जमूरे नाच दिखा, जमूरे सलाम कर, ऐसे खेल तो आप
सभी ने देखे होंगे। एक मदारी होता था, उसके साथ दो बन्दर रहते थे, मदारी डुगडुगी
बजाता था और खेल देखने वालों की भीड़ जुट
जाती थी। दर्शकों को पता था कि खेल बन्दर का है, उनका परिचित बन्दर होता था तो
भीड़ भी खूब जुटती थी। अब यह खेल बन्द हो गया है, पशु-प्रेम की दुहाई देकर, वो बात
अलग है कि पशुओं को उदरस्थ करने में यह प्रेम नहीं उमड़ता है। खैर मैं मदारी और
जमूरे के खेल की बात कर रही हूँ। अब नये तरीके के मदारी पैदा हो गये हैं और जमूरे
बन्दर नहीं होते वरन नामी गिरामी व्यक्ति होते हैं। यह खेल बड़े शहरों से लेकर
छोटे गाँव-ढाणियों तक में खेला जाता है। जिस भी व्यक्ति को भीड़ एकत्र करने का शौक
और कुव्वत होती है, वह यह खेल खेलता है। किसी संस्था के नाम पर, किसी संगठन के नाम
पर, सरकार के नाम पर आदि आदि नाम पर इस
खेल को खेलने के लिये मदारी होते हैं। बस उन्हें करतब दिखाने के लिये जमूरों की
जरूरत होती है, वे कभी देश की, कभी समाज
की, कभी जाति की तो कभी फलाने की और कभी ढिकाने की दुहाई देकर जमूरों को पटा लेते
हैं। जैसे ही जमूरा पटा, भीड़ भी जुट जाती
है और फिर शुरू होता है खेल। मदारी कहता है जमूरे खड़े हो जा, जमूरा खड़ा होता है,
जमूरे अब तू दूसरे का खेल देख, जमूरा खेल देखता है। मदारी जानता है कि यह मुख्य
जमूरा है, इसका खेल आखिर में होगा, नहीं तो भीड़ रवाना हो जाएगी। अब जमूरा कसमसाता रहता है, घड़ी
देखने लगता है, कैसे पीछा छुड़ाये तरकीब सोचता रहता है, लेकिन उसकी सारी ही तरकीबे
मदारी धराशाही कर देता है।
मैंने भी अनेक बार जमूरे का नाच किया है मदारी
के इशारे पर। मैं देश के बड़े से बड़े व्यक्ति को और छोटे से छोटे व्यक्ति को भी
जमूरा बनते देखती हूँ। जैसे ही मदारी ने आप से जमूरा बनने की हाँ भरायी, वैसे ही आप बंधक बन जाते हैं। अब
मदारी जैसा कहे, वेसा जमूरा नाचने को मजबूर। दो-दो तीन-तीन घण्टे इस नौटंकी में
बर्बाद हो जाएं। कई बार मन करे की बन्दर के गले में पड़ी रस्सी को तोड़कर भाग लिया
जाए, लेकिन लिहाज की रस्सी तोड़ी ना जाए। समझ नहीं आ रहा था कि हिम्मत कैसे पैदा
की जाए, लेकिन यह तय था कि अब अनावश्यक जमूरा नहीं बनना है। एकाध मदारियों को तो
मैंने टरका दिया, कहा कि नहीं अब बन्दर बूढ़ा हो गया है, गुलाटी नहीं मार सकता।
लेकिन सारे ही मदारी तो कच्चे खिलाड़ी नहीं होते, कुछ होशियार भी होते हैं, वे
कैसे न कैसे फांस ही लेते हैं। अभी दो दिन पहले भी यही हुआ. हम जाल में फंस गये, मोह छुट नहीं पाया।
जैसे ही करतब के मंच पर पहुंचे लगा की आज
तो बुरे फंसे हैं। फिर हिम्मत जुटायी और दो घण्टे देने के बाद जमूरा खड़ा हो गया,
मदारी ने कहा कि क्या हुआ, खेल तो अभी शुरू हुआ है। मैंने कहा कि नहीं, अब नहीं,
जमूरे का समय समाप्त हो गया है। और जमूरा बनी मैं पूरी ताकत के साथ बाहर की ओर
भागी, यह भी नहीं देखा कि कोई पीछे आ रहा
है या नहीं। गाड़ी को तैयार रखा
था, बस सीधे गाड़ी में धंस गये और जमूरा बिना खेल दिखाये ही चम्पत हो गया। घर आकर खूब ताली बजायी कि आज
जमूरे में हिम्मत आ गयी। हे दुनिया के जमूरों, तुम भी हिम्मत पैदा करो और मदारियों
के चंगुल से छूटकर जीवन को सुखी बनाओ।
1 comment:
आभार।
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