Thursday, April 2, 2009

लघुकथाएं : प्रभु की पूजा, बाबा और आम

लघु कथाएं गद्य की वो विधा है जो अपनी बात को संक्षिप्‍त रूप में कह देती है। लीजिए लघुकथाएं नियमित रूप से पढ़िए और अपनी टिप्‍पणी भी दीजिए।

प्रभु की पूजा

अपने घर में बने भगवान के आले में अगरबत्ती जलाकर भगवान को प्रणाम करने के लिए मेरे कदम कक्ष पहुंच जाते हैं। सामने भगवान की मूरत है, भगवान हँस रहे हैं। मैं उन्हें देख ठिठक जाती हूँ, अगरबत्ती की ओर बढ़े मेरे हाथ रुक जाते हैं। मैं क्यों पूजा कर रही हूँ? मन प्रश्न करता है। क्यों इस नन्हें कृष्ण को नहलाती हूँ? क्यों इसे लड्डू का भोग लगाती हूँ? क्यों इसका शृंगार करती हूँ? एक दिन मेरा मन भी इस नन्हें कृष्ण को पुत्र रूप में पाने के लिए नहीं मचल उठेगा? क्या मेरा मन नहीं करेगा कि इसे छू लूँ, इससे बातें कर लूँ? जब भी मन ने किसी रिश्ते को पकड़ना चाहा क्या वह मेरे हाथ लगा? मन उन रिश्तों की टूटन से कितना द्रवित हुआ था तो एक अपेक्षा फिर क्यूँ। मैं केवल प्रभु को मेरे मन के अंदर ही रखूंगी, उनको किसी भी रूप में कैद नहीं करूंगी। पट बंद हो गए और साक्षात दर्शन भी, अब केवल मन की आँखें खुली थीं।

बाबा

बड़े दिनों बाद सपना अपने मैके गयी है, भाई के चेहरे पर प्रसन्नता नहीं है, भाभी के चेहरे पर भी नहीं। वह कारण जानना चाहती है, पूछती है कि कोई विशेष बात हुई है? भाई कुछ नहीं बोलता लेकिन भाभी बताती है कि इन दिनों तुम्हारे पिताजी को न जाने क्या हो रहा है? सपना प्रश्नवाचक चिन्ह सा मुँह बनाकर भाभी की ओर देखती है। भाभी बताती है कि उनके गाँव से उनके एक भतीजे का बेटा आता है, उसे हम जानते हैं कि वह बड़ा चालबाज है। तुम्हारे पिता जो कभी किसी को भी एक पैसा नहीं देते, पता नहीं उसने ऐसा क्या जादू किया है कि वे उसे पैसा दे रहे हैं। सपना पिता के पास जाती है, उनसे पूछती है कि क्या प्रकाश आया था और क्या आपने उसे पैसे दिए हैं? वह कहते हैं कि हाँ दिए हैं। वह पूछती है कि आप तो कभी किसी को भी एक पैसा नहीं देते फिर प्रकाश को क्यों? वे बोलते हैं कि वह आकर मुझे बड़े प्यार से ‘बाबा’ कहकर बुलाता है, मेरे पास आकर बैठता है।

आम

सुनीता के घर नौकर के रूप में एक गाँव का लड़का काम करता है। वह वहीं रहता भी है। गर्मियों का मौसम है, इस बार आम की फसल बहुत अच्छी हुई है। रोज ही फ्रिज आम से भरा रहता। कई बार कुछ आम खराब भी हो जाते। कई बार सुनीता का मन होता कि एक आम लड़के को भी दे दे। लेकिन उसकी सास उसका हाथ पकड़ लेती, बोलती कि कहीं नौकरों को आम खिलाए जाते हैं? लड़का आम की तरफ देखता भी नहीं। एक दिन उसे छुट्टी चाहिए थी, बोला कि गाँव जाना है, सुबह वापस आ जाऊँगा। सुनीता ने उसे छुट्टी दे दी। दूसरे दिन लड़का आ गया, हाथ में उसके एक छोटा थैला था। सुनीता ने पूछा कि इसमें क्या है? वह बोला कि मेरे खेत में एक आम का पेड़ है, उसमें केरियां पकने लगी थी, इसलिए मैं दीदी के लिए कुछ चूसने वाले आम लेकर आया हूँ। दीदी को चूसने वाले आम पसन्द है न?

10 comments:

Anonymous said...

bahut khoob mann ko choo deni wali laghu kathayen. jaari Rakhen.

Smart Indian said...

लघुकथाएं अच्छी हैं अजित जी, धन्यवाद!

padmja sharma said...

prabhu ki puja , baba aur aam teenon laghukathayen padhin . prabhu ki aradhna aur puja , ye sab mann ka hi khel hai. jab apka "bhitar "puri tarah se ras men bhig jata hai to "bahar "dikhta hi nahi .
"baba" -adhunikta ke chakkar men ham aatmiyata se dur ja rahe hn . rishton ki aanch bhi kam ho rahi hai . atmkendritata ke karan apnon se dur , apnepan ke sambodhanon se dur hote ja rahe hn . aise men "baba " shabd sunkar pitaji taral ho pighalane lag jate hn . aaj gharon men bujurg akelepan , apnepan ke liye sachmuch taras rahe hn . baba men jivan ki yahi sachhai ubhar kar aai hai .
"aam "laghu katha bhi 'bada"arth liye hai.
padmja sharma

अनुनाद सिंह said...

आम वाली कथा बहुत अच्छी लगी।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सभी कथाएँ बहुत अच्छी लगीँ
- लावण्या

virendra sharma said...

prabhu ki pooja?"man ki aankhen khol baba ,man ki aankhe khol,Baba:paisa phenk tamaasha dekh.Aam:garib ka dil bada hota hai,amir to viklang hote hain.A rich person is a mental handicap.Md i wish to comment in hindi,but no option available here.

virendra sharma said...

पूजा ,बाबा और आम :
सशक्त लघु कथाएं हैं ,बाबा और आम .पैसा ध्यान खीचता है ,वाणी उससे भी ज्यादा ,इसीलिए कहा गया "आदमी गुड न दे तो गुड जैसी बात तो कहदे ,"बडो को दो बोल ही तो चाहिए ,उनका भी तोडा है आज ,आम कथा साफ़ साफ़ बतलाती है:आमिर विकलांग होते हैं ,कंजूस मख्खी चूस भी ,बेसलीका भी ,बात करते हैं "टेबल मैनर्स की,सब ढकोसला है और क्या ?

virendra sharma said...

पूजा ,बाबा और आम :
सशक्त लघु कथाएं हैं ,बाबा और आम .पैसा ध्यान खीचता है ,वाणी उससे भी ज्यादा ,इसीलिए कहा गया "आदमी गुड न दे तो गुड जैसी बात तो कहदे ,"बडो को दो बोल ही तो चाहिए ,उनका भी तोडा है आज ,आम कथा साफ़ साफ़ बतलाती है:आमिर विकलांग होते हैं ,कंजूस मख्खी चूस भी ,बेसलीका भी ,बात करते हैं "टेबल मैनर्स की,सब ढकोसला है और क्या ?

कीर्ति राणा said...

ajitji;
'eak gaw me'accha geet laga.aap is geet bada laybadh hai.
'pachmel'par aap ki tippni ke liye aabhar.
kirti rana

Anonymous said...

Hi,

Thank you Very Much for sharing this helpful informative article here.

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