Saturday, April 20, 2013

समाज भेड़िये पैदा कर रहा है और समाज के ठेकेदार जनता से सुरक्षा-कर वसूल रहे हैं

एक घना और फलदार वृक्ष था, उसमें सैंकड़ों पक्षी अपना बसेरा बनाए हुए थे। उसमें इतने फल लगते थे कि उन सभी पक्षियों का पेट भर जाता था। पास में ही एक नदी बहती थी, वृक्ष की जड़े उसी नदी से पानी लेती थी और पेड़ को हरा-भरा रखती थी। नदी जिस शहर से होकर गुजरती थी, वहाँ एक रसायन उत्‍पाद करने वाला कारखाना था। उस कारखाने का रसायन युक्‍त पानी उसी नदी में आकर मिलता था। शहर की अन्‍य सारी गन्‍दगी भी उसी नदी में समाती थी। पेड़ उसी नदी का पानी लेने को मजबूर था।
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http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%AD%E0%A5%87%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%87-%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%A6%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A4%BE-%E0%A4%B9/

5 comments:

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (21-04-2013) के चर्चा मंच 1220 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

ब्लॉग बुलेटिन said...

आज की ब्लॉग बुलेटिन क्यों न जाए 'ज़ौक़' अब दिल्ली की गलियाँ छोड़ कर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आज जरूरत है समाज में पल रहे कामी भेड़ियों को मारने की।
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
साझा करने के लिए आभार...!

कालीपद "प्रसाद" said...

इन भेदियों को एक एक कर ख़तम करना हॉग और यह काम जनता ही कर सकती है

अजित गुप्ता का कोना said...

कालीपद जी आपका मेरे ब्‍लाग पर स्‍वागत है। आपके अमूल्‍य सुझाव आगे भी मिलते रहेंगे, ऐसी आशा है।