Monday, February 25, 2013

शरीर की आवश्‍यकताएं और उनका आधुनिक प्रबंधन



घटना कुछ माह पुरानी है। मैं रेलमार्ग से उदयपुर से दिल्‍ली जा रही थी। अभी गाडी चलने में पर्याप्‍त समय था और मैं अपनी बर्थ पर आसन जमा चुकी थी। डिब्‍बे में बड़ी चहल-पहल थी, एक दल उदयपुर घूमने आया था और वे अपनी शय्‍याओं का प्रबंध कर रहा था। कुछ उनके पास थी और कुछ को वे प्राप्‍त करने की जुगाड़ में थे। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A8/

4 comments:

Rahul Singh said...

आपको पढ़ने के लिए दोहरा क्लिक अड़चन बन रहा है.

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

अजित गुप्ता का कोना said...

राहुल सिंह जी, मैं मूलत: वेबसाइट पर ही लिखना चाह रही हूँ लेकिन इस ब्‍लाग पर ही सारे फोलोवर हैं इसकारण इसे लिंक के रूप में काम लेना पड़ता है। आप सीधे ही वेबसाइट से जुड़ सकते हैं।

अरुण चन्द्र रॉय said...

अनैतिक सम्बन्ध अनैतिक ही होते है, चाहे उनको कोई भी संज्ञा दे दी जाय. बहुत समकालीन मुद्दा उठाया है आपने