होली आकर चले गयी। इसबार हम दुनिया जहान से दूर लेकिन
अपनों के बीच चले गए। ना फेसबुक और ना ही ब्लाग। वापस आकर देखा तो पोस्टों का
मेला लगा है, सभी अपने तरीके से होली मना रहे हैं। इस होली पर हमने काफी पहले ही
कार्यक्रम बना लिया था कि अपनी बहन के साथ या यू कहूं कि जीजाजी के साथ होली
मनाएंगे लेकिन ऐन वक्त पर जीजाजी तो धोखा दे गए और वे अमेरिका उड़ गए। पोस्ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%85%E0%A4%AC-%E0%A4%A4%E0%A5%8B-%E0%A4%AD%E0%A4%88%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%A2%E0%A4%BC%E0%A5%87-%E0%A4%B9%E0%A5%8B-%E0%A4%97%E0%A4%8F-%E0%A4%B1%E0%A4%82%E0%A4%97-%E0%A4%A8/
श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Sunday, March 31, 2013
Saturday, March 23, 2013
शोक संदेश का वाचन- कितना सार्थक और कितना निरर्थक
प्रत्येक शहर का अपना दस्तूर होता है, त्योहार से
लेकर मृत्यु तक में ऊसका अपना रंग भरा होता है। सभी शहरों के अपने कर्मकाण्ड
हैं। मृत्यु एक ऐसा पक्ष है जिसमें व्यक्ति की संवेदनाएं जुड़ी रहती हैं इसलिए इस
समय होने वाले कर्मकाण्डों पर अक्सर कोई टीका-टिप्पणी नहीं करता है। भारत इतना
विशाल देश हैं, यहाँ परम्पराएं और कर्मकाण्ड शायद हर पाँच कोस पर ही बदल जाते
हैं वहाँ किसी एक परम्परा की बात करना बेमानी सा ही हो जाता है।
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Tuesday, March 12, 2013
डॉक्टर ने कहा - आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए
दुर्भाग्य से आपको किसी डॉक्टर के पास जाना पड़ जाए,
तो आपकी हालत तीन दिन पुराने खिले फूल सी हो जाती है। दिल की धड़कन, भैंस के गले
में बंधी घण्टी की तरह हो जाती है, जो अपने आप बजती ही रहती है। इस पर डॉक्टर
आपकी बात सुनने के स्थान पर आप से कहे कि "आप चुप रहिए, बस मुझे सुनिए"
तो आपको कैसा लगेगा?
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Friday, March 1, 2013
हम चिड़ियाघर की तरह अपने-अपने कक्ष में बैठे हैं
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