Friday, April 2, 2010

हमें तलाश है ऐसे कपड़ो की जो . . .

अमेरिका की यात्रा करना भी एक जद्दोजेहद से कम नहीं है। पता नहीं कितनी तैयारी करनी पड़ती है? ऐसा नहीं है कि अटेची उठाओ, चार साड़ी डालों और चल पड़ो। वहाँ जाने का मतलब है भारतीय वेशभूषा से अलग वस्‍त्र। हमारे राजस्‍थान में तो इतने रंगीन कपड़े पहने जाते हैं कि लगता है हमेशा ही त्‍योहार हैं। फिर इन दिनों टीवी चेनलों ने अपने सीरियलस में ऐसी दुनिया बना डाली है कि सारा बाजार ही उनके कब्‍जे में आ गया है। ऐसे में आपको अमेरिका जाना पड़ जाए तब आप क्‍या करेंगे? भागेंगे बाजार कि भाई ऐसे कपड़े खरीदो जिनमें कलर नहीं हों, वा‍शिंग मशीन में धुलने पर खराब नहीं हों। ना तो वहाँ आपकी साड़ी चलेगी और ना ही रंग बिरंगे सलवार सूट।

हमें भी मई में अमेरिका जाना है तो वहाँ के हिसाब से कपड़े तो खरीदने ही पड़ेंगे ना? बाजार गए, एक दुकान, दूसरी दुकान, बस घूमते ही रहे, लेकिन सभी जगह वही सीरियलों वाले कपड़े। चमक-धमक युक्‍त, कहीं सलमा-सितारे का काम तो कहीं जरदोजी तो कहीं स्‍टोन। भाई ये सब तो मशीन में धुल नहीं सकते? बाकी अमेरिका में ना कपड़े धोने की जगह और ना ही सुखाने की। जो कुछ करना है मशीन से ही करना है।

ऐसे ही हम दीवाली पर परेशान हुए। दीवाली पर आम भारतीय अपने घर को सजाता ही है। हमने भी सोचा कि चलो और कुछ नहीं तो सोफा कवर तो बदल ही डालें। नये खरीदे जाएं, दीवाली पर अच्‍छे मिल जाएंगे। वो ही एक दुकान से दूसरी दुकान बस घूमते ही रहे आखिर थक हारकर अपनी एक परिचित दुकान पर ही जा टिके। बोले कि भाई सारा ही रंगबिरंगा है, क्‍या हम जैसों के लिए भी कुछ माल रखते हो? वो हँसकर बोला कि मैं आपको क्‍या बताऊँ? आजकल सीरियल देख देखकर लोग अपने कमरों की चार दीवारे अलग-अलग रंग में पुता लेते हैं और फिर हम से आकर कहते हैं कि पर्दे की मेचिंग बताए।

तो क्‍या हम आउट ऑफ डेट हो गए हैं? क्‍या बाजार में ह‍मारी पसन्‍द का कुछ सोबर सा नहीं मिलेगा? उसने बड़ी मुश्किल से हमारे लिए कुछ जरूरी सामान निकाला और कुछ गैर जरूरी सामान भी हमारे चिपका ही दिया। हमने उसका अहसान माना कि एक प्रतिशत में तो हम हैं। अब साड़ियों की भी राम-कथा सुन ही लो। जयपुर से ही हम अक्‍सर साड़िया खरीदते हैं तो गए जयपुर। सारी दुकान खंगाल डाली लेकिन हमारी पसन्‍द वहाँ से भी गायब। आखिर गुस्‍से में दुकान के मालिक को फोन पर हड़काया, वो रिश्‍ते में हमारा भतीजा ही है। कि कहाँ है तू, तेरे कारिंदे हमें कलरर्स की नायिका बनाने पर तुले हैं। वो अपने थोक के ग्राहक निपटा रहा था तो भागा-भागा आया और बोला कि बुआ आप भी कहाँ देख रही हो? मेरे पास आपके लिए कुछ अलग से है। खैर उसने क्‍लासिक सी साड़ी दिखायी, अब कठिनाई यह कि एक सी साड़ी तो नहीं खरीद सकते है ना? लेकिन फिर भी दो खरीदी। उसने कहा कि अब मैं क्‍या बताऊँ, आपकी पसन्‍द के कुछ ही ग्राहक हैं। उनके लिए सामान रखने लगूं तो मेरे करोड़ो रूपए डेड स्‍टाक में फंस जाएंगे।

तो यह है आजकल के बाजार का हाल। सारा ही बाजार टीवी चेनल के कब्‍जे में आ गया है। आप सादगी से रह नहीं सकते। घर को नहीं रख सकते। मुझे सलाह दी जा रही है कि आप भी फटी-टूटी जीन्‍स खरीदो और अमेरिका की यात्रा पूरी कर आओ। अब आप ही बताइए कि क्‍या भारतीय भद्र महिला ऐसे-वैसे कपड़े पहनेगी? सारा ग्रेस ही खत्‍म कर दिया। कहाँ हम सिफोन, जार्जेट, काटॅन साड़ी पहनने वाले, कहाँ हमें समझौता करना पड़ रहा है फटे पुराने कपड़ों से। हमारी तलाश जारी है सलवार सूट के ऐसे कपड़ों की जो मशीन में धुलकर भी खराब ना हो और हमारा काम चल जाए। अब अमेरिका जाना है तो सारे दुख तो देखने ही पड़ेंगे ना? क्‍योंकि हम भी उन नाक कटो में शामिल हो गए हैं जो नाक कटाकर भगवान देखने की बात करता है। हम भी ऐसे ही स्‍वर्ग में जाने के लिए वस्‍त्रों की तलाश कर रहे हैं। आप भी हँस लीजिए हम पर।

27 comments:

Arvind Mishra said...

यहाँ बनारस आ जाईये न हम आपकी मनमाफिक शापिंग करवा देगें -पक्का वादा !

अन्तर सोहिल said...

अब तो आर्टिफिशियल ज्यूलरी भी कलर्स के चरित्रों के नाम पर बिकती है जी
आनन्दी के झुमके, सावित्री की चूडियां, गहना का गलहार

प्रणाम

Ashutosh said...

aap sahi kah rahi hai..
हिन्दीकुंज

अजित गुप्ता का कोना said...

अरविन्‍द जी, पिछले साल बनारस गए थे, थैले में रूपए भी डाल लिए थे। लेकिन रविवार निकला तो बाजार बन्‍द। पतिदेव के कुर्ते तो मिल गए क्‍योंकि पहले ही बोल रखा था कि घर पर लाकर रखना। भाई आप लोग तो सफेद-वफेद ही पहनते हो ना। एक सा डिजायन और एक सा रंग। दिक्‍कत तो बेचारी महिलाओं की ही है।

डॉ टी एस दराल said...

अजित जी , हमारी बात मानिये --कुछ जींस और टी शर्ट खरीद लीजिये । यही काम आएँगी वहां। वर्ना आप भी हमारी तरह चार चार शूट्केस बिना बात ही ढोयेंगी।
अमेरिका कनाडा जैसे देशों में --कोई क्या कहेगा -- कोई क्या सोचेगा --यह नहीं चलता । क्योंकि वहां कोई आपके बारे न कुछ सोचता है , न बोलता है।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

दराल साहब ने सही कहा, जैसा देश वैसा भेष ही सही है !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

और हाँ जींस और टी शर्ट के लिए दिल्ली का पालिका बाजार या फिर सरोजनी नगर मार्केट !

अजित गुप्ता का कोना said...

गोदियालजी और दराल जी, जो अमेरिका में काउ-ब्‍वाय पहनते हैं वो पहनने की राय दे रहे हैं? मैं पहले ही लिख चुकी हूँ कि ऐसे फटे-टूटे कपड़े तो अपने से पहने नहीं जाते। पहले भी सलवार-सूट से काम चलाया था, बस दो-चार धुलाई में बैण्‍ड बज जाता है कोई बात नहीं। भारतीय सारे ही रास्‍ते निकला लेते हैं।

ghughutibasuti said...

यदि सलवार कुर्ता पहनना है तो समाधान मेरे पास है। पुरुषों की शर्टिंग वाली दुकान या दुकानों पर जाइए, बहुत बढ़िया कपड़े में छोटे चैक या हल्के प्रिन्ट मिल जाएँगे। ४ मीटर कपड़ा खरिदिए यदि बड़े अर्ज का है़ अन्यथा अर्ज नपवाकर दर्जी से पूछिए। जमकर वॉशिंग मशीन में डालिए,यदि डेलिकेट में डालेंगी या धुलते से ही सुखा लेंगी तो बिना इस्तरी किए पहनिए और मजा यह कि किसी भी अन्य स्त्री के पास आप से सलवार कुर्ते नहीं होंगे।
अन्यथा स्त्रियों के लिए जो कपड़ा मिलेगा वह खूब रंग छोड़ेगा।
मैं तो यही करती हूँ और मजे से कहीं भी बाहर जाती हूँ।
घुघूती बासूती

Smart Indian said...

परेशानी तो है, मगर अन्य सुझावों का हाल देखकर हम कोई सुझाव देने वाले नहीं.
जब हमने अपने एक शिक्षक को सात साल तक टेरीकोट की एक सफ़ेद कमीज़ पहने देखा तो सातवें वर्ष उसके साफ़ रहने का राज़ पूछ ही डाला. कहने लगे की हर होली-दीवाली एक दो सफ़ेद कमीज़ सिला लेते हैं अब इतनी हो गयी हैं क़ि जब भी बदलो एक ही लगती है.

rashmi ravija said...

क्या बात है,अच्छा विषय चुना,आपने ...यह समस्या आजकल सबके साथ ही हैं...लेकिन पता है यह blessings in disguise भी है..हमारे भी वही गिन के एक,दो दुकान है या fab india है जहाँ सोबर रंग के कपड़े मिल जाते हैं और हमारे समय की खूब बचत हो जाती है...बाज़ार जो नहीं घूमना पड़ता.
घुघूती जी ने तो समस्या ही सुलझा डाली...गौर करने लायक है ये तरकीब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कपड़े खरीदने थे तो नैनीताल आना चाहिए था!
पहले हमारा जिला मुख्यालय यही हुआ करता था!

Udan Tashtari said...

दराल साहब विदेश घूमे हैं, सही ही कह रहे होंगे. :)

ताऊ रामपुरिया said...

मुझे तो दराल साहब की सलाह ही अति उत्तम लगती है. अबकि बार आजमा कर देखिये बडा कंफ़र्टेबल फ़ील करेंगी.

रामराम.

Yogesh Sharma said...

मदाम, हौसला अफजाई का शुक्रिया | आपकी टिप्पणी अपने आप में एक बढ़िया ब्लॉग थी बोर्नविटा की ताकत के साथ |२६ की छाती फूल के ५० की हो गयी |आप ख़ुद भी बहुत ही बढ़िया व्यंग लिखती हैं|मैंने अभी आपका शौपिंग एक्सपीरिएंस पढ़ा ...बहुत ही अच्छा लगा |आभार

drdhabhai said...

@दराल साहब कपङे कोई क्या कहेगा ये सोचकर नहीं पहने जाते बल्कि आप के शरीर और आत्मा को जंचे वो पहनने चाहिये.....खैर कपङों की तो वाकई मैं समस्या हैं.....पर मेरा मानना है ऐसे मैं बांधनी ट्राई करनी चाहिये

रश्मि प्रभा... said...

talaash jaari hai

अजय कुमार झा said...

घुघुती जी ने जो थ्योरी क्लास दी है वो एकदम परफ़ैक्ट है ..ज्यादा हो तो उनसे प्रैक्टिकल क्लास भी ले कर कोर्स पूरा कर के निकल लीजीए अमरीका ...मगर वहां से फ़ोटू खींच कर जरूर लाईयेगा ..वर्न हमें कैसे पता चलेगा कि हमारी टीप के अनुसार आपने हमारी बात मानी भी या नहीं ..या ऐवें ई ...
अजय कुमार झा

निर्मला कपिला said...

अप हम से पूछो कि हमारे साथ क्या क्या हुया बेटी ने कहा कि सर्दी अब जाने वाली है कुछ कपडे गर्मी के और कुछ सर्दी के ले आना मगर जब यहाँ आये तो सर्दी का हाल न पूछो रोज बारिश हो रही है। हीटर लगा कर बैठी हूँ और आप बिलकुल मेरे पास्द ही आ रही हैं सैनोज़े सान्टाकलारा साथ साथ हैं। अभी तो सर्दी के हिसाब से ही आना कल का पता नही। मैं तो बहुत सादा कपडे लाई हूँ। जो फैशन वाले हैं वो तो शायद पहने ही न जायें इतनी सर्दी मे। और मुझे खुशी ह्यो रही है कि दो भारतीय ब्लागर विदेश मे वो भी अमेरिका मे ब्लागर मीट करेंगे हा हा हा है ना अच्छी बात? बस जल्दी से आ जायें हम लोग 2 जून को वापिस आ रहे हैं भारत। आप मई मे कब आयेंगी? बहुत बहुत शुभकामनायें। इन्तज़ार मे हूंम्

sonal said...

@अजित जी
लखनऊ के सलवार सूट ले लीजिये ..देखने में खूबसूरत,मशीन में आराम से धुलेंगे बाकी फैब इंडिया , में देख लीजिये ....आपको पसंद आयेंगे

अजित गुप्ता का कोना said...

निर्मला जी,
मैं 4 मई को पहुंच रही हूँ। आपका स्‍काई पे एड्रेस या फोन न दें। चलिए हम भारत में तो मिल नहीं पाए लेकिन अमेरिका में अवश्‍य मिलेंगे। अभी बेटा एल ए में है और अप्रेल के अन्‍त में सेनोजे शिफ्‍ट करेगा। इसलिए मकान कहाँ लेता है अभी कुछ पता नहीं। मैंने उससे कहा कि इण्डियन कम्‍यूनिटि सेंटर के आसपास ले। लेकिन देखो उसे कहाँ समझ्‍ा आता है। सांता क्‍लारा में ही पहले वो था।

डॉ टी एस दराल said...

मिहिर जी से थोडा असहमत हूँ। कपडे अवसर और स्थान देखकर पहनने चाहिए।
घूमने जाने के लिए सूटेड बूटेड होना कोई अच्छी बात नहीं। इसी तरह फोर्मल फंक्शन्स में टी शर्ट पहनकर आप आउट ऑफ़ प्लेस लगेंगे।
इसीलिए कहते हैं -जैसा देश -वैसा भेष।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

ये इन टीवी सीरियल्स का ही प्रताप है जिन्होने एक आम व्यक्ति को अपनी चादर से पैर बाहर निकालना सिखाया है...खैर उम्मीद करते है कि उपरोक्त टिप्पणियों में से किसी न किसी की सलाह तो आपकी तलाश खत्म करने में मददगार हो ही जाएगी.....

पूनम श्रीवास्तव said...

kahte hai jaisa desh vaisa vesh,par ham bhartiyanariyyan apani puraani paramparao ko aasani se chhod bhi nahi paate aise waqt me mazburi jaise shabd se vasta rakhana padata hai.

Khushdeep Sehgal said...

अजित जी,
सादगी की अपनी एक अलग शान होती है...

रहन सहन हो या खुद का बनाव-श्रृंगार, सादगी भी कयामत ढा सकती है...न जाने क्यों ये गाना याद आ रहा है...मेरी पत्नीश्री को ये बहुत पसंद है...

ना कजरे की धार, ना मोतियों के हार
ना कोई किया सिंगार, फिर भी कितनी सुंदर हो,
तुम कितनी सुंदर हो...

मन में प्यार भरा, तन में प्यार भरा,
जीवन में प्यार भरा, तुम तो मेरे प्रियवर हो,
तुम्ही तो मेरे प्रियवर हो...

जय हिंद...

अनामिका की सदायें ...... said...

arey arey dr. sahiba itna pareshan naa hoye..hamare yaha faridabad/delhi me aaiye..badhiya se badhiya sobar kapdo ka khajana he yaha...amrika bad me jaiyega jara delhi tak hi pehle aa jaiye..(HA.HA.HA.)

EK kissa aur yaad aaya apki post padh kar LONDON ka hai..

hamari ek indian friend jo ab london me ja basi he...do bete hai unke..to lunch time me vo apne bete ko uske school bas se lene gayi to jaldi jaldi me shameez (jise ladies shirt ke niche long baniyan k roop me dalti he) vo pehen gayi..aur london wasi mud-mud kar use dekh rahe the aur kisi ek se to raha na gaya aur aaker pucchha..ye stylish shirt kaha se silwaya? aur 2-4 din baad dekha to vo fashion icon ban gayi shameez...to ise kya kahenge ji???

kavi surendra dube said...

ये मुसीबत भी किसी दिन राष्ट्रीय समस्या बन सकती है पर तब जब बाकी समस्याएं निपट जाएं