको कैसा लगेगा?
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5 comments:
खुबसूरत संस्मरण और बेहतरीन जानकारी।
दिनेश पारीक जी आप मेरे ब्लाग पर आए, इसके लिए आभार। मैं आपके ब्लाग को पढ़ने का अवश्य प्रयास करूंगी।
भारत में सरकारी अस्पताल खैराती अस्पताल से ही हैं .यहाँ कोई किसी की नहीं सुनता .मरीज़ का हक़ बनता है वह सवाल पूछे ,ज़रूरी है आप नामचीन अस्पतालों में जाएँ .पैथालोजिकल जांच
के नतीजों में एक से दूसरी लेब में जाने पर कुछ न कुछ अंतर ज़रूर मिलता है यह सही . इसका मतलब यह नहीं है ,जांच ही न करवाई जाए .केवल व्यायाम से ही काम चलाया जाए .एक उम्र के
बाद नियमित परीक्षण ज़रूरी रहतें हैं .
पचास के पार हर साल जांच होनी चाहिए ताकि आदमी अँधेरे में न पकड़ा जाए .लक्षणों की अनदेखी न की जाए . खुदा सेहत मंद रखे सलामत रखे .
सेहतमंद रहने के लिये कुछ प्रयास तो करने पड़ेंगे.
बेहतरीन........
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