Friday, April 20, 2018

जी-हुजूरियें आखिरी दाँव ढूंढ रहे हैं


बात 90 के दशक की है, हमारे कॉलेज में जब परीक्षाएं होती थी तब परीक्षा केन्द्रों पर सारे ही अध्यापकों की ड्यूटी लगती थी, लेकिन मेरी कभी नहीं। मैं सोचती थी शायद महिला होने के कारण मुक्ति मिल जाती होगी लेकिन फिर बाद में महिला होने के कारण ही लगने लगी, क्योंकि परीक्षा तो बालिकाएं भी दे रही होती थी। तब में देखती कि कुछ लोगों की नियमित ड्यूटी लगती है लेकिन कुछ लोगों की नहीं। मुझे प्रशासन से प्रश्न पूछने का फितूर है, उसका परिणाम भुक्ता भी बहुत है, तो तब भी पूछ लिया कि कुछ लोगों की ड्यूटी लगे और कुछ की नहीं? यहाँ यह भी देखने की बात थी कि उस समय ड्यूटी देने पर 10 रू. मिलते थे और इन्हीं 10 रूपयों के कारण लोगों का चयन होता था। मेरे प्रश्न पर एक ने कहा कि जो लोग हमारे नहीं, हम उन्हें किसी भी प्रकार का लाभ नहीं देते। जब प्रशासन का फार्मूला पता लगा तो सभी जगह यह दिखायी दिया। केवल मुठ्ठी भर लोग ही फायदों की जगह दिखायी देते बाकि सारे ही सामान्य प्रजा की तरह रहते। देश की राजनीति की चाल भी यही थी, जो सरकार के जी-हुजूरिये उन्हें ही सरकारी लाभ मिले शेष तो केवल प्रजा। देश की आजादी के बाद से यही सिलसिला चला और एक ही घराने का राजकाज होने के कारण लोकतंत्र की जगह राजतंत्र ही दिखायी देने लगा। हर क्षेत्र में एक वर्ग खड़ा हो गया, जो सारे लाभों का हकदार था। योजनाएं इतनी बनी और पुरस्कार व सम्मानों की बाढ़ आ गयी, अपने जी-हुजूरियों के लिये ही ये सारी थीं। 50 साल में जी-हुजूरियें पक्के हो गये, सभी को आदत हो गयी कि ये ही है समाज के सितारे। फिर धीर-धीरे शासन बदलने लगा और राजतंत्र से निकलकर लोकतंत्र की ओर बढ़ने लगा तब जाकर कहीं इन जी-हुजूरियों की जगह आम जनता को भी लाभ मिलने लगा। लेकिन जैसे ही मेरे जैसा एक आम व्यक्ति उस पंक्ति में खड़ा हुआ, चारों तरफ से शोर मच गया। जी-हुजूरियों को तो तनिक भी नहीं भाया लेकिन आम जनता भी उन जी-हुजूरियों को ही बुद्धीजीवी मान बैठी थी तो उनने भी प्रश्न खड़े कर दिये। अब प्रश्न भी बुद्धिमत्ता पर नहीं लेकिन बस शुरू कर दी छिछालेदारी। 
2014 में आया मोदी-राज, अब तो पूर्ण लोकतंत्र लागू हो गया। कोई जी-हुजूरियें नहीं, बस योग्यता ही पैमाना। जहाँ सरकार की योजनाओं और पुरस्कार-सम्मान पर केवल इन जी-हुजूरियों का ही कब्जा था, नहीं रहा और लोकतंत्र स्थापित होने लगा। चारों तरफ से शोर मचने लगा कि हम कहाँ, हम कहाँ? जिन मंचों पर केवल वे थे अब समाज का प्रबुद्ध वर्ग दिखायी देने लगा, जिन योजनाओं पर आम गरीब व्यक्ति का हक था, अब योजना का लाभ उसे मिलने लगा तो शोर मचना लाजिमी था। लाखों गैस कनेक्शन फर्जी, लाखों राशन कार्ड फर्जी और न जाने क्या-क्या फर्जी। न जाने कितने व्यापारी कमीशन दलाल के रूप में काम कर रहे थे, अब उनका कमीशन बन्द। शोर यह  भी मचा कि शासन में नया क्या है, सब तो हमारे जमाने का है। सच भी है, नया विशेष नहीं, बस योजनाएं लागू करने में नवीनता होने लगी। अब एक वर्ग का स्थान आम व्यक्ति ने ले लिया था तो यह विशेष वर्ग हरकत में  आ गया। पत्रकार से लेकर साहित्यकार, वकील से लेकर न्यायाधीश, व्यापारी से लेकर दलाल, सारे ही शोर मचाने लगे। उन्हें ऐसा लग रहा है कि उनकी आँखों के सामने ही उनका खजाना आम जनता में बंट रहा हो! जिसपर केवल उनका हक था, वह हक सबका हो गया, यह तो घोर अनर्थ हो गया। वे लोग पैसे से भी गये और विशेष वर्ग की पहचान से भी। अब रोज भी नये उपद्रवों की खोज की जाने लगी, कभी थाणे में राजनीति तो कभी न्यायालय में राजनीति! संसद में केवल शोर-शराबा! क्योंकि ना तो प्रश्न थे और ना ही बहस के लिये विचार थे। कैसे कहें कि यह सब हमारा था, उसे कैसे निर्ममता से जनता में बांट रहे हो, तो संसद में केवल शोर रह गया। न्यायालय में केस दर्ज होने लगे, सोचा था कि अपने ही जज  हैं तो न्याय के माध्यम से ही राजनीति कर लेंगे लेकिन जज महोदय ने तो साफ आईना दिखा दिया कि यह न्याय का मन्दिर है, यहाँ राजनीति नहीं चलेगी।
जी-हुजूरियें आखिरी दाँव ढूंढ रहे हैं, कैसे भी शासन वापस अपने ही हाथ में आ जाए और फिर चाहे 10 रू वाली परीक्षा में ड्यूटी हो या फिर विदेश-यात्राओं से लेकर पुरस्कार-सम्मान की बंदर-बांट। जिन जी-हुजूरियों को खास बनाया गया था, बस वे ही देश के फलक पर दिखने चाहिये, बाकि तो सब मच्छर है। 2019 तक देश में यही दृश्य रहने वाला है, सारे ही प्रलाप को तैयार हैं। एक प्रलाप में दम नहीं तो दूसरे दिन ही दूसरा प्रलाप तैयार मिलेगा। हम प्रलाप करने में माहिर हैं, इतना तो कर ही देंगे कि लोग कहने लगें कि बाबा मैं तो भूखा ही रह लूंगा, ले देश की रोटी तू ही खा ले। जैसे गाँधीजी के सामने रोटी फेंकी गयी थी कि तू रोटी खा, उपवास मत कर, हम ही मर जाएंगे। सावधान रहना होगा, क्योंकि ये आम जनता को भी टुकड़ा डालेंगे कि तुम हमारे साथ आ जाओ, हम तुम्हें भी खास की लाइन में खड़ा कर देंगे। बड़ा होना कौन नहीं चाहता! दूसरों के सामने सम्मान कौन नहीं चाहता! बस इसी का फायदा उठाया जाएगा और लोगों का अपने पक्ष में किया जाएगा। बचना बाबा इन जी-हुजूरियों से।

6 comments:

Alaknanda Singh said...

आदरणीय अजित जी, नमस्‍कार
आप सही कह रही हैं, इसीलिए मोदीी सरकार के विरुद्ध तिनका तिनका बातों से पहाड़ बांध दिये जाते हैं...https://abchhodobhi.blogspot.in/

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-04-2017) को "बातों में है बात" (चर्चा अंक-2947) (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ज़िन्दगी का हिसाब “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

अजित गुप्ता का कोना said...

अलकनन्दा सिंह जी, आभार आपका।

अजित गुप्ता का कोना said...

शास्त्रीजी और शिवम् मिश्रा जी आभार।

Amrita Tanmay said...

सौ प्रतिशत सच ।