सारी दुनिया में बेरोजगारी अपने पैर फैला रही है और दूसरी तरफ अत्यधिक काम का दवाब लोगों को तनाव ग्रस्त कर रहा है। परिवार संस्था बिखर गयी है और विवाह संस्था भी दरक रही है। अमेरिका से चलकर ओबामा भारत नौकरियों की तलाश में आते हैं और मनमोहन सिंह जी कहते हैं कि हम नौकरी चुराने वाले लोग नहीं हैं। बेटा इंजिनीयर या मेनेजमेंट की परीक्षा देकर निकलता है और उसे केम्पस के माध्यम से ही नौकरी मिल जाती है। नौकरी भी कैसी लाखों की। पिताजी ने हजार से आगे की गिनती नहीं की और बेटा सीधे ही लाखों की बात करने लगा। आकर्षक पेकेज के साथ आकर्षक सुविधाएं भी। एसी और फाइव स्टार से नीचे बात ही नहीं। यहाँ अगल-बगल चार फाइव स्टार होटल हैं लेकिन अभी चार बार भी नहीं जाया गया और आजकल के बच्चे केवल उन्हीं की बात करते हैं। उनसे फोन से बात करो तो कहेंगे कि अभी समय नहीं, घर आने की बात करो तो छुट्टिया नहीं। सारे ही नाते-रिश्तेदार बिसरा दिए गए। चाहे माँ मृत्यु शय्या पर हो या पिताजी, बेटे-बेटी के पास फुर्सत नहीं। हाँ दूर बैठकर चिंता जरूर करेंगे और बड़े अस्पताल में जाने की सलाह देकर उनका बिल भी बढ़ाने का पूर्ण प्रयास करेंगे।
इतनी लम्बी-चौड़ी भूमिका बाँधने का मेरा अर्थ केवल इतना सा है कि आखिर इन सारी समस्याओं का कोई हल भी है क्या? मेरे पास इस समस्या का एक हल है, आपको मुफ्त में बताए देती हूँ। जब हम नौकरी करते थे तब हमने कभी भी छ: घण्टे से अधिक की नौकरी नहीं की। हमारी छ: घण्टे की नौकरी हुआ करती थी और शेष जूनियर स्टाफ की अधिकतम आठ घण्टे की। हम अपना परिवार भी सम्भालते थे, बच्चों को भी पूरा समय देते थे और अपने जीवन को अपनी तरह जीते थे। इसके बाद भी हमें नौकरी रास नहीं आयी और हमने छोड़ दी। इसलिए ओबामा सहित मनमोहन सिंह जो को यह बताने की आवश्यकता है कि आज जो घाणी के बैल की तरह आपने लोगों को नौकरियों में जोत रखा है उसे बन्द करो। अपने आप बेरोजगारी दूर हो जाएगी। आज प्राइवेट सेक्टर में प्रत्येक व्यक्ति 12 घण्टे की नौकरी कर रहा है। एक व्यक्ति के स्थान पर दो को नौकरी दो और इतने वेतन देकर आप क्यों उसे आसमान पर बिठा रहे हैं और माता-पिता से दूरियां बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं? अधिकतम वेतन निर्धारित करो। मेरे घर के सामने ही एक बैंक है, उस बैंक का मेनेजर सुबह नौ बजे आता है और रात आठ बजे के बाद ही जा पाता है। यह क्या है? कहाँ जाएगा उसका परिवार? आज यदि इन्फोसिस जैसी कम्पनी में एक लाख व्यक्ति काम कर रहे हैं तो इस नीति से दो लाख कर्मचारी हो जाएंगे और वेतन में भी वृद्धि नहीं होगी। क्या आवश्यकता है करोड़ों के पेकेज देने की? इन पेकेजों ने ही मंहगाई को आसमान पर चढ़ाया है। जब एक नवयुवा को पचास हजार रूपया महिना वेतन दोगे तो वह सीधा मॉल में ही जाकर रुकता है और बाजार में जो कमीज 100 रू में मिलती है उसके वह 1500 रू. देता है। बेचारे माता-पिता तो रातों-रात बेचारे ही हो जाते हैं क्योंकि उनका लाड़ला लाखों जो कमा रहा है। इसलिए बेरोजगारी के साथ समस्त पारिवारिक और मंहगाई की समस्या से निजात पाने का एक ही तरीका है कि इन बड़ी कम्पनियों को अपनी नीति बदलनी होगी। समाज को इन पर दवाब बनाना होगा नहीं तो प्रत्येक युवा तनाव का शिकार हो जाएगा। मेरी बात समझ आयी तो समर्थन कीजिए।
49 comments:
बात तो पते की है जी
सचमुच सीधा और सरल उपाय
लेकिन क्या कम्पनियां ध्यान देंगी
प्रणाम
बहुत सुन्दर विचार......लेकिन इस देश की सरकार पूंजीपतियों की दलाल बन चुकी है इसलिए इस तरह के विचारों को सिर्फ जनता एकजुट होकर ही जमीनी स्तर पर सरकार से लागू करवा सकती है ....सरकार की श्रम नीतियाँ सिर्फ कागजों में है तथा शिक्षा बिल्डर व शिक्षा माफिया के जिम्मे जिसकी वजह से भी ऐसे हालत हैं .....
हम पूर्वज हमें सन्तोषी बनने की सीख दिया करते थे, हमारी नीति थीः
साईं इतना दीजिए जामे कुटम समाय।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय॥
हमारी गलत शिक्षानीति के कारण आज हम इन सीखों और नीतियों को मूर्खता समझने लगे हैं परिणाम स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है कि हम सिर्फ धन के पीछे भाग रहे हैं। धन कमाने के लिए चाहे कुछ भी क्यों ना गवाँना पड़े।
विचार तो आपके बेहतरीन हैं लेकिन कोई ध्यान नहीं देगा। कोई कम्पनी तो यह सोचने से रही, सरकार सोचे तो सोचे। हां, सरकार सोच सकती है और कानून भी बनाया जा सकता है।
आप की बात से कुछ हद तक सहमत हूँ लेकिन अगर सरकार या कंपनी ऐसा करने की सोच रख कर चले तो भी अपने टारगेट पूर्ण नहीं कर सकती क्युकी एक कर्मचारी जिसे वो १२ घंटे के बदले डबल तनखा दे रही है, ये जरुरी तो नहीं उस कर्मचारी जितना ही उसे योग्य और अनुभवी कर्मचारी मिले और उतनी ही उसकी क्षमता हो. हमारे देश में बेरोज़गारी अनपढ़ होने के वजह से ज्यादा है न की पढ़े लिखे लोगो को इतनी बेरोज़गारी है. लेकिन हाँ कुछ हद तक अगर सरकार और कंपनिया इस नज़रिए से सोचे तो कुछ तो बात बन सकती है और समस्या पूरी नहीं तो कुछ तो सुल्झेगी .
एकदम सही और सरल उपाय है। बस कंपनियों को और सरकार को इस पर अमल करने की देर है।
सुन्दर विचार पर यहाँ तो मुनाफाखोरी का रोग सरकार को भी लग चुका है
विचारणीय बात कही है ...निजी कंपनियों को छोडिये अब तो सरकार भी वेतन बढा चढा कर देती है ...अब मंहगाई न बढे यह कैसे हो सकता है ...और फिर साथ में रिश्वत लेना ...जन्मसिद्ध अधिकार है वो तो ...
5.5/10
विचारणीय पोस्ट
यह मुद्दा पहले भी कई बार उठ चुका है.
बेरोजगारी के संकट को दूर करने का यह तरीका क्यों नहीं अमल में लाया जा रहा है, इस पर भी चिंतन होना चाहिए.
घर आने की बात करो तो छुट्टिया नहीं। सारे ही नाते-रिश्तेदार बिसरा दिए गए। चाहे माँ मृत्यु शय्या पर हो या पिताजी, बेटे-बेटी के पास फुर्सत नहीं। हाँ दूर बैठकर चिंता जरूर करेंगे और बड़े अस्पताल में जाने की सलाह देकर उनका बिल भी बढ़ाने का पूर्ण प्रयास करेंगे
सीधे कलेजे पर चोट की है .और बात पते की है.काश कंपनियां भी समझ पाती.
बिल्कुल सही बात है, पर केवल कंपनियों के सोचने से नहीं होगा, ये सोच युवाओं में भी होना चाहिये कि एक निश्चित रकम कमाने के बाद जॉब मार्केट से उन्हें हटकर नये लोगों को मौका देना चाहिये। तभी इस समस्या का हल होगा।
अजित जी
असल में ये कंपनियाँ दो व्यक्ति का काम एक को नहीं देती है ये एक ही व्यक्ति से दो लोगों का काम करवाती है जबकि वेतन डेढ़ का देती है | वेतन के साथ सुविधाए भी देती है ऐसे में ये यदि अपने कर्मचारी की संख्या बढ़ाएंगे तो इनको बहुत महगा पड़ेगा दूसरे इनको और ज्यादा कर्मचारी की जरुरत ही नहीं हैऔर ये वेतन और सुविधा ही है जिसके लालच में ज्यादा काम किया जाता है |
दूसरी तरफ है सरकारी कर्मचारी वो तो सरकार से एक का पैसा लेती है और ऊपरी कमाई से हजारो लाखो का पैसा खा जाती है और काम तो एक बच्चे के बराबर का भी नहीं करती है | एक स्कुल में पढ़ने वाला बच्चा भी उनसे ज्यादा मेहनत करता है काम करता है | ऐसे निक्कामो की फौज सरकार और ना बढ़ाये तो ही अच्छा है |
इससे सरल तरीका तो यह है कि पहले की तरह आधी आबादी घर में बैठे :)
आपकी बात से सहमत हैं!
बहुत ही बेहतरीन हल आपने दिया है. लेकिन सरकार के काम का नहीं है
यह तो बड़ा आसान तरीका है ।
रोज़गार के लिए अभी बहुत संभावनाएं हैं । बस योजनाओं की ज़रुरत है ।
Sujhaav to badhiya hai...koyi mane tab na! Ek aur sujhav kabhi kisi samay maine diya tha...mahila mulazimon ko leke.Gar unhen unke bachhe 5 saal ke hone tak aadhee tankhwah pe chhuttee dee jaye to kayi zyada mahilaon ko naukari mil sakti hai.
aaj samajh main aaya ki log itne unsocial kyu hai .
bhai unca pas time he nahi hai social hone ke liye.
bahut hi sunder rasta hai
hum aaj se hi lagu kar date hai----
वन्दे मातरम....
आपका कथन सही है..यह समस्या का समाधान हो सकता है...केवल आधारभूत सुविधाओं और व्यवस्थाओं पर खर्च दुगना हो जाएगा वह भी ओद्योगिक विस्तार का ही काम होगा...और ज़्यादा लोग खपेंगे आधारभूत उद्योगों में...आर्थिक भेदभाव भी कम होगा...हमारे योजना आयोग को सोचना चाहिए....सस्ता ऋण देकर आधारभूत सुविधाओं में विस्तार किया जा सकता है...
अवधिया जी की बात में दम है ! शुभकामनायें !
बहुत सही और सटीक बात की आपने..... सचमुच विचारणीय सुझाव
एक का काम दो व्यक्तियों को देने से लोगों का दायित्व कम हुआ,निष्ठा घटी, कंपनी का दायित्व बढ़ा ,उनकी व्यवस्था का खर्च,कार्य-विभाजन, ताल-मेल, सुविधाएँ,काम कम लोग ज़्यादा तो दिमाग़ बढे खुराफ़ातें बढीं ,झंझट बढ़े ,सँभालना मुश्किल -और कर्मचारी आराम से चारण करेंगे-यह तो आदत में शुमार है!
आपके सुझाव को अर्थशास्त्र में "अंडर-इम्प्लोय्मेंट" या ऐसा ही कुछ कहा जाता है और यह भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की एक बडी समस्या होती थी। फ्रांस की बुरी हालत के लिये भी इसे ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। सच तो यह है कि पार्ट-टाइम नौकरियाँ अभी भी उपलब्ध हैं और करने वाले कर भी रहे हैं। इसके अलावा समाज का एक बडा वर्ग नौकरी नहीं करता है बल्कि अपने व्यवसाय में है। अगर यह लागू हो भी जाये तो क्या ऐसे दुकानदारों की दुकानें हर 6 घंटे में ज़बर्दस्ती बन्द करा दी जायेंगी? बिना परिवार वाले बेचारे कुशल और मेहनती लोगों का क्या होगा? फौज़-कर्मियों (24 घंटे की ड्यूटी) की संख्या तिगुनी करनी पडेगी। और भी बहुत सी गडबडें होने की सम्भावना है।
... हड्ताली जुलूस भी कहीं अधिक विशाल (और अधिक हिंसक?) हो जायेंगे.
मैंने बेरोजगारी और पारिवारिक स्थितियों से उबरने का एक उपाय बताया था लेकिन आप सभी ने इसके आगे भी कई प्रश्न खड़े किए है। इससे मेरी जानकारी में वृद्धि हुई। चन्द्रमौलेश्वर जी का सुझाव तो आंदोलन करवाने जैसा है, इस पर तो मैं क्या कहूं। लेकिन कुछ सुझाव ऐसे भी हैं जिनसे लगता है कि बेरोजगारी ही ठीक है, कर्मचारियों से आहत हैं लोग। सभी के अपने सुझाव है और सभी का स्वागत है।
आपकी बात बिल्कुल सही है सरकार और निजी कंपनियों को वेतन में एकरूपता करने की ज़रूरत है जिससे नौकरियों में बढ़ोत्तरी हो..पर इस पर कार्य तो निजी कंपनियाँ ही कर सकती है.. सबसे बड़ी बात तो यह है की लोगो को अपने परिवार के लिए भी एक निश्चित समय मिल जाएगा....बस सरकार को अमल करने की ज़रूरत है..एक बढ़िया विचार...धन्यवाद
बडी दूर की कौडी खोज कर लायी हैं आप्……………आपके कथन से पूरी तरह सहमत हूं…………इस उपाय पर अमल होना ही चाहिये।
अजीत जी उपरी तौर पर ये बातें जितनी सरल लगती है, वास्तव मे उतनी सरल है नही ! और उसके लिये जिम्मेदार हैं हमारे देश के बेढंगे कानून, जो हर जगह विषमताओं मे व्रिद्धि करते है! मसलन एक छोटा व्यव्सायी जो चह्ता तो है कि खूब सारे कर्मचारी रखे लेकिन आडे आ जाते है, ई एस आइ , पी एफ़, बोनस ऐक्ट ! दूसरी तरफ़ एक व्यव्सायी एक उचित वेतन पर अपने कर्मचारियों की भर्ती करता और उस खास व्यवसाय विषेश के लिये उनको ट्रेन करता है , मगर उस्का कम्पीटीटर उसके कर्मचारियों को दोगुनी सेलरी का लालच देकर तोड ले जाता है ! तो भला वह व्यव्साई क्या करेगा?
दोनों उपाय सटीक हैं पर मन के मोहन को कौन मनायेगा।
आदरणीया,
आपने समाधान तो बहुत अच्छा ही प्रस्तुत किया है लेकिन १००% सार्थक नहीं है ....
बेरोजगारी सिर्फ अशिक्षा और संभावनाओं के आभाव की ही वजह से नहीं है मैं मानती हूँ कि ये भी अहम् कारन है लेकिन व्यवसायिक और व्यवहारिक शिक्षा कि कमी के कारन संभावनाओं की कमी से गुज़रना पढ़ता है ....
पहले तो मैं आपको यह बता दू की यहाँ अमेरिका में अमेरिकन्स लोग कभी ५:३० के बाद ऑफिस में काम करना पसंद नहीं करते बल्कि करते ही नहीं आर्थिक मंदी के दौर में कम सेलेरी में भी इनके अपने लोग ही आपना श्रेष्टतम परफोर्मेंस देते तो शायद इनकी रीड की हड्डी में दर्द थोड़ा कम होता !!
ये वो लोग है जो घंटों काम करते जो आउट सोर्सिंग के जरिये इनके प्रजेक्टस पाते है. करते है बेचारे, जी जान से... क्योकि इनके पास वर्किंग आर्स नहीं होते दिए गए टास्क होते है जो उस समय सीमा में पुरे करने ही होते है ...नहीं करेंगे निकल दिए जाएंगे और कोई करेगा .
कम्पनियाँ भी क्या करेंगी ....किसी भी प्रेजेक्ट में उससे जुड़े सभी व्यक्तियों की अपनी अहम् भूमिका उनकी किसी विशेष तकनीक में उसके विशेष ज्ञान के कारन होती है . इसे लोगो को की रोल परफोरमर कहते है जिसके होने न होने का सीधा सीधा फर्क कंपनी के ओवाराल परफोर्मेंस पर पढ़ता है .....यानी वो अपने विशेष ज्ञान के कारन ४ लोगो जितना काम करता है इसीलिए उतना पाता भी है ...आपका कहना यहाँ आअकर बिलकुल सही है की ४ लोगो का कम ४ को ही दिया जाना चाहिए लेकिन अभी उतने ही योग्य ४ लोग होना भी चाहिए .....सबसे बड़ी ज़रूरत है शिक्षा पद्दति में कुछ बदलाव लाने की . समय के अनुसार लोग इसकी महत्ता समझ भी रहे है लेकिन अभी इसमे बहुत समय लगाना है .
फिर भी ....फिर भी मैं यहाँ इस बात को बिलकुल नकार नहीं सकती की इन निजी कंपनियों की निति पर अंकुश लगाना ही चाहिए निश्चित तौर पर एक हद तक ये योगदान दे सकती है इस समस्या से उभरने का क्योकि कही न कही अपने प्रोफिट के कारन ये एम्प्लोयस से बहुत अधिक काम करवा रही ही जिसे ४ में न सही अगले एक में तो बाँटने की स्थिति और ज़रूरत दोनों ही है .
सबसे बड़ा और अहम् सवाल है महगाई का तो अर्थ शास्त्र का एक सिद्धांत कभी कही पढ़ने में आया था कि अर्थ शास्त्र के नियम तभी लागू हो पाते है अगर ......अगर अन्य बातें सामान हो तो !!
ये अन्य बातें बहुत है बहुत से कारन है ...भ्रष्टाचार तो सबसे पहला और भी कई
आपने ऐसा विषय चुना की बाटने को इतने विचार आगए :)
यह एक स्वस्थ संवाद है इसे किसी तरह का विरोध ना मानियेगा ....जहाँ तक मैं समझती हूँ लगभग ये सभी बातें आप भी जानती ही होंगी ...आज मेरे ब्लॉग पर भी किसी रचना तो आपका इन्जार है :))
सादर
कोइ हो या ना हो, मै आपकी इस बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ |
ाजित जी मेरा तो पूरा समर्थन आपकी इस बात के साथ है। लेकिन इस बाजार बाद ने और विदेशी कम्पनियों ने देश को बर्बाद करने का ठेका ले रखा है। शायद इतना अन्तर एक मज़दूर या बडे अफसर मे विदेश मे देखने को नही मिलेगा। फिर यहाँ काम मजदूर करता है पैसे कुर्सी तोडने वाले को मिलते हैं प्राईवेट मे दो आदमियों का काम एक से ले कर बेरोज़्गारी को बढावा दिया जा रहा है। अच्छी पोस्ट के लिये बधाई।
ाजित जी मेरा तो पूरा समर्थन आपकी इस बात के साथ है। लेकिन इस बाजार बाद ने और विदेशी कम्पनियों ने देश को बर्बाद करने का ठेका ले रखा है। शायद इतना अन्तर एक मज़दूर या बडे अफसर मे विदेश मे देखने को नही मिलेगा। फिर यहाँ काम मजदूर करता है पैसे कुर्सी तोडने वाले को मिलते हैं प्राईवेट मे दो आदमियों का काम एक से ले कर बेरोज़्गारी को बढावा दिया जा रहा है। अच्छी पोस्ट के लिये बधाई।
मेरा पूरा समर्थन है ..क्यूं न हम ही शुरुआत करें ,आप और हम तो इस व्यवस्था के पार्ट है तो चलो निकलें यहाँ से ...
... saarthak abhivyakti !
बहुत आसान उपाय है पर आजकल एक ही आदमी सारा पैसा कामना चाहता है पूरे खानदान में किसी ने न कमाया हो उतना कामना है सो पैकेज भी बड़ा मांगते हैं और देने वाले देते भी हैं
बिलकुल सटीक उपाय |कम्पनियों को इस दिशा में जरुर सोचना चाहिए |निजी बेंको को भी इस पर विचार करना चाहिए |
सरकारी पाठशालाओ के शिक्षको के लिए भी यह नियम होना चाहिए की वे केवल बच्चो को पढाये |और दूसरे काम जैसे जनगणना ,स्वास्थ सबंधी सर्वे आदि को बेरोजगार पढ़े लिखे लोगो को मानदेय देकर करवाए जिससे रोजगार तो मिलेगा ही और पढ़े लिखे लोग जो तकनिकी शिक्षा ज्ञान के आभाव में बेरोजगार रह जाते है उन्हें काम और अनुभव मिलेगा |
आपका सुझाया उपाय अंकगणितीय है, समाज और बाजार अक्सर बीजगणितीय पद्धति से हल होते हैं और टोपोलॉजी की तरह उलझते भी हैं, इसलिए इसे लगाने पर उत्तर आएगा आशा नहीं की जा सकती, लेकिन आपकी मंशा से कौन सहमत न होगा.
बहुत ही सही बात कही आपने...एक अंधी दौड़ लगी हुई है...पर लोगों के पास अपना जीवन जीने का वक्त नहीं है...जो पैसे कमाते हैं उसे उपभोग करने का भी समय नहीं.
आज एक प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारी की तनख्वाह में चार परिवार पल जाएँ
आपका बताया उपाय भी अन्य उपायों की तरह एक उपाय है जिसे अगर कई जगह लागू किया जाए तो काफी कुछ अच्छा हो सकता है। अनावश्यक सैलरी देने फिर दूगना टारगेट पूरा करने का दवाब लोगो को जीने नहीं दे रहा। काफी पहले एक व्यंग पढ़ा था कि एक आदमी सत्ता में आने के बाद सरकारी नौकरी में पती या पत्नी में से एक को ही नौकरी करने की इजाजत देता है जिससे एक साथ कई परिवारों का भला हो जाता है क्योंकी कई परिवार इस गरीब देश में पल जाते हैं। पर वो चुनाव हार जाता है। तो हर उपाय के कुछ साइड इपेक्ट्स होते ही हैं। पर उपायों को लागू तो किया ही जा सकता है कुछ साइड इफेक्टस के साथ।
साथ ही समाज की मानसिकता भी बदलनी होगी। देश की 80 फीसदी गरीब जनता को ध्यान में रखेंगे तो आवश्यकता से अधिक धन की बर्बादी न कर गरीबों को शिक्षित औऱ हुनरमंद बनाने में खर्च करने की आदत विकसित करनी होगी।
bilkul sahi kaha aapne
सही कहा आपने। पर काश, इसपर ये कंपनियां भी विचार करतीं।
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जानिए गायब होने का सूत्र।
….ये है तस्लीम की 100वीं पहेली।
समाज को इन पर दवाब बनाना होगा नहीं तो प्रत्येक युवा तनाव का शिकार हो जाएगा। बहुत सार्थक बात कही आपने. सोचने पर मजबूर.
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'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
सुंदर विचार... पर कोई इसको अमल में लाए तो...
बात बहुत पते की है लेकिन क्या सभी को पचास हजार या लाखों में तनख्वाह मिल रही है लेकिन कुछ तो गलत हो रहा है - पैसा ये पैसा हाय पैसा ये कैसा हाय, ये हो मुसीबत, ना हो मुसीबत बड़ा झाला है जी आजकल।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है! हार्दिक शुभकामनाएं!
लघुकथा – शांति का दूत
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सहमत हूँ आपसे । आज प्राइवेट कम्पनियाँ खून चूस रही हैं। दो गुना कर्मचारी करके वेतन आधा कर दें। आइडिया अच्छा लगा। व्यवहारिक भी।
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vha kya bat hei
good idea
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