Tuesday, September 17, 2013

Tuesday, September 10, 2013

कुछ गर्द उड़ी कुछ सीलन थी

 जिन अध्‍यायों को मन बिसरा बैठा था, वे एक-एक कर निकल आए। कहीं गर्द थी और कही सीलन थी। कहीं प्रकाश था तो कहीं उल्‍लास भी था। लेकिन अब रेत हाथ से फिसलने लगी है, संचय का अर्थ दिखायी नहीं देता।
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Friday, September 6, 2013

छोटे कस्‍बे का बड़ा संघर्ष - श्रीमती संतोष अरोड़ा

छोटे कस्‍बे का बड़ा संघर्ष - श्रीमती संतोष अरोड़ा
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