क्या आप विश्वसनीय हैं? यह प्रश्न मेरे आसपास हमेशा खड़ा हुआ रहता है। कभी पीछा ही नहीं छोड़ता। बचपन से लेकर प्रस्थान के नजदीक भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। कभी पिताजी पूछ लेते थे कि तुम विश्वसनीय संतान हो? उनके पूछने का तरीका भी नायाब था, ठोक बजाकर देखते थे और फिर पूछते थे कि जिन्दगी भर ऐसे ही ठुकते पिटते रहने की काबिलियत है ना तुम में? उस समय रोने की भी मनायी थी, बस यही कहते थे कि पूरा प्रयास करेंगे कि आप जैसे महान पिता की तुच्छ सी संतान बनकर दुनिया में रहें। कुछ और बड़े हुए तो पति की जेब से भी यही प्रश्न निकल आया। मैंने कहा, लो यह साला यहाँ भी उपस्थित है। एकदम सीधा-सादा सा जीवन जीने वाले हम से यह होस्टल में रहने वाला भी आज प्रश्न पूछने वाला हो गया? कई बार तो मन करता कि इस प्रश्न को ही एक कोने में ले जाकर धो डाले। फिर सोचते कि बेचारा यह तो केवल दूत है, इसका क्या कसूर? इसको तो जैसे रटाया गया है वैसे ही यह हमारे सामने बोल रहा है। खैर हमने प्रोबेशन पीरियड भी सफलता पूर्वक पास कर लिया। आप गलत मत समझे, यह सरकारी नौकरी वाला दो साल का प्रोबेशन पीरियड नहीं था। कानून भी कहता है कि सात साल तक ढंग से रहो तो केस वेस नहीं लगेगा। खैर हमें भी कई साल लगे इस प्रश्न को भगाने में।
हमने यही पढ़ा था और यही सभी विद्वान लोगों के मुँह से सुना था कि दोस्ती के बीच में यह प्रश्न नहीं आता। तो हमने सोचा कि दुनिया में दोस्त ही बनाए जाएं। लोग हमारी पर्सनेलिटी देखकर शक करने लगते और यह पठ्ठा “प्रश्न” चुपके से उनके ऊपर वाली जेब में जा बैठता। लोग हमारे चारों तरफ देखते और पूछते कि तुम्हारे में ऐसा क्या है जो तुमसे दोस्ती करें? तुमसे हमें क्या मिलेगा? हमारे पास तो कुछ भी नहीं हैं, अब? हम कहते कि हम तुम्हारा हर घड़ी में साथ निभाएंगे। तो प्रश्न उछलकर बाहर आ जाता कि कैसे विश्वास करें? अब विश्वास तो कैसे दिलाएं? जमानत देनी हो तो मकान वगैरह गिरवी रख सकते थे लेकिन विश्वास की जमानत तो कोई देता भी नहीं। हमने सोचा कि नहीं हम तो अकेले ही भले। लेकिन अकेले रहो तो यह नामुराद सारे जगत में ढिंढोरा पीट आता कि इन पर कोई विश्वास ही नहीं करता। हम ने भगवान का सहारा लिया, हर आदमी यही करता है तो हमने भी एकदम से फोकट के इस फार्मूले को आजमाया। करना तो कुछ पड़ता नहीं, बस हाथ ही तो जोड़ने होते हैं कि हे भगवान, हमें भी ऐसा बना कि लोग हम पर विश्वास करें। आप ताज्जुब करेंगे कि भगवान ने हमारी दूसरी तरह से सुन ली। अब हमें ऐसा पद दे दिया कि आपको भ्रम बना रहे कि आपके पास बहुत सारे लोग हैं। उन्हें विश्वास का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए था बस उन्हें तो अपना काम चाहिए था। हमें लगा कि ईमानदारी से इनका काम करना चाहिए जिससे यह नालायक “प्रश्न” मुझसे हमेशा के लिए दूर चला जाए। लेकिन भगवान भी तो केवल हाथ जोड़ने से इतना ही देता है। उसने एक और मुसीबत खड़ी कर दी। हमें लगने लगा कि हमें भी पूजा अर्चना करके प्रसाद वगैरह चढ़ाना चाहिए था। लेकिन यह तो अपनी फितरत में ही नहीं तो क्या करते? अब तो केवल भुगतना ही था। कुछ लोगों ने देखा कि यह तो विश्वास कायम करने का काम कर रही है, तो जितने भी अस्त्र-शस्त्र उनके पास थे सारे ही आजमा लिये। उस प्रश्न नामके जीव को भी अखबार में ला बिठाया। बोले कि अब बताओ, हम तुम्हारी विश्वसनीयता की तो ऐसी होली जलाएंगे कि तुम क्या तुम्हारी सात पुश्तें भी दुबारा कभी यहाँ नहीं दिखायी दे। हमने कहा कि यह तो लफड़ा फँस गया, इस प्रश्न नामक जीव को सबक सिखाने हम यहाँ आए थे उल्टे हमारे अस्तित्व पर ही संकट पैदा हो गया। मन ने कहा कि डरना नहीं, डटे रहो, जंती में से निकलकर ही सोने को गढ़ा जाता है। खैर भगवान ने हमारी सुनी और हमें वापस अपने जीवन में लौटा दिया। लेकिन लोगों में डर बैठ गया कि यह वापस ना आ जाए। तो दे दनादन, दे दनादन, गोलियों की बरसात अभी तक चालू है। और यह हमारा हितैषी “प्रश्न” दूर खड़ा हुआ मुस्करा रहा है और पूछ रहा है कि बोलो तुम कितने विश्वसनीय हो?
अब हम क्या करते? हमने ब्लागिंग का सहारा लिया और सोचा कि यहाँ तो विश्वास नाम की कोई चीज की आवश्यकता ही नहीं तो बचपन से पीछा कर रहा यह “प्रश्न” हमारे कम्प्यूटर में नहीं घुसेगा। हमें भी आनन्द आने लगा, कि कहीं भी जाकर कुछ भी लिख आओ ना कोई विश्वास की आवश्यकता और ना कोई ईर्ष्या की गुंजाइश। हम बहुत खुश रहने लगे कि इस “प्रश्न” से तो पीछा छूटा। लेकिन नहीं जी यह साला वापस निकल आया है, हम से तो फिर लोग पूछने लगे हैं कि क्या तुम विश्वसनीय हो? किसी अन्य गुट के सदस्य तो नहीं हो? जासूसी करने तो हमारे गुट में नहीं आ बैठे हो? आदि आदि। इसलिए आज सोचा कि ऐसे तो यह प्रश्न पीछा नहीं छोड़गा तो अब हम यह कह दें और सार्वजनिक रूप से हम बता दें कि भाई हम तो विश्वसनीय नहीं हैं। अब बेटा “प्रश्न” बता कि तू मेरे पास रहेगा या किसी और को तलाशेगा? जब अमिताभ बच्चन तक हीरो से विलेन बन गए तो तुम भी क्यों नहीं बन जाते विलेन? अब हम भी विलेन का ही रोल करेंगे। अब देख रही हूँ इस पोस्ट को लिखने के बाद यह मेरा बचपन का साथी “प्रश्न” मुझ से बिछड़कर कह रहा है कि तुम्हारे साथ अच्छे से रहता था अब देखो कौन मिलता है साथी? अलविदा मेरे दोस्त, तुमने खूब साथ निभाया। अब तुम सब के पास जाओ और बारी-बारी से सभी से पूछो यही प्रश्न कि क्या आप विश्वसनीय हैं?