मणि नाम का साँप वापस अपने बिल से निकला, चारों
तरफ देखा कि बाढ़ का पानी उतर तो गया है ना? कहीं जंगल में मोर तो नाच नहीं रहें
हैं ना? आश्वस्त हुआ फिर बिल से बाहर आया। नहीं, कोई खतरा नहीं। जैसे ही बिल से
थोड़ा दूर ही चला था कि पता लगा, मालिक पर संकट गहराया है। मालिक सिंहासन खाली
करने की जिद पर अड़े हैं। वह सरपट दौड़ लगाकर दरबार तक पहुँचा, देखा कि सन्नाटा
पसरा है। सारे ही जीव फुसफुसा रहे हैं, सभी के मुँह पर चिन्ता पसरी है। मालिक ने
एक माह का समय दिया था, वह पूरा होने में है। सारे देश में मुनादी फिरा दी गयी है
कि मालिक के पैर की जूती सिंहासन के लिये चाहिये लेकिन लोग पैर की जूती बनकर भी सिंहासन
पर बैठना नहीं चाहते! डरते हैं कि कहीं सीताराम केसरी जैसा हाल ना हो जाए! भला
किसकी औकात है जो मालिक की बराबरी कर सके? आखिर कहा तो यही जाएगा ना कि मालिक की
जगह ये बैठे हैं सिंहासन पर! नहीं बराबरी तो बिल्कुल भी नहीं। लेकिन मालिक है कि
मान ही नहीं रहे हैं। असल में मालिक बोर हो गये हैं, कब तक एक ही मोदी को गाली
देते रहें! वे हवा परिवर्तन को जाना चाहते हैं। मणि नाम के साँप को मालिक का उठाया
हर कदम ऐसा ही लगता है जैसे प्रभु ने कदम उठाया हो! लेकिन मणि को गुस्सा भी
बहुत है कि मालिक के सिवाय किसी भी
ऐरे-गैरे-नत्थू-गैरे को मालिक तो नहीं कहा जाएगा! वह सोच में पड़ गया, क्या बोले
समझ नहीं आ रहा था। तभी दरबार से आवाज आयी, अरे देखो, अपना परम विषधर मणि साँप आ
गया है! सारे दरबारी नाचने लगे, इसके जहर का तो तोड़ नहीं है तो बता मणि ऐसी परिस्थिति
में क्या किया जाए?
मणि बोला कि करना क्या है, याद करो, पहले मालिक
के प्रति वफादारी किसने निभायी थी। एक ने कहा कि सर, नेहरू के बाद ऐसा ही संकट
पैदा हुआ था, इन्दिरा जी सिंहासन पर बैठने
में झिझक रही थी तो एक बौने से नेता को हमारे पूर्वजों ने सिंहासन पर बिठा दिया
था। अभी बात भी पूरी नहीं हुई थी कि चारों तरफ से शोर उठ गया, नाम मत लो, ऐसे ....
का। वह तो इन्दिरा जी का ऐसा प्रताप था कि उनको दूसरे देश में भेजकर हमेशा के लिये
सुला दिया गया था, नहीं तो उसने इस खानदान को ही उलटने की तैयारी कर ली थी! चारों
तरफ खामोशी छा गयी। तभी एक ओर से आवाज आयी कि एक जमाने में हमारे मालिक के ही वंशज
हमारे प्रदेश की यात्रा पर आए थे, हमारे मुख्यमंत्री ने अपना कंधा आगे कर दिया था
कि हुकुम आप इसपर पैर रखकर नीचे उतरें! इतनी वफादारी निभायी थी हमारे प्रदेश ने।
इसलिये हमें अवसर मिले और हम मालिक के वफादार बनकर सिंहासन की रक्षा कर सकें। मणि
साँप ने कहा कि बात तो उचित है। हम किसी को सिंहासन पर बिठा तो सकते हैं लेकिन
सिंहासन का स्थान 10, जनपथ ही रहेगा और इसकी डोरी हमारे मालिक के पास ही रहेगी।
बोलो मंजूर है? हम जैसे पालतू लोगों के लिये एक ठिकाना होना ही चाहिये, हम ठोर
नहीं बदल सकते। अब कोई मुझ से कहे कि मैं बिल की जगह खुले खेत में रहने लगूँ तो
कितने दिन जीवित रह सकूंगा? इसलिये तलाश करिये किसी अमचे-चमचे की, जो सदैव भगोने
में रहने को बाध्य रहे। साँस भी लेनी हो तो मालिक से पूछकर ले। बस कुछ दिनों की
बात है, मालिक तफरी से लौट जाएंगे और फिर ड्यूटी खत्म। फटी जेब का कुर्ता पहनकर
मालिक बोर हो चले हैं, उन्हें नया कुछ चाहिये। जाने दीजिए उन्हें बैंकाक या लन्दन,
जहाँ उनका मन करे, बस तरोताजा होने दीजिए। जब वापस लौटेंगे तब देखना उनके पास गालियों
का भरपूर भण्डार होगा। मैं भी मालिक के साथ ही रहूँगा, उन्हें रोज थोड़ा-थोड़ा विष
का सेवन कराऊंगा, जिससे वे अधिक जहर उगल सके। आप लोग चिन्ता ना करें, अब मैं आ गया
हूँ. सब ठीक कर दूंगा। बस ध्यान रहे कि भूलकर भी नये व्यक्ति को थोड़ी सी भी
स्वतंत्रता मत देना। हमारे मालिक और हमारे मालिक का खानदान जब तक सूरज-चाँद रहेगा,
तब तक रहना चाहिये। मैं साँप का वंशज, वचन देता हूँ कि मैं पृथ्वी पर अनादि काल से
रहता आया हूँ, आगे भी रहूँगा, मेरे जहर से ना कोई बचा है और ना आगे भी बचेगा।
लेकिन, लेकिन हकलाता सा एक कार्यकर्ता बोला कि आपके जहर से यह मोदी नामका नेता तो
मरता नहीं हैं! आपके जहर में तो असर है ही नहीं, आप तो केवल फूंफकारते हो! मणि
साँप धीरे से खिसक लिया, बोला कि मेरे विश्राम का समय हो गया है। जय मालिक, जय
मालिक कहता हुआ वह वहीं अपने पुराने बिल में घुस गया। बस जाते-जाते कहता गया कि
किसी को भी बिठा दो, लेकिन मालिक के खानदान पर आँच नहीं आनी चाहिये। बस खानदान
पुराना और खानसामा नया।
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी आभार।
सुमन जी आभार एवं मेरे ब्लाग पर स्वागत है।
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