मान शब्द मन के करीब लगता है, जो शब्द मन को
क्षुद्र बनाएं वे अपमान लगते हैं और जो शब्द आपको समानता का अनुभव कराएं वे मन को
अच्छे लगते हैं। दूसरों को छोटा सिद्ध करने के लिए हम दिनभर में न जाने कितने शब्दों
का प्रयोग करते हैं। इसके विपरीत दूसरों को अपने समान मानते हुए उन्हें आदर सूचक
शब्दों से पुकारते भी हैं। दुनिया में रोटी, कपड़ा और मकान के भी पूर्व कहीं इन दो
शब्दों का जमावड़ा है। सम्पूर्ण पोस्ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A5%82%E0%A4%B2-%E0%A4%B6%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%A6-%E0%A4%85%E0%A4%AA%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8/
श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Thursday, January 24, 2013
Saturday, January 19, 2013
बाकी है एक और बर्बरता के समाचार
अभी एक और ज्वलंत समस्या से हमें दो-हाथ होना है।
अभी पुरुष बर्बरता के कारण महिलाएं संकट में पड़ी है, देश और दुनिया इनकी बर्बरता
का हल ढूंढ रहे है। सारा ही देश आंदोलित है, लेकिन तर्क-वितर्क से समाधान नहीं समझ
आ रहा। पुरुष की बर्बरता सभी ने स्वीकार की है लेकिन उसे अनुशासित करना होगा, उस
पर नियन्त्रण रखना होगा, ऐसी आवाज कहीं से भी नहीं आ रही है। शेष पोस्ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%AE/
Saturday, January 12, 2013
स्वामी विवेकानन्द के सांस्कृतिक नवजागरण में महिलाओं का योगदान
स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जन्मशताब्दी
वर्ष पर विशेष
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Sunday, January 6, 2013
आपको अभी तक याद है आपकी छत?
घर की छत, शाम होते ही पानी से सरोबार हो जाने वाली
छत। सुबह के साथ ही गहमा-गहमी वाल छत। शाम होते ही पहले पानी से छिड़काव किया जाता,
बड़े करीने और सलीके से उसे सुखाया जाता और फिर कितनी खुबसूरती के साथ बिस्तर लगाए
जाते।
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Wednesday, January 2, 2013
निरर्थक सदवचनों से समाज का वीरत्व समाप्त हो गया है
कतिपय सदवाक्य,
हमें अंधकार में धकेल रहे हैं
अभी एक सदवाक्य पढ़ा
- don’t find fault, find a remedy.
चिकित्सकीय भाषा में एक बात कही जाती है - रोग का निदान हो
जाए तो चिकित्सा हो जाती है।सम्पूर्ण पोस् ट पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%B5%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9C-%E0%A4%95/
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