Saturday, February 20, 2016

आग का दरिया है और डूब के जाना है

कुछ लोगों का जीवन अपने परिवार तक सीमित होता है, उनके लिये ही सारा खटराग रहता है। लेकिन कुछ लोग अपने मन को भी टटोलते रहते है और वे कभी परिवार से इतर अपने मन की इच्छाओं को भी पूर्ण करना चाहते हैं। इसके लिये वे साहित्यिक, राजनैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक आदि अनेक क्षेत्र हैं जिसमें वे स्वयम् को तलाशते हैं। जीवीकोपार्जन के अतिरिक्त ऐसे लोग इन से सम्बन्धित संस्थाओं में अपनी जगह ढूंढते हैं। समय की उपलब्धता के हिसाब से वे अपना मन बनाते हैं।
पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें - 
http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%86%E0%A4%97-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%A6%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%A1%E0%A5%82%E0%A4%AC-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8/ 

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (21-02-2016) को "किन लोगों पर भरोसा करें" (चर्चा अंक-2259) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

अजित गुप्ता का कोना said...

आभार शास्त्री जी

Shanti Garg said...

सार्थक व प्रशंसनीय रचना...
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है।