Friday, September 28, 2012

चतुर्थ खण्‍ड – स्‍वामी विवेकानन्‍द कन्‍याकुमारी स्थित श्रीपाद शिला पर

सेतुपति से मिलने से पूर्व मद्रास के मन्‍मथ बाबू के साथ स्‍वामी रामेश्‍वरम् की यात्रा के लिए निकले लेकिन मन्‍मथ बाबू को सरकारी काम से नागरकोइल तक जाना था। नागरकोइल पहुंचकर मन्‍मथबाबू ने स्‍वामीजी को कहा कि यहाँ से कन्‍याकुमारी मात्र 12मील है। स्‍वामीजी ने कन्‍याकुमारी जाने का निश्‍चय किया। पोस्‍ट को पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर जाएं -
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Saturday, September 22, 2012

तृतीय खण्‍ड – विवेकानन्‍द राजस्‍थान में

गतांक से आगे - तृतीय खण्‍ड
स्‍वामी विवेकानन्‍द के लिए राजपुताने का महत्‍व सर्वाधिक रहा है। राजपुताना ही ऐसा प्रदेश था जहाँ उन्‍होंने व्‍यापक स्‍तर पर बौद्धिक चर्चाएं प्रारम्‍भ की। सभी वर्गों और सभी सम्‍प्रदायों को अपने ज्ञान से अभिभूत किया। उनके पास राजा भी नतमस्‍तक हुए और रंक भी, उनके पास हिन्‍दु भी आए और मुसमलमान भी। वृन्‍दावन से निकलकर उन्‍होंने राजपुताने का रुख किया और सर्वप्रथम अलवर आए। पूरी पोस्‍ट के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें - 
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Wednesday, September 12, 2012

नरेन्‍द्र से स्‍वामी विवेकानन्‍द का निर्माण : भारत का स्‍वाभिमान जागरण

द्वितीय कड़ी - गतांक से आगे - 
उनके पिता सफल एडवोकेट थे और वे अपनी वकालात के सिलसिले में कलकत्ता से बाहर अक्‍सर जाते रहते थे। एक बार वे रायपुर गए और उनके एक मुकदमें में उन्‍हें वहाँ कई वर्षों तक रहना पड़ा। ऐसे में उनके पिता ने भुवनेश्‍वरी देवी और परिवार को रायपुर ही बुला लिया। तीन वर्ष तक नरेन्‍द्र रायपुर रहे। 
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