America में रहते हुए दो माह बीत चले हैं और अब दो दिन बाद वापसी है। मन बहुत चंचल हो रहा है, अपने देश की जमीन को छूने के लिए। उस हवा को अपने अन्दर भर लेने को, जिस हवा से मेरा निर्माण हुआ था। आपका जन्मनस्थल क्यों आपको पुकारता है? जब भारत में थी तब भी अपने जन्मस्थल की स्मृति खुशबू के झोंके के समान लगती थी और आज जब अमेरिका में हूँ तो अपने देश के प्रति ऐसा ही लगाव अनुभव कर रही हूँ। ऐसा लग रहा है जैसे कुछ छूट गया था। क्या छूट गया था? यहाँ क्या नहीं है? बच्चे तो यहीं हैं। फिर किसे ढूंढ रहा है मन? अभी दो दिन पहले एक और माँ से मिलना हुआ। थोड़ी देर की बातचीत के बाद उन्हों ने मेरा नाम पूछा, मैं क्षण भर के लिए अचकचा गयी। मेरा नाम? लेकिन दूसरे ही पल याद आ गया मुझे मेरा नाम। और फिर जब उन्होंने मुझे मेरे नाम से बुलाया तो भारत याद आ गया, जहाँ मेरा अपना एक नाम था, लोग मुझे भी इसी नाम से पुकारते थे। मेरा एक परिचय था, उस परिचय के सहारे काफी कुछ बाते भी की जा सकती थी। लेकिन यहाँ का परिचय बस केवल माँ। कोई पूछता है कि आपका मन लग रहा है, कोई कहता है कि मन्दिर वगैरह चले जाया करिए। मतलब अब आप समाज के लिए उपयोगी नहीं रह गए हैं, अपना मन लगाने के लिए मन्दिर का सहारा लीजिए। यहाँ आकर आपकी उपयोगिता समाप्त। इसलिए भारत याद आ रहा है, क्योंकि वहाँ अभी तक आप उपयोगी हैं। समाज को आपकी आवश्यकता है। सुनीताजी ने मेरा नाम क्या पुकारा, मेरा वजूद ही मेरे सामने आ खड़ा हुआ और मैं उस दिन काफी चहकती रही। हाँ आप बिल्कुल सही समझे हैं कि जिन्होंने मेरा नाम पूछा था वो सुनीता जी ही थी और एक विदुषी महिला भी । मैं इतना खो गयी थी कि मैंने तत्काल उनका नाम भी नहीं पूछा, शायद मैं उन्हें इस अहसास की खुशी जल्दी नहीं दे पायी थी। जब दूसरे दिन हम साथ में घूमने गए तब कहीं जाकर मैंने उनका नाम पूछा और तब मालूम पड़ा था कि हम हम-उम्र भी हैं।
एक बार महफूज की एक पोस्ट आयी थी नाम के बारे में। कुछ लोग लिख रहे थे कि नाम में क्या रखा है? लेकिन यहाँ रहते हुए आप जान पाएंगे कि नाम में क्या रखा है? जब आपका नाम खो जाए तब पता लगेगा कि नाम में क्या रखा है? आज मन कर रहा है कि अपनी किताब पर छपे अपने नाम को अपने हाथों से सँवार लूं। यही है जिसने मुझे सुखी किया है, इसी ने मुझे एक पहचान दी है। माँ होना भी बहुत बड़ी शान है लेकिन माँ का अर्थ क्या है? जिसके पास एक आँचल हो, जिस आँचल में बैठकर बच्चे सुख पाते हों। जिस गोद में बैठकर बच्चे उठने का नाम नहीं लेते हों, बस तभी तक है इस माँ नाम के मायने। लेकिन यहाँ मुझे इस नाम की गरिमा कम ही दिखायी दी। यहाँ तो ऐसा लगता है कि जब किसी का परिचय माँ कहकर कराया जाता है तब समझो कि वह अब फालतू हो गया है। उसका साथ में कोई परिचय नहीं है। पता नहीं मेरी इस बात से कितने लोग सहमत होंगे या नहीं, मैं नहीं जानती। लेकिन मुझे जैसा लगा वैसा ही लिखा है। इसलिए अब भारत की याद आ रही है, जहाँ मेरा एक परिचय था, जहाँ के जीवन को आज भी मेरी जरूरत है। इसलिए इस स्वर्ग जैसी धरती को छोड़ते हुए मुझे दुख नहीं हो रहा है अपितु मन उछल रहा है। अब अगली पोस्ट मेरी भारत से ही आएगी। मैं 4 july को भारत पहुंच जाऊँगी और तब लिखूंगी नयी पोस्ट।
45 comments:
जी आप की बात से सहमत हुं हम भी भारत के लिये ही बार बार तडपते है, चाहे वहां जा कर हर बार हम ने धोखे ही खाये है, पेसा ही गवायां है लेकिन फ़िर भी कही भी जाने की जगह बार बार भारत का ही ख्याल आता है...... वो शायद इस लिये कि हम वहा जन्मे है, वो भारत केसा भी हो लेकिन हमारी आत्मा मै बसा है, नाम मै बहुत कुछ रखा है, चलिये आप की यात्रा शुभ हो राजी खुशी घर पहुचे. हमारी शुभकामन्ये
बहुत खुशी हो रही है जान कर की आप वापिस आ रही हैं....और इंतज़ार है की आप के वहाँ के संस्मरण सुनने को मिलेंगे..इंतज़ार और स्वागत है आपका दिल से..
Aayiye,jald Bharat aa jayiye! Agali post ka intezaar karenge!
ममा ..... बहुत ख़ुशी हो रही है कि आप आ रही हैं.... आज ही विस्कांसिन यूनिवर्सिटी यू.एस.ऐ. से जॉन नैंसी डिकैलमेन जी का फोन आया था.... उन्होंने आज मुझे बताया कि तुम्हारी ममा का फोन आया था.... पुनीत के बारे में बता रहे थे... कि बात हुई है... उन्होंने यह भी कहा है.... एक्स्ट्रा लार्ज टी-शर्ट्स ही अवेलेबल थीं..... और उन्होंने पुनीत का एड्रेस माँगा है.... ताकि वो ---टी-शर्ट्स वहां भेज देंगे.... मुझे आपका बेसब्री से इंतज़ार है....
मीडियम साइज़ कीं...
स्वदेश में फिर से स्वागत है आपका...
welcome home मैडम
Aapke lekh kaa ek-ek shabd sachchaaee liye hue hai.Badhaaee
aur shubh kamnaa
आपकी भावनाओं से मैं पूरी तरह सहमत हूँ क्योंकि कई बार इसी तरह के अनुभव से मैं भी दो चार हो चुकी हूँ ! बिलकुल ऐसा ही लगता है कि यदि बच्चों का नाम साथ ना हो तो हमारी क्या पहचान है यहाँ ! अपने देश में बच्चों के आने पर सबको बताया जाता है उनका बेटा आया है अमेरिका से ! खुशी होती है ! हमारा भी परिचय है, नाम है, स्थान है समाज में ! खैर !
आपसे भेंट करने की बहुत इच्छा थी ! लेकिन संयोग नहीं बन पाया इसका दुःख रहेगा ! चलिए नसीब में हुआ तो भारत में ज़रूर मिलेंगे ! अपनी निर्विघ्न यात्रा के लिए शुभकामनायें स्वीकार करें !
वैलकम होम।
आशा करते हैं कि वहां के संस्मरण आपकी कलम के माध्यम से पढ़ने को मिलेंगे।
अपनी माटी की गन्ध भला कौन भूल सकता है?
--
भारत वापिस आने पर आपका तहे-दिल से स्वागत!
अपनी माटी की गन्ध भला कौन भूल सकता है?
--
भारत वापिस आने पर आपका तहे-दिल से स्वागत!
वापसी का स्वागत है , आईये
अच्छा है निर्वैयिक्तता का जीवन छोड़ अपने वतन लौट रही है -शुभागमन !
"यहाँ तो ऐसा लगता है कि जब किसी का परिचय माँ कहकर कराया जाता है तब समझो कि वह अब फालतू हो गया है। उसका साथ में कोई परिचय नहीं है।"
मैं आपसे सहमत हूँ ...मगर हर माँ शायद इस अहसास को समझने का प्रयत्न ही नहीं करती, शायद ममत्व के नीचे भारतीय माँ स्वप्रतिष्ठा को भुलाने की आदत पद गयी है , मगर क्या बच्चे इस त्याग को समझने का प्रयत्न करते हैं !
अपना घर सबसे अच्छा ...आपका स्वागत है !
आप अभी तक वहीं हैं!
मै तो सोच रहा था कि आप आ गयी हैं।
आज सुबह-सुबह आपका कमेंट देखकर मुझे यही लगा
और मेरा भी मन उदयपुर आने का है।
पूरे 20 साल हो गए उदयपुर को देखे।
सहेलियों की बाड़ी से शिल्पग्राम तक ।
मोतीमगरी से सिटी पैलेस तक ।
आपकी वापसी का इंतजार है।
और स्वागत भी।
mera desh, mera watan pukar raha hai .............hai na!!
welcome back Ma'm!!........:)
आपकी वापसी यात्रा शुभ हो..आशा है प्रवास अच्छा रहा होगा. आपसे प्रवास के दौरान बाद करना सुखद रहा. आशा है भारत में मुलाकात भी हो जायेगी. शुभकामनाएँ.
आपकी यात्रा मंगलमय हो..!
आशा है कुछ अच्छी यादें ले जा रही हैं...
होम स्वीट होम तो होता ही है...
आते रहिएगा...आपके अपने भी तो हैं यहाँ...
है कि नहीं...!
यहाँ तो ऐसा लगता है कि जब किसी का परिचय माँ कहकर कराया जाता है तब समझो कि वह अब फालतू हो गया है। उसका साथ में कोई परिचय नहीं है
आपकी यह बात मन में कहीं अंदर तक व्यथित कर गयी....अपनी पहचान बहुत ज़रूरी है ..उसी से स्वयं का वजूद समझ में आता है....
भारत में आपका इंतज़ार है..
यह देश और देश का एक नागरिक यानी मैं आपका स्वागत करता हूं।
मातृभूमि वापसी पर शुभकामनायें
प्रणाम
वेलकम बैक...सुस्वागतम वापस अपनी धरती पर....भारत को मिस तो जरूर कर रही होंगी...पर नई जगह ने अनुभवों का खजाना और भी समृद्ध किया होगा..
आपकी बात से पूर्णत सहमत |लेकिन एक माँ को यहाँ भारत में भी अपने नाम की दरकार है |यहाँ भी यही कहा जाता है मन्दिर हो आइये |
आपका अपने वतन में स्वागत है आइये फिर से अपने लोगो और अपनों के साथ जुड़ जाइये |
Welcome home DiDi.apna des apna des, apna ghar apna ghar hota hai.m i rite?
ahan ji aapki bhaavnaaon ki vjh se hi to meraa desh mhaan he. akhtar khan akela kota rajsthan meraa hindi blog akhtarkhanakela.blogspot.com he
अपने देश की माटी की सुगंध होती ही कुछ ऐसी है.. शायद हर किसी को वही जगह प्यारी होती है जहाँ उसका बचपन बीता.. चाहे वह काबुली वाला हो.. चाहे खलील जिब्रान का लेबनान हो.. राम की अयोध्या हो, कृष्ण का गोकुल-वृन्दावन.... बहुत अच्छा लिखा मैम.. चलिए आप हम भी आते हैं दिवाली पर.. :)
आदरणीया अजित मैम और अर्चना मासी.. आप लोगों के कथन में बुरा लगने वाली कोई बात नहीं, आप दोनों ही मेरे लिए माँ समान ही हैं.... पर हाँ ये बात एक स्वस्थ बहस को जरूर जन्म दे सकती है.. वैसे फिर भी आपसे मेरा यही सवाल है कि वो कितनी नारियां हैं जो आप दोनों की तरह शिक्षित और अपने पैरों पर खड़ी हैं... स्वाभिमान पैदा करने के लिए एक सहारे की जरूरत शुरुआत में ही सही पर पड़ती तो है.. कोई विशाल वृक्ष भी जब प्रारंभ में बहुत नाज़ुक होता है तो उसे बांस की खपंचियों का सहारा दिया ही जाता है.. आज भी भारत में ९०% या उससे ज्यादा महिलाओं की हालत इस लायक नहीं कही जा सकती कि वो अपनी लड़ाई खुद लड़ सकें.. और ये तो हमेशा से होता रहा है कि समाज का जो दुर्बल वर्ग है उसकी मदद के लिए अन्य वर्ग आगे आयें भले ही सहायक वर्ग दुर्बल हों या सबल.. अब अगर प्रेमचंद के साहित्य में दलितों की तकलीफों को उकेरा गया है तो इसका मतलब ये तो नहीं लगता कि उन्होंने दलितों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई.. अगर कोई अमेरिकी गैर- सरकारी संगठन या कोई अन्य विकसित देश किसी गरीब या विकासशील देश की मदद के लिए आगे आता है तो क्या वो दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है.. या उसकी मदद की वैशाखी उस गरीब देश को और भी पंगु बना देगी? जहाँ तक मैं समझता हूँ कि एक हद तक मदद करने में तो कोई बुराई नहीं... बस उनकी गाड़ी को चलती हालत में लाके मुख्य सड़क पर ला दिया जाए तो अपना काम ख़त्म.. वो अपने आप ही मंजिल तक पहुँच लेगी. पर इतना तो करना ही पड़ेगा ना?.. सच कहिये कि अगर कल को ये दशा अधिकाँश पुरुषों की हुई तो क्या नारी लेखक आगे नहीं आयेंगीं? विश्वास कीजिए कि ये कविता लिखते वक़्त मैं एक पुरुष नहीं बल्कि एक बेटा, एक भाई एक मित्र था..
ऐसे आगे भी अपने विचार रखिये जिससे कि मुझे अहसास हो सके कि सच में इन कविताओं को गंभीरता से लिया जा रहा है.. आभार मैम..
बहुत बहुत स्वागत है आपका। मेरा हाल भी आप जैसा ही था। शुभकामनायें
मनुष्य के जीवन में अनेक पड़ाव आते हैं । सभी का अपना महत्त्व है । यह भी सच है कि जो समय गुजर गया वह वापस नहीं आता । यानि यदि आप बचपन से गुजर गए तो दोबारा बचपन में नहीं लौट सकते । ज़रुरत भी नहीं है । इसलिए हर नए पड़ाव को ही नियति समझ आनंदित रहना चाहिए । बड़े होने के बाद बच्चों को मां और पिता की उतनी ज़रुरत नहीं रहती ।
सब अपने संसार में खुश रहते हैं ।
आप भी वापस आकर अच्छा ही महसूस करेंगी । आखिर वतन तो अपना ही है न ।
आपका ये लेख कल २/७/१० के चर्चा मंच के लिए लिया गया है.
आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
माता जी,प्रणाम आज आपके पोस्ट की शीर्षक पढ़ कर ही दिल भावनाओं से भर गया..एक लाइन में आप ने अनमोल शब्द कह दिए..अपनी मातृभूमि ही है जो हमारी पहचान है..अपना घर--अपना देश अपने लोग..प्रणाम माता जी
आइये फिर स्वागत है. सब देश एक से ही हैं
शानदार
vivj2000.blogspot.com
ललितजी, उदयपुर आइए आपका स्वागत है। बस दुआ कीजिए कि बारिश आ जाए और फतेहसागर भर जाए।
अजित माँ,
खैरमकदम है आपका सर-ज़मीने हिन्दुस्तान में!
जय हो!
आइये जी भारत। इधर हम भी रहते हैं।
अपना घर और अपना देश किसे नही अच्छा लगता । पर हमारे बच्चे यहां हैं तो हमारा यहां उनके पास आना भी बनता ही है । और एक बात और हमें बच्चों की ज्यादा जरूरत है बच्चों को हमारी कम । हम अगर अपने गुरूर में यहां नहीं आयेंगे तो धीरे धीरे बच्चे हमारे बिना भी रहना सीख ही लेंगे लेकिन जैसे जैसे हमारी उम्र बढेगी अकेलापन भी बढेगा तो हम महसूस करेंगे अपनों की कीमत । नाम तो होता ही है गुम होने के लिये । आपका लेख अच्छा है ।
marmik post.
naam, hone aur n hone ke biich ka fark hai. radha kii maan aur radha kii beti dono men hai to sirf radha hii na.
अपनी माटी के लिए तड़प जिसे कूर्मांचल में 'नराई' कहते हैं,आपकी पोस्ट में शिद्दत से झलक रही है.
सुन्दर। अब तो आपको लौटे हुये दस दिन हो गये। वाह!
दरअसल आपका मन है कोमल, भावुकता में जीने वालों के साथ अक्सर ऐसा होता है, पंच तत्वों से बने इस शरीर का एक वाह्य तत्व है, हमारा नाम . नाम जो रखते तो माँ बाबा, या कोई रिश्तेदार हैं , पर उसे पोषित और पल्लवित हम करते हैं. आप अमेरिका की बात कर रहीं हैं, मुंबई या फिर कोई अजनबी जगह पर भी आपको घबराहट होगी. अंग्रेज़ी में इसे ही home sickness कहते हैं. हम आज तक जो ज़िंदगी जीते आये हैं, उसके माने और दर का स्तर बहुत गिरा है. हम उन मूल्यों को बहुत सहेजकर रखना चाहते हैं, जिसे आज की पीढी सुबह शाम बिसराने को तुली हुई है. आपकी साईट पर आकर कई बातें सीखने को मिलीं. आगे भी आपका मार्गदर्शन चाहूँगा. कभी समय मिले तो मेरी साईट पर भी आकर अपने कमेन्ट देकर नवाजें.
दरअसल आपका मन है कोमल, भावुकता में जीने वालों के साथ अक्सर ऐसा होता है, पंच तत्वों से बने इस शरीर का एक वाह्य तत्व है, हमारा नाम . नाम जो रखते तो माँ बाबा, या कोई रिश्तेदार हैं , पर उसे पोषित और पल्लवित हम करते हैं. आप अमेरिका की बात कर रहीं हैं, मुंबई या फिर कोई अजनबी जगह पर भी आपको घबराहट होगी. अंग्रेज़ी में इसे ही home sickness कहते हैं. हम आज तक जो ज़िंदगी जीते आये हैं, उसके माने और दर का स्तर बहुत गिरा है. हम उन मूल्यों को बहुत सहेजकर रखना चाहते हैं, जिसे आज की पीढी सुबह शाम बिसराने को तुली हुई है. आपकी साईट पर आकर कई बातें सीखने को मिलीं. आगे भी आपका मार्गदर्शन चाहूँगा. कभी समय मिले तो मेरी साईट पर भी आकर अपने कमेन्ट देकर नवाजें.
A comprehensive healthiness program tailored to an solitary resolve undoubtedly focus on harmonious or more definitive skills, and on age-[3] or health-related needs such as bone health.[4] Innumerable sources[citation needed] also cite noetic, common and heartfelt strength as an substantial purposes of all-inclusive fitness. This is often presented in textbooks as a triangle made up of three points, which show solid, emotional, and mental fitness. Material seemliness can also forestall or handle various persistent fitness conditions brought on by ailing lifestyle or aging.[5] Working out can also remedy people forty winks better. To stay vigorous it is mighty to combat in navy surgeon activity.
Training
Specific or task-oriented [url=http://www.pella.pl]fitness[/url] is a living soul's gifts to depict in a specific enterprise with a tolerable know-how: seeking pattern, sports or military service. Certain training prepares athletes to respond fully in their sports.
Examples are:
400 m sprint: in a sprint the athlete must be trained to line anaerobically throughout the race.
Marathon: in this case the athlete ought to be trained to being done aerobically and their persistence have to be built-up to a maximum.
Many blazing fighters and constabulary officers bear typical tone testing to act on if they are skilled of the physically exacting tasks required of the job.
Members of the United States Army and Army Nationalist Watchman should be skilled to pass the Army Palpable Fitness Check up on (APFT).
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