किसी ने न्याय को देखा है क्या? विकास को भी तो
नहीं देखा था ना! प्रजा के किसी अदने से बंदे ने राजा को ललकार दिया, तत्काल सर
कलम कर दिया गया, राजा ने कहा कि हो गया न्याय! न्याय का निर्धारण राजा की पसन्द
से होता है। जो राजा के हित में हो बस वही न्याय है। 1975 याद है ना, शायद
नौजवानों को खबर नहीं लेकिन हम जैसे लोगों के तो दिलों में बसा है, भला उस न्याय
को कैसे भूल सकते हैं! न्यायाधीश ने न्याय किया कि तात्कालीन प्रधानमंत्री ने
चुनाव गलत तरीकों से जीता है लेकिन प्रधानमंत्री तो खुद को राजा मानती थी तो आपातकाल
लगाकर, सारे विपक्ष को जैलों में ठूसकर, मीडिया की बोलती बन्द कर के न्याय हुआ। तब
भी कहा गया कि अब न्याय हुआ। 1984 भी याद होगा! पेड़ के गिरने से धरती हिल जाती है
और राजा की मृत्यु से निरपराध कौम का सरेआम कत्लेआम भी न्याय ही कहलाया था, तब भी
कहा गया था कि अब न्याय हुआ। न्याय के कितने ही किस्से हैं जब एक वंश ने अपने हित
में न्याय किया। लेकिन न्याय करते-करते प्रजा को समझ आने लगा कि यह न्याय एकतरफा
है। जैसे ही प्रजा की समझ बढ़ी, वंश का शासन नेपथ्य में चले गया। अब फिर चुनाव आया
है और नारा दिया है – अब न्याय होगा! मुझे एक-एक कर सारे ही न्याय याद आने लगे
हैं। सीताराम केसरी के प्रति भी न्याय याद आ रहा है, मेनका गाँधी के प्रति भी
न्याय याद आ रहा है, लाल बहादुर शास्त्री के प्रति भी न्याय याद आ रहा है। सरदार
पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, नरसिंह राव, सुभाष चन्द्र बोस, सावरकर न जाने कितने नाम
है वे सारे ही न्याय याद आ रहे हैं।
खुली चेतावनी दी गयी है, अब न्याय होगा! खुली
चेतावनी दी जा रही है कि एक सम्प्रदाय एकत्र हो जाए और बहुसंख्यक समाज को न्याय
दें सकें। पाकिस्तान से हाथ मिलाया जा रहा है, चीन के भी फेरे लगाये जा रहे हैं,
बस इसी न्याय के लिये। आतंकवाद को पनाह दी जा रही है, मासूम प्रजा को न्याय देने
के लिये। कभी चायवाला तो कभी दलित तो कभी महिला को निशाना बनाया जा रहा है कि
सत्ता पर इनकी जुर्रत कैसे हुई बैठने की, अब न्याय होगा। खुले आम कहा गया कि देश
को सेवक नहीं शासक चाहिये क्योंकि शासक ही तो न्याय कर सकता है। सैना को भी औकात
बतायी जा रही है कि हम जैसे शासकों के साथ रहो, जो हम चाहते हैं उसी पक्ष में खड़े रहो, हम ही तय करेंगे कि देश की
सीमा क्या हो! हमने ही पहले देश की सीमा तय की थी, हमने ही पाकिस्तान बनाया था, हम
चाहेंगे कि कश्मीर भी अलग देश बने इसलिये सैना को हमारे ही पक्ष में खड़ा रहना है,
अब सैना का न्याय भी हम करेंगे।
अब न्याय होगा! प्रजा को समझ लेना है कि कैसा
न्याय होगा! लोकतंत्र के खोल में राजाशाही का खेल होगा। राजवंश पूर्णतया सुरक्षित
रह सके, इसके लिये न्याय होगा। राजवंश एक ही समय में ब्राहण बने या मुस्लिम बने या
फिर ईसाई, किसी को प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं होगा, यदि कोई पूछेगा तो फिर न्याय
होगा। जनता को हर पल अनुभव कराया जाएगा कि वह गुलाम प्रजा है, उसे चौबीस घण्टे
बिजली और पानी की जरूरत नहीं है, उसे गुलाम प्रजा की तरह रहना सीखना ही होगा, नहीं
तो न्याय होगा। सबके लिये विकास की बात करने वालों के प्रति न्याय होगा। हमारे वंश
के चिरागों को ही प्रथम परिवार मानना होगा, नहीं तो न्याय होगा। हम शासक हैं यह
बात सम्पूर्ण जनता को माननी ही होगी, नहीं तो न्याय होगा। राजा के दरबारी खुश हैं
कि अब हमें भी लूट का माल मिलेगा, झूठन मिलेगी, गाड़ी में ना सही, गाडी के पीछे
लटकने का अवसर मिलेगा, तो दरबारी खुश हैं। वे भी चिल्ला रहे हैं कि अब न्याय होगा।
सब खुश हो रहे हैं, नाच रहे हैं कि अब न्याय होगा! हम राजस्थान में बैठकर घण्टों
जाती बिजली को देखकर समझ गये हैं कि अब न्याय हो रहा है। हमें समझ आने लगा है कि
प्रजा क्या होती है और राजा क्या होता है। हम भी अब न्याय होगा के मंत्र को
दोहराने लगे हैं और खुद को गुलाम बनाने की ओर मुड़ने लगे हैं। चुनाव के नतीजे
बताएंगे कि अब न्याय होगा या फिर जनता सबल बनकर राजा को सेवक धर्म का स्मरण कराती
रहेगी!
5 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-04-2019) को "जगह-जगह मतदान" (चर्चा अंक-3310) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/04/2019 की बुलेटिन, " विश्व धरोहर दिवस 2019 - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
अमित निश्चल जी आभार एवं स्वागत।
Very nice
आभार दीपशिखा।
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