Friday, October 30, 2009

जीवन में सपने मत देखो

कई बार मन उदास हो जाता है। जीवन में अघटित सा होने लगता है। ऐसे ही क्षणों में कुछ शब्‍द आकर कहते हैं कि जीवन में सपने मत देखो, इनके अन्‍दर सत्‍य, सत्‍य में दर्द छिपा है। पढिए मेरी एक पुरानी रचना जो मेरी कविता संग्रह "शब्‍द जो मकरंद बने" से ली है।

जीवन की परते मत खोलो
इनके अंदर घाव
घावों में दर्द छिपा है।
जीवन में सपने मत देखो
इनके अंदर सत्य
सत्य में दर्द छिपा है।

जीवन का क्या है नाम
संघर्ष, सफलता, खोना, पाना,
महल बनाना दौलत का
या परिवार बनाना अपनों का
सच तो यह है
महलों से ही अपने बनते हैं
अपने कब दिल में रहते हैं?
अपनों की बाते मत सोचो
इनके अंदर प्रश्न
प्रश्नों में मौन छिपा है।

जीवन तो कठपुतली है
परदे के आगे नचती है
किसकी अंगुली किसका धागा
किसने जाना किसने देखा
अंगुली की बाते मत सोचो
इसके अंदर भाग्य
भाग्य में राज छिपा है।

जीवन के तीन हैं खण्ड
सबके सांचें, सबकी परतें
एक दूजे से गुथी हुई पर
फिर भी हैं अनजान
बचपन का सांचा कैसा था
यौवन की परते कहाँ बनी
और अंत समय में
किस सांचे में ढलने की तैयारी की
जीवन के खण्डों को मत देखो
इनके अंदर आग
आग से जीवन जलता है।

कहाँ स्वतंत्र तू, कहाँ रिहा
तेरा तो हर पल, कण कण
नियति के हाथों बिका हुआ
लगता है जीवन अंधा कुँआ है
बस हाथ मारते बढ़ना है
चारो ओर अंधेरा है
कब कौन वार करेगा पीछे से
इसका भी हर बार अंदेशा है
सम्बल के सपने मत देखो
इनके अंदर द्वेष
द्वेष में घात छिपा है।

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो
किस अंगुली पर हम नाच रहे
किस धागे से हम जुड़े हुए
बस कठपुतली बनकर
तुमको तो हंसना है, खुश ही दिखना है
आंखों के आँसू मत देखो
इनके अंदर दर्द
दर्द में मन का भेद छिपा है।

32 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो
किस अंगुली पर हम नाच रहे
किस धागे से हम जुड़े हुए
बस कठपुतली बनकर
तुमको तो हंसना है, खुश ही दिखना है
आंखों के आँसू मत देखो
इनके अंदर दर्द
दर्द में मन का भेद छिपा है।

बहुत सुन्दर कविता है डा0 साहब , मगर साथ ही यह भी कहूँगा कि सपने देखने चाहिए, अगर सपने नहीं देखेंगे तो फिर कुछ करने की जागृति आयेगी कैसे ? मेरा एक कजिन जो अमेरिका में रहता है कहता है कि इंसान को इर्ष्या भी करनी चाहिए अगर इर्ष्या नहीं करेगा तो कम्पीटीसन की भावना हे ख़त्म हो जायेगी !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जीवन का क्या है नाम
संघर्ष, सफलता, खोना, पाना,
महल बनाना दौलत का
या परिवार बनाना अपनों का
सच तो यह है
महलों से ही अपने बनते हैं
अपने कब दिल में रहते हैं?
अपनों की बाते मत सोचो
इनके अंदर प्रश्न
प्रश्नों में मौन छिपा है।

yeh panktiyan bahut achchi lagin.....

par title ke hisaab se yeh kahunga ki bade sapne dekhne chahiye..... aur sapnon ko poora karne ke liye kisi bhi had tak jana chahiye.....




karenge khwaahish aasman ki...... tabhi to taare milenge....

अजित गुप्ता का कोना said...

आप सही कह रहे हैं गोदियाल साहब, सपने अवश्‍य देखने चाहिए। लेकिन यह भी सत्‍य है कि जब व्‍यक्ति सपने देखता है तभी वे टूटते हैं। जो नहीं देखता उसके कैसे टूटेंगे। लेकिन ईर्ष्‍या वाली बात हजम नहीं होती। प्रतिस्‍पर्द्धा होनी चाहिए न कि ईर्ष्‍या।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रचना है .. हर प्रकार से प्रयत्‍न करने के बाद भी सपने टूटते हैं .. तो तकलीफ तो हो ही जाती है .. पर इससे मनुष्‍य सपना देखना बंद नहीं कर सकता .. क्‍यूकि समय बहुत बलवान होता है .. जो आज मुझे नहीं मिल रहा .. मेहनत करें तो कल अवश्‍य मिल सकता है .. पर हर हाल में स्‍वस्‍थ प्रतिस्‍पर्धा में जीत की संभावना अधिक रहती है !!

kishore ghildiyal said...

bilkul sahi likha hain aapne sapne na dekhe na parte kholo .....par yah bhi hain ki jab sapne kekhen jaate hain tabhi vah tutte bhi hain
jyotishkishore.blogspot.com

ताऊ रामपुरिया said...

अगर मूल रुप से देखा जाये तो सपने देखना और ना देखना यही द्वैत है. मर्जी अपनी अपनी.

रामराम.

PN Subramanian said...

"जीवन का क्या है नाम
संघर्ष, सफलता, खोना, पाना"
बिलकुल सही कहा है. सुन्दर रचना.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सपनों का निषेध करके भी आपने सपनों की चाह जगा दी है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

vandana gupta said...

aap sapne na bhi dekhna chahe phir bhi apne aap aa jate hain..........kahin na kahin koi na koi sapna bun hi jata hai khyalon mein...........bas unse judna is had tak nhi chahiye ki poora na hone par dukh ho...........bahut hi sashakt abhivyakti hai.

सदा said...

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

BAD FAITH said...

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो.
फ़िर जियें कैसे?

Arvind Mishra said...

सत्यानुभूति की कविता -कभी कभी सचमुच ऐसा ही लगने लगता है की केवल निमित्त मात्र रह गये हैं हम !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कहाँ स्वतंत्र तू, कहाँ रिहा
तेरा तो हर पल, कण कण
नियति के हाथों बिका हुआ
लगता है जीवन अंधा कुँआ है
बस हाथ मारते बढ़ना है
चारो ओर अंधेरा है
कब कौन वार करेगा पीछे से
इसका भी हर बार अंदेशा है
सम्बल के सपने मत देखो
इनके अंदर द्वेष
द्वेष में घात छिपा है।

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है।
बधाई!

कंचन सिंह चौहान said...

जीवन की परते मत खोलो
इनके अंदर घाव
घावों में दर्द छिपा है।
जीवन में सपने मत देखो
इनके अंदर सत्य
सत्य में दर्द छिपा है।


आपके पीछे पीछे ही आ गई....! सत्य वचन....! कभी कभी ऐसा ही हो जाता है मन....!

Rajeysha said...

देखने, नहीं देखने से अच्‍छा है सपनों की हकीकत समझ लें।

कविता रावत said...

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो
दर्द में मन का भेद छिपा है।
Saargarbhit rachana. Dard hi to hai jo sahi mayane mein jeena sikhata hai, gar samajh mein aa jaye to ....
kabhi mere blog par bhi ek nazar dekh lijiyega, kyunki abhi chalana shikh rahi hun.
Badhai

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★
जय ब्लोगिग-विजय ब्लोगिग
★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★

♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥
ajit guptaji

बहुत सुन्दर कविता है डा0 साहब

सुंदर अभिव्यक्ति,अद्भुत,डा0 साहब.... इन्ही शब्दो मे आपकी रचना के लिऍ मेरे भाव है.
♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥


मगलभावनाओ सहीत
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION

Anonymous said...

sab sapane saakar nahi hote phir bhi ummeed par duniya jeeti hai. aapki tippani ke liye dhanyawad.

Arshia Ali said...

आपने सपनों के पीछे के दर्द को बहुत खूबसूरती से उकेरा है।
-------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं

कविता रावत said...

जीवन की परते मत खोलो
इनके अंदर घाव
घावों में दर्द छिपा है।
जीवन में सपने मत देखो
इनके अंदर सत्य
सत्य में दर्द छिपा है।

दर्द में मन का भेद छिपा है।
Bhavon ko sudar shabad shilp se bandha hai aapne.
Aaj ke samay mein vastav mein satya mein dard hi dard chhupa hai.
Shubhkamna Sweekaren

कविता रावत said...

जीवन की परते मत खोलो
इनके अंदर घाव
घावों में दर्द छिपा है।
जीवन में सपने मत देखो
इनके अंदर सत्य
सत्य में दर्द छिपा है।

दर्द में मन का भेद छिपा है।
Bhavon ko sudar shabad shilp se bandha hai aapne.
Aaj ke samay mein vastav mein satya mein dard hi dard chhupa hai.
Shubhkamna Sweekaren

Asha Joglekar said...

वाह स्मिता जी कमाल की रचना है । पर हम हैं क्यूं कि हम सपने देखते हैं अपने लिये अपनों के लिये । जिस दिन ये खत्म हो हम हम ही न रहेंगे । आप ही तो कहती हैं जीवन संघर्ष, सफलता, खोना, पाना है तो एक सपना टूटेगा तो दूसरा साकार होगा ।
बहरहाल कविता तो कमाल की है । बधाई ।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

ek behtarin rachna ke liye badhai...

दिगम्बर नासवा said...

sach likha hai beeti taahi bisaar ke aage ki sudh lena hi jeevan ka lakshy ho na chaahiye ....
sundar rachna hai ...

अबयज़ ख़ान said...

जीवन तो कठपुतली है
परदे के आगे नचती है
किसकी अंगुली किसका धागा
किसने जाना किसने देखा
अंगुली की बाते मत सोचो
इसके अंदर भाग्य
भाग्य में राज छिपा है।

बहुत सुंदर लाइन हैं मैडम..
जीवन सचमुच कठपुतली है

Smart Indian said...

सच्ची बात, सुन्दर प्रस्तुति!

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन भावाभिव्यक्ति हेतु साधुवाद....

padmja sharma said...

जीवन के कई रंग होते हैं .कभी खुशी कभी गम होते हैं ..इन विविध रंगों से ही जिंदगी और लेखन आगे बढ़ता है .अब के आपने अलग मूड की रचना दी है .जीवन के करीब है .उदासियों के दौर भी आते हैं . हम उन्हें ऐसे ही लिखकर बाँट लेते हैं .

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

aadernniya didi,pranam!
haqeeqat main na sahi sapnon me to apni manzil ke ru-b-ru ho sakta na aadmi.isiliye ye haq mat chiniye.sapne dekhenge tabhi unhe pura karne ke prayas bhi kiye jayenge.sapne zindgi ko ak maqsad dete hain.aaj ak sapna jaroor dekhiyega.jise pura karne ki koshish main apne kal ko ak target de saken.
sneh smaran!

Anonymous said...

bahut hi sundar likha hai...main bhi kabhi kabhi aise hi kuch shabdo ko khojne ka prayas karti hu...par itna acche se likh nahi pati....

Anurag Jain said...

Bua...I liked this one...we as youngsters dream of many things at a time....often we leave our old world and family behind to achieve our goals.

I dont ultimately know what is my goal and I also dont want to know. I have learnt to take life as it comes to me..

Thanks for sharing the blog with me. It helps to read such poems to come closer to reality and think within oneself.

Unknown said...

बस जीना है तो कुछ भी मत सोचो
ना सपने देखो ना परते खोलो
किस अंगुली पर हम नाच रहे
किस धागे से हम जुड़े हुए
बस कठपुतली बनकर
तुमको तो हंसना है, खुश ही दिखना है
आंखों के आँसू मत देखो
इनके अंदर दर्द
दर्द में मन का भेद छिपा है।
wah
wah
wah...bahut badiyan ...aur kya kehna..wah