स्वामी विवेकानन्द का यह 150वां जन्मशताब्दी वर्ष है। यदि नरेन्द्र से विवेकानन्द बनने की यात्रा पूर्ण नहीं होती तो आज भारत अपना स्वाभिमान खोकर यूरोप का एक उपनिवेश के रूप में स्थापित हो जाता। भारत का हिन्दुत्व कहीं विलीन हो जाता और ईसाइयत महिमा मण्डित हो जाती। त्यागवादी एवं परिवारवादी भारतीय संस्कृति का स्थान भोगवादी एवं व्यक्तिवादी पाश्चात्य संस्कृति ने ले लिया होता। इसलिए आज स्वामी विवेकानन्द के महान त्याग को स्मरण करने का दिन है। जिस प्रकार एक सैनिक सीमाओं पर रात-दिन हमारी रक्षा के लिए अपनी युवावस्था को कुर्बान कर देता है उसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द ने अपना जीवन भारत की संस्कृति को बचाने में कुर्बान कर दिया था। उनकी जीवन यात्रा को समझने के लिए श्री नरेन्द्र कोहली का उपन्यास “तोड़ो कारा तोड़ो” श्रेष्ठ साधन है। उसी के आधार पर नरेन्द्र से स्वामी विवेकानन्द के जीवन निर्माण की यात्रा का संक्षिप्तिकरण प्रस्तुत है।
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