Tuesday, July 18, 2017

लड़ना क्या इतना आसान होता है?

#हिन्दी_ब्लागिंग

लड़ना क्या इतना आसान होता है? पिताजी जब डांटते थे तब बहुत देर तक भुनभुनाते रहते थे, दूसरों के कंधे का सहारा लेकर रो  भी लेते थे लेकिन हिम्मत नहीं होती थी कि पिताजी से झगड़ा कर लें या उनसे कुछ बोल दें। माँ भी कभी ऊंच-नीच बताती थी तो भी मन मानता नहीं था, माँ को जवाब भी दे देते थे लेकिन बात-बात में झगड़ा नहीं किया जा सकता था। ऐसा ही हाल भाइयों के साथ था। नाते-रिश्तेदार, परिचित सभी के साथ कुछ ना कुछ तो मतभेद हो ही जाता था लेकिन झगड़ें की जब नौबत आती थी तब हौंसले पस्त हो जाते थे। नौकरी में भी कभी-कभार झगड़ा कर लेते थे लेकिन रोज-मर्रा यह सम्भव नहीं होता था। बस एक जगह है जहाँ आप रोज झगड़ा करने के लिये स्वतंत्र हैं। रोज कहना भी ठीक नहीं, हर पल आपके पास यह सुविधा उपलब्ध है और दुनिया का हर व्यक्ति इस सुविधा का प्रयोग करता ही है। जिसके पास भी एक अदद पति है या पत्नी है, उसे भला कौन रोक सकता है, इस सुविधा का लाभ लेने से? गर्मी हो या सर्दी, भरी बरसात हो या खिलता हुआ वसन्त, झगड़े के  बहाने अपने आप निकल आते हैं। मजेदार बात यह है कि झगड़ा भी कर लो और दूसरे ही क्षण हँस भी दो। हौसला बनाने में यह रिश्ता बहुत काम आता है, जिसने इस  रिश्ते की कद्र नहीं की और अभी तक अकेला है, वह हमेशा डरा हुआ ही रहता है।

एक किस्सा याद अ गया। मेरी एक मित्र के घर मैं गयी थी. वहाँ तमाशा पूरी स्पीड से चल रहा था। सारा ही घर हँस-हँसकर लौटपोट हो रहा था। मेरी मित्र ने बताया कि अभी कुछ देर पहले हमारी पड़ोसन आयी और चूड़िया फोड़कर चले गयी। जबरदस्त गुस्से में थी, बस आज के बाद पति से सारे ही सम्बन्ध समाप्त। लेकिन यह क्या, अभी कुछ ही देर बीती होगी कि देखा सज-धज कर कहीं जाने की जुगाड़ में है। हमने पूछा कि क्या हुआ, कहाँ जा रही हो? हँसकर बोली की पति के साथ पिक्चर देखने जा रही  हूँ। अब कर लो बात। 

1 comment:

ताऊ रामपुरिया said...

लडना फ़िर प्रेम करना, फ़िर लडना फ़िर प्रेम करना, बस इसे ही संसार कहते हैं. लडाई होगई तो अगला कदम प्रेम का ही होगा और प्रेम होगया तो अगला कदम लडाई ही होगा. संसार के पार कोई ज्ञानी ही निकल सकता है.
रामराम
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