बहुत दिनों से कोई पोस्ट नहीं लिखी गयी और इस साल ने भी अपने बोरिये-बिस्तर बाँध लिए। सोचा कि जाते-जाते साल में उसकी पेटी में एक कागज अपना भी और रख दिया जाए। टाइप करते हुए हाथ ठण्डे पड़ रहे हैं, उन्हें बार-बार सहलाना पड़ता है। इन दिनों बाहर बहुत रहना हुआ इस कारण कुछ नहीं लिखा गया और फिर अब ठण्ड ने अपना असर दिखा दिया है। आप सभी लोग भी श्री राज भाटिया जी के बुलावे पर साँपला जा आए। गन्ने खूब खाए गये, पिकनिक का सा अहसास हो रहा था, फोटो देखकर। गन्नों की मिठास हम तक भी पहुंच गयी है। जब आप लोग साँपला में मिलन कर रहे थे तब मैं भी चण्डीगढ़ में ही थी। बर्फ जमा देने वाली ठण्ड का मुकाबला कर के आ रही हूँ।
2011 अपनी अन्तिम घड़िया गिन रहा है। 2012 ने अपने नए कपड़े सिलवा लिए हैं। सारी दुनिया इस नए साल का स्वागत करने के लिए होटलों में जुट गयी है। परिवार से दूर, होटल की छाँव में। नए साल का स्वागत करने के लिए स्वयं को खुमारी में डुबोने का भी पूरा प्रबंध कर लिया गया है। ऐसा लग रहा है जैसे हमने अपने घर के दरवाजे खोल दिए हों और खुद सुध-बुध खोकर कहीं लुढ़क गए हों। कह रहे हों, कि भाई आना है तो आ जाओ, हम तुम्हारे स्वागत में होश खो बैठे हैं। बेचारा नया साल आपके घर पर दस्तक दे रहा है और उसे पता लगा कि अरे सारे ही परिवारजन तो होटल में हैं। तो यह परिवार का नया साल नहीं है क्या? नहीं जी यह तो बाजार का नया साल है, इसलिए बाजार में ही मनेगा। अभी एक संत का प्रवचन सुना, वे कह रहे थे कि रात को 12 बजे हम कहते है कि बधाई हो, नये साल की। फिर सो जाते हैं, तभी रात को एक बजे किसी का फोन आ जाता है तो उससे गुस्से में कहते हैं कि आधी रात को क्यों फोन कर रहा है? बर्फ गिर रही है, सर्दी की मार पड़ रही है, सारी दुनिया अपने खोल में सिमटी है और हम कह रहे हैं कि नया साल आ गया!
बचपन में एक दिन आता था, जब चारों तरफ फूल खिले होते थे, मन चहक रहा होता था। प्रकृति ने मानो नए वस्त्र धारण किये हो। सुबह-सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही मिश्री और नीम की कोपल प्रसाद रूप में मिल जाती थी और कहा जाता था कि नया साल आ गया है। परिवार में ही मिठाई बनती थी और सारे ही परिवारजन एकत्र होकर नये साल की खुशियां मनाते थे। होटल नहीं थे, बाजार नहीं थे बस था तो परिवार था, अपना समाज था। मदहोशी नहीं थी, थी तो जागरूकता थी। प्रकृति को परिवर्तन का जरिया मानते थे। प्रकृति के अनुरूप ही तिथियों का निर्धारण करते थे। तब शायद हम शिक्षित नहीं थे, आज है। मुझे लगता है कि तब हम ज्ञानवान थे लेकिन आज नहीं हैं। क्या शिक्षित होने से केवल एक ही सोच पर चला जाता है? क्या अपना विवेक प्रयोग में नहीं लिया जाता? क्या अब परिवारों का स्थान होटल ले लेंगे? हम ऐसा कार्य क्यों नहीं कर पाते जिसमें अपना विवेक जागृत रहे। क्यों हम प्रत्येक कार्य में मदहोशी ही चाहते हैं। क्यों हम अपने होश खो देना चाहते हैं? क्या जीवन में इतनी निराशा है? क्या जीवन में इतनी कटुता है? जो सबकुछ भुला देना चाहते हैं। खुशियां जागृत अवस्था में मनायी जाती हैं या मदहोशी में? ऐसे कई प्रश्न हैं जो मुझे परेशान करते हैं, आप के पास इनके उत्तर होंगे? तारीख के अनुसार यह मेरी इस वर्ष की अन्तिम पोस्ट हैं लेकिन नव-वर्ष के अनुसार अभी मार्च तक और पोस्ट आएंगी। जब प्रकृति गुनगुनाएगी तब हम भी गुनगुनाएंगे कि नव वर्ष आप सभी के लिए नव-प्रेरणा लेकर आए। अभी तो प्रकृति सिकुड़ी हुई है तो हम कैसे कहें कि नव-वर्ष मुबारक। खैर आप धुंध में लिपटे, बिस्तरों में दुबके होकर, होटल में नाच-गान के साथ ही जबरन नयेपन को आमंत्रण देंगे तो हम भी कह देंगे कि आपका जीवन ऐसे ही संघर्षों में बीते जैसे आज प्रकृति संघर्ष कर रही है। तो विदा 2011, क्या करें तुझे सर्दी में ही विदा करना पड़ रहा है। भारत का ज्ञान आज साथ होता तो तुझे हम बसन्त में विदा करते और 2012 को भी बसन्त में ही अपने घर भोर की बेला में घर ले आते। लेकिन अब तो क्या करें?
48 comments:
bahot sunder vidayee ka lekh likhi hain.......
@ जब आपको नयेपन की अनुभूति हो अथवा हमें कुछ नयेपन का एहसास हो...
या फिर.... प्रकृति में ही कुछ नया देखने को मिले...
वैसे तो हर क्षण कुछ-न-कुछ नया घटित होता ही रहता है.
फिर भी हम प्रकृति के उस घटनाक्रम को नया कहते हैं जो सुप्त भावों में जागृति का संचार करे... और जागृति तो वसंत में ही देखने को मिलती है.
अभी तो सभी भाव रजाई की ओट लेकर छिपने की फिराक में हैं.... अभी कैसा नयापन.?
फिर भी यदि कोई प्रसन्नता से 'हैपी न्यू इयर' कहता मिल जाता है तो हम भी उसकी प्रसन्नता कम होते नहीं देख सकते... द्विगुणित कर देते हैं.
हाँ इस अवसर पर यदि कोई 'वाहियात हरकतें करने की छूट' लेना चाहे तो हम भी उसे शर्मिन्दा किये नहीं रहते.
ब्लॉग पर आपका आगमन बहुत समय बाद हुआ तो हृदय पुष्प की तरह खिल गये... शीत में ही वासंतिक बयार बहने लगी.. अब तो सचमुच नयावर्ष आसपास ही है.
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बचपन में एक दिन आता था, जब चारों तरफ फूल खिले होते थे, मन चहक रहा होता था। प्रकृति ने मानो नए वस्त्र धारण किये हो। सुबह-सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही मिश्री और नीम की कोपल प्रसाद रूप में मिल जाती थी और कहा जाता था कि नया साल आ गया है। ......... इन पंक्तियों ने विशेषकर ध्यान खींचा.
@भारत का ज्ञान आज साथ होता तो तुझे हम बसन्त में विदा करते और 2012 को भी बसन्त में ही अपने घर भोर की बेला में घर ले आते।
चिंता मत कीजिए हम लोग अभी भी बसंत के नए पल्लव के साथ प्रकुर्ती के साथ लय मिला कर नए साल का स्वागत करते हैं.
ये परिवार का नहीं बाज़ार का नया साल है ...वाह बहुत खूब कही आपने । आपकी इन पंक्तियों ने एक पूरा आलेख दे दिया मुझे । जिंदगी के इस फ़लसफ़े को समझ के हू बहू जस का तस धर देना कोई आपसे सीखे ।
चलिए बाज़ार में एक ग्राहक की तरफ़ से दूसरे ग्राहक को शुभकामनाएं जी
आपका कहना भी सही है वक्त के साथ सब बदलता है।
आज हर बात में इस तरह बाजारवाद हावी हो रहा है जल्दी ही रिश्तों की मिठास भी उससे तोली जायगी ... और वैसे भी अंग्रेजी केलेंडर का ज़माना है तो सर्दी में २०११ को विदा और २०१२ का स्वागत किया जायगा ....
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट ... परंपरा को निभाते हुवे २०१२ की अग्रिम शुभकामनाये ...
परिवार का नहीं ,बाजार का नया साल है , सही कहा ...
बचपन में हमने भी कभी नववर्ष नहीं मनाया ...लेकिन धनुर्मास होने के कारण विशेष पूजा अनुष्ठान के साथ खिचड़ी , खिरान्न जैसे प्रसाद से ही नववर्ष का आगाज़ हो जाता था !
अंग्रेजी नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनायें !
bahut dino se tak-jhank kar rahi thi lekin apki post kahin nahi mil rahi thi padhne ko laga ki shayed blog ko thand wand lag gayi hai khair apki aaj ki post se apke bhraman ka pata chala.
ab madhoshi ki baat kya kahen...baat to buri hai ki apne pariwar se door aaj log hotels me naya sal manana pasand karte hain. kya kare insan bhi aakhir masheen ban k hi to rah gaya hai apne aaraam ki sukh suvidhayen jutane k chakkar me. ek bojh dhone wala vo gadha ban k rah gaya hai jise aaj k bhautikwad ki daud me barabar daudna hai varna vo peechhe rah jayega. isi dar se shayad vo andhanukarna karta hua aise jashn manata hai. dusra karan ye bhi hai ki jimmevariyon ki chakki me piste piste aaj insan ki khushiyan bhi pisti ja rahi hain to vo chaahta hai kyu na agar thoda sa bhi mauka mile to khushiyon ko chaahe chheen kar hi sahi ...bas mana le. to dono hi bate hain na daud me daudne ki aur jashn ko purzor manane ke liye to aaj kal yahi tareeke izad kiye ja rahe hain.
sunder lekh jo pariwar me bandh kar khushiyon ko manane ki seekh de rahi hai.
AAPKO SPARIWAR NAV VARSH KI SHUBHKAAMNAAYEN.
आह आखिरी पंक्तियाँ कहीं कचोट गईं..पर फिकर मत करिये.इसी बहाने उम्मीद कर लें कि कभी अपनी संस्कृति के अनुसार भी इसे इसी उल्लास से मनाएंगे.
Naya saal aapko bahut,bahut mubarak ho!
Thodi thand hamare paas bhee bhijwa deejiye!
दुनिया इसी हिसाब से चल रही है -औपचारिक रूप से
नया वर्ष आ रहा है दो दिन बाद .लेकिन अपना नव-वर्ष नवोत्साह से तभी शुरू होगा जब वसंत आ कर द्वार खटखटायेगा !
NAV VARSH KI AGRIM SHUBHKAMNAAYEN...
नए साल की मुबारकबाद! भगवान करे नए साल में ठिठुरन कम हो, आपकी कलम चले और खूब चले...!!
बहुत खूब, आपको नव-वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाये !
अजित जी , लोगों के पास पैसा ही इतना ज्यादा है कि संभाले नहीं संभलता ।
आम आदमी के लिए तो क्या नया , क्या पुराना ।
हमारे यहाँ तो नया साल होली से आरम्भ होता है पर क्या करें यह अंग्रेज कब तक परेशान करेंगे ....
डॉक्टर दी,
अब आपकी पोस्ट के लालच में यह भी तो नहीं कह सकते कि आप अपनी व्यस्तताएं छोड़ दें. अब जो पैरों में चक्कर हैं सो तो होंगे ही.. लेकिन बेचारे २०११ से जो मोह आपने बनाया है वह सही नहीं.. अच्छा किया जो इसे भीषण ठण्ड में विदा कर दिया आपने.. कला के क्षेत्र में कई लोगों को इसने छीना है हमसे.. मगर यह तो विधि का विधान है, इस बेचारे का क्या दोष!!
अगर आपको इसपर इतनी दया आ रही हो (सर्दियों में विदा करने की) तो आप हमारे देश के राष्ट्रीय पंचांग का अनुसरण शुरू कर दीजिए. इस दुष्चिन्ता से बच जायेंगी!
बहुत अच्छी रही आपके ठिठुरे हाथों से उगी पोस्ट!! नव वर्ष की मंगलकामनाएं!!
अंग्रेज़ चले गए मगर अंग्रिज़ियत हमारे यहाँ ही छोड़ गए। मगर अब भी कुछ लोग हैं जो बस्त पंचमी से ही नए साल का स्वागत करते हैं। जैसे मेरे परिवार के लोग और फिर परिवर्तन तो प्रकर्ति का नियम है ही साथ ही दिखावा आज कल का चलन सौ यदि खुद को आज के जमाने के साथ चलेने वाला दिखाना है तो हर चीज़ उसे हिसाब से करनी भी पड़ती है। बाकी तो और क्या कहूँ सब कुछ आपने इतनी खूबसूरती से लिख दिया है की कहने को कुछ बचा ही नहीं॥
वैसे डॉ सहाब मेरा मतलब डॉ "टी एस दराल" जी की बात से सहमत हूँ।
फिर भी घर बचे रहेंगे, बसे रहेंगे॥ नववर्ष की शुभकामनाएं॥
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं!
ये तो हम हिंदुस्तानियों का दिल बड़ा है..अनजाने में ही सही एक नया साल जोड़ लिया अपने जीवन में.....संक्रातिं को पूजा करके या हवन करके नया साल मनाएंगे..बसंत में भी यही होगा..फिर विक्रम संवत तो मनाते ही हैं ..तो चलिए इस बहाने हर तीन चार महीने में एक बार नया साल मनाएंगे और जल्दी जल्दी अपने कर्म देखेंगे या नए कर्म की लिस्ट बनाएंगे जो करने होंगे..
नया साल. एक और दिन.
कैलेंडर जरूर बदलते हैं पर इंसानी फितरत तो वैसी ही रहती है......
काश कि ऐसा होता कि 2011 का कैलेंडर दीवार से उतरता और जैसे ही 2012 का लगता, इंसान भी बदल जाते... बदलाव यानि इंसानों की बुराईयों का जाना, मतभेदों, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, का बदल जाना.... और फिर नया सवेरा सब कुछ नया लेकर आए, काश कि ऐसा हो जाए......
साल की आपकी आखिरी पोस्ट काफी कुछ सीख दे रही है...... बाजारवाद पर हावी इंसानों को सीख..... बाजार से बडा परिवार होता है यह सीख......
नववर्ष की शुभकामनाएं.......
नए साल के तीन अक्स-
अक्स नंबर 1
महानगर का पांचसितारा होटल...रंगीन जलती बुझती रौशनियों से नहाया समां...चारों ओर फिज़ा में फैली हुई एक से बढ़कर एक विदेशी परफ्यूम की खुशबू...तरह की तरह खुशबू मिलकर नथुनों को चीरती हुई बेहोश कर देने की हद तक पहुंच रही थी...वैसे भी यहां होश में कौन था...रात 11 बजकर 30 मिनट...डीजे का शोर कान फाड़ने वाले डेसीबल्स तक पहुंच गया था...नौजवान जोड़े इस तरह चिपक कर नाच रहे थे कि बीच से हवा को गुज़रने की भी जगह न मिले...उन्मुक्त व्यवहार सार्वजनिक वर्जनाएं तोड़ने की सीमा तक पहुंच चुका है...कपड़े ऐसे कि शरीर ढकता कम दिखता ज़्यादा...जो कपड़े मुश्किल से टिके भी हुए हैं वो भी सरकने को तैयार...जश्न में मौजूद अधेड़ सब कुछ देखते हुए भी नज़रअंदाज कर रहे हैं...तभी स्टेज पर वो पहुंच चुकी है़ जिन्हें इस मौके के लिए खास तौर पर थिरकता देखने को सभी बेचैन थे...बैचेन क्यों न हो हज़ारों खर्च कर सिर्फ एक झलक जो मिलनी थी...जी हां यहां बात बॉलीवुड की एक सेक्सी सुपरस्टार की हो रही थी...जिसे बीस-पच्चीस मिनट तक ठुमके दिखाने के लिए दो करोड़ रुपये में साइन किया गया था...अब बारह बजने में बस 5 मिनट रह गया है...सभी का जोशोखरोश अब चरम पर है...सब इस इंतज़़ार में कि बारह बजते ही न जाने वो कौन सी दुनिया में पहुंच जाएंगे...बारह बजने को हैं...बत्तियां बंद कर दी जाती हैं...हैप्पी न्यू ईयर का हर गले से ऐसे शोर उठता है कि सिवाय हल्ले के कुछ सुनाई नहीं देता...दो-तीन मिनट तक अंधकार रहता है...इस अंधकार में कई सार्वजनिक वर्जनाएं भी टूट गई हो तो कोई बड़ी बात नहीं...बिजली आ जाती है..कई गुब्बारे फूटते हैं...गुलाब की पंखुडियों से फर्श अट जाता है...अब कई शैंपेन एक साथ खुल जाती है...एक दो घंटे तक ज़ोर-ज़ोर से हाथ-पैर मारने का खेल (जिसे हिपहॉप, रैप, सालसा न जाने क्या क्या नाम देकर डांस कहा जाता है) चलता है...इसके बाद सब निढ़ाल होते जा रहे हैं...कुछ ऐसे भी हैं जो मदहोश होकर पैरों पर चलने लायक ही नहीं रह गए हैं...जो खुद गिर रहे है वही दूसरों को सहारा दे-देकर गाड़ियों तक ले जा रहे हैं..घर सही सलामत पहुंच जाएं...वही बड़ी बात है...
अक्स नंबर 2-
नोएडा के मशहूर चौराहे के पास फुटपाथ...वक्त रात दो बजे...चाय वाले के खोखे के पास कुछ मज़दूर मुंह तक चादर ओढ़े अलाव सेंक रहे हैं...थोड़ी थोड़ी देर बाद अलाव में गत्ते कागज डालकर आग को न बुझने देने की मशक्कत भी चल रही है...उन्हीं के बीच से एक अधेड़ कहता है ओस में भीगकर मरे ये गत्ते भी जलने का नाम नहीं ले रहे हैं...सर्द हवा ऐसी कि शरीर को अंदर तक चीरे जा रही है...दूसरा हां में हां मिलाते कहता है...अब तो कई बरस की सर्दी झेल झेल कर ये कमबख्त गरम चादर भी सूत हो गई है....भला हो उस रहमदिल सेठ का जिसने कभी दान मे ये चादर दी थी....ये सब चल ही रहा था कि सामने से नागिन की तरह बल खाती एक चमचमाती बड़ी सी कार ज़ोरदार ब्रेक के साथ झटके से रुकती है...कार में फुल वोल्यूम में स्टीरियो चल रहा है और अंदर बैठे लड़के लड़कियों मस्ती में एक दूसरे के ऊपर लुढ़के जा रहे है...तभी एक रईसजादा कार से मुंह निकाल कर अलाव सेंक रहे मज़दूरों से तंज के लहजे में कहता है...विश यू वैरी हैप्पी टू थाउसेंड टेन...कार फिर तेज़ी से बैक कर निकल जाती है...एक कम उम्र का मज़दूर बड़ों से पूछता है...चचा क्या कह रहे थे ये बबुआ...एक बुज़ुर्ग जवाब देता है...कुछ नहीं भैया, सब अमीरों के चोंचले हैं...हम गरीबों के लिए क्या नया और क्या पुराना साल...हमारे लिेए तो हर साल इस वक्त ठंड मुसीबत बन कर आए है...पिछले साल सरकार ने रात को चौराहे पर लकड़ियां जलवाने का इंतज़़ाम करवाया था, इस बार वो भी गायब...
अक्स नंबर तीन-
एक मिडिल क्लास फैमिली का लिविंग रूम...घर के सभी लोग बेड और सोफे पर धंसे फ्लैट टीवी स्क्रीन पर नववर्ष के प्रोग्राम देख रहे हैं...बीच-बीच में चाय, कुरकुरे और मुंगफली-गुड़पट्टी के दौर भी चल रहे हैं...रिमोट के ज़रिेए बीच-बीच में चैनल भी बदले जा रहे हैं...साथ ही सब की रनिंग कमेंट्री भी चल रही है...एक चैनल पर गोवा के रिसॉर्ट से नववर्ष का कार्यक्रम लाइव दिखाया जा रहा है...अंगूर खट्टे है की तर्ज पर एक आवाज़ सुनाई देती है...हद हो गई भई बेशर्मी की...कैसे कैसे अश्लील स्टैप्स दिखाए जा रहे हैं...क्या होगा इस देश का...लेकिन यहां भी सिर्फ जुबानी खर्च ही हो रहा है...टीवी को स्विच-ऑफ कोई नहीं कर रहा...घर का एक युवा ख्याली पुलाव बना रहा है कि शायद इस साल अच्छी नौकरी मिल जाए तो अगले नववर्ष पर ज़रूर किसी न्यूईयर पार्टी का टिकट खरीदूंगा...
जय हिंद...
खुशदीप जी, आपने तीन अक्श खींचे और तीनों ही लाजवाब हैं। हमने बाजारवाद को इतना हावी कर लिया है कि मानवता शायद समाप्त होती जा रही है। त्योहार हमारे जीवन में परिवार का सौहार्द बढाने के लिए होते थे लेकिन अब तो केवल बाजार बढ़ाने के लिए हो गए हैं। आपका आभार जो आपने इतना अच्छा चित्रण किया।
रजाई में दुबका पुराना साल जा रहा है, सिगरेट सुलगाता नया साल आ रहा है।
.......नववर्ष आप के लिए मंगलमय हो
शुभकामनओं के साथ
संजय भास्कर
व्यक्ति और दल
दोनों से ही ऊपर
है यह राष्ट्र महान
और राष्ट्र संचालन
को ही बना है संसद
और संविधान.
गौरव - गरिमा
संविधान की
यहाँ अक्षुण
सदा बनी रहे,
किन्तु दायित्व
उसी का यह,
राष्ट्र में सदा
सुख शान्ति रहे.
भयमुक्त और
भ्रष्टाचारमुक्त कैसे
यह शासन तंत्र रहे?
व्यक्ति या दल,
रहे न रहे,
यह राष्ट्र हमारा
अमर रहे.
गणतंत्र रहे,
स्वतंत्र रहे...
यही एक
अपेक्षा अपनी,
आनेवाले इस
नए वर्ष से.
अपने प्यारे देश,
भारत वर्ष से.
परन्तु कभी न
स्व' का 'तंत्र' रहे.
हाँ! कभी न
स्व' का 'तंत्र' बने.
हर नया दिन 'बसंत ' है ..
नए साल की शुभकामनायें ..
kalamdaan.blogspot.com
भारत का ज्ञान आज साथ होता तो तुझे हम बसन्त में विदा करते और 2012 को भी बसन्त में ही अपने घर भोर की बेला में घर ले आते। --- सुन्दर सत्य बचन हैं जी....
----दो घनाक्षरी प्रस्तुत हैं..
पहली जनवरी को मित्र हाथ मिलाके बोले ,
वेरी वेरी हेप्पी हो न्यू ईअर,यह मित्रवर |
हम बोले शीत की इस बेदर्द ऋतु में मित्र ,
कैसा नव वर्ष तन काँपे थर थर थर |
ठिठुरें खेत बाग़ दिखे कोहरे में कुछ नहीं ,
हाथ पैर हो रहे छुहारा से सिकुड़ कर |
सब तो नादान हैं पर आप क्यों हैं भूल रहे,
अंगरेजी लीक पीट रहे नच नच कर ||
अपना तो नव वर्ष चैत्र में होता प्रारम्भ ,
खेत बाग़ वन जब हरियाली छाती है |
सरसों चना गेहूं सुगंध फैले चहुँ ओर ,
हरी पीली साड़ी ओड़े भूमि इठलाती है |
घर घर उमंग में झूमें जन जन मित्र ,
नव अन्न की फसल कट कर आती है |
वही है हमारा प्यारा भारतीय नव वर्ष ,
ऋतु भी सुहानी तन मन हुलसाती है ||
सच ब्लॉग लिखने पढने के लिए समय निकलना आसन काम नहीं.....आपने तो पोस्ट के लिए निकाल भी लिया .लेकिन हम तो औपचारिक भर नया साल मानते हैं ..बच्चों की ख़ुशी के लिए उनके साथ टीवी पर प्रोग्राम देखकर ....
बहुत बढ़िया विश्लेषण और प्रस्तुति..
आपको भी नववर्ष की सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें..
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
आपका कहना भी सच है, पर खुशियाँ जब भी बाँट लें
अच्छा है..वसंत में भी नव वर्ष मनाएंगे ही..आप को सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
"...क्या जीवन में इतनी निराशा है? क्या जीवन में इतनी कटुता है? जो सबकुछ भुला देना चाहते हैं !!!"
महत्वपूर्ण और प्रासंगिक प्रश्न उठाये हैं आपने...
good post.
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,२०१२ की बात करे कि हमे क्या नया करना है सुंदर आलेख ......
welcome to new post--जिन्दगीं--
प्रिय अजित
हैप्पी न्यू इयर
तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा बहुत सुंदर लिखती हो
में भी हिंदी में लिखने की कोशिश कर रही हु
भगवन मुझे सफलता दे ,यह नव वर्ष में कामना
करती हु
आमीन
किरण
प्रिय अजित
हैप्पी न्यू इयर
तुम्हारा ब्लॉग पढ़ा बहुत सुंदर लिखती हो
में भी हिंदी में लिखने की कोशिश कर रही हु
भगवन मुझे सफलता दे ,यह नव वर्ष में कामना
करती हु
आमीन
किरण
हम सब भारतीय नव वर्ष भी मनाएंगें।
फिलहाल विदेशी नववर्ष की शुभकामनाएं।
मन की भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति,सुंदर लेख ......
WELCOME to--जिन्दगीं--
सही है ।
हमारा नया वर्ष तो बसंत ही लाता है।
bahut hi rochak prastuti Gupta ji ....badhai .
सुंदर अभिव्यक्ति,
welcom to--"काव्यान्जलि"--
सब बाज़ारवाद की सौगातें हैं
बहुत ही उम्दा पोस्ट है,काफी अच्छा लिखती है आप.....about me में आप ने जो पंक्तियाँ लिखी वो बहुत ही प्यारी है.....अच्छा है आप का ब्लॉग .......
अजित जी
धन्यवाद ! पारिवारिक व्यस्तता बढ़ने से ब्लॉग से दूरी हो गई है बस जब छोटे भाई बहन कोई लिंक भेज कर ब्लॉग पर लगाने के लिए कहते है तभी यहाँ आना हो पाता है | अच्छा लगा जान कर की किसी को मेरे न होने का पता है खोज खबर लेने के लिए धन्यवाद | देर से ही सही आप को नव वर्ष की शुभकामनाये !
हार्दिक मंगलकामनायें!
भारत भी यदि दूसरे देशों से वर्तमान में जीना सीख लें तो भारत का भविष्य भी ज्यादा सुखी हो सकता है।इसे भारत का दुर्भाग्य कहें की अतीत के सशक्त होने के बावजूद भी वह अपनी पहचान धूमिल करता जा रहा है |" शानदार पोस्ट "है|
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