Tuesday, February 21, 2012

रेलवे, सीनियर सि‍टीजन के लिए लोअर-बर्थ आवश्‍यक करे


भारतीय रेल, दुनिया की सबसे विशाल परियोजना है। लाखों यात्री प्रतिदिन एक शहर से दूसरे शहर और छोटे-छोटे गाँवों तक रेल के द्वारा ही यात्रा करते हैं। वर्तमान में महिलाओं के लिए 58 और पुरुषों के लिए 60 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्‍यक्तियों के लिए रियायती दरों पर यात्रा का प्रावधान है। कुछ वर्ष पूर्व घोषणा हुई थी कि पचास वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को शयनयान डिब्‍बों में नीचे की शय्‍या मिलेगी। लेकिन यह घोषणा पूर्णतया लागू नहीं हो सकी।  इस माह मुझे कई बार रेल-यात्रा का अवसर मिला, कई बुजुर्गों को कठिनाई का सामना करते हुए देखा।
शेष - www.sahityakar.com पर पढ़े।

32 comments:

kshama said...

Tabiyat theek nahee hai....honepe zaroor padhungee! Mere heart attack ke bareme apne blogpe likh rahee hun.....zaroor padhen!

अजित गुप्ता का कोना said...

क्षमाजी, मैंने आपका संदेश पढ़ लिया था और उस पर टिप्‍पणी भी की थी। आप अभी पूर्ण आराम करें।

डॉ टी एस दराल said...

इस विषय में रेलवे से ज्यादा मानवीय व्यवहार में संशोधन ज़रूरी है । युवाओं को वृद्धों को जगह देनी चाहिए । यह तो कॉमन सेन्स की बात है लेकिन पालन बहुत कम किया जाता है ।

shikha varshney said...

क्या कहें अजीत जी ! कितनी योजनायें निकलती हैं पर क्रियान्वित कहाँ होती हैं.

Pallavi saxena said...

आपने जो कहा वो होना तो चाहिए मगर होता नहीं है। क्यूंकी अपने यहाँ हर कानून का तोड़ है। बाकी तो डॉ दराल जी की बात से सहमत हूँ।

मनोज कुमार said...

यह कठिनाई ज़रूर दूर की जानी चाहिए।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

अपनी बात वहीँ कह आया हूँ डॉक्टर दी!!

rashmi ravija said...

बहुत ही जरूरी समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित किया है...अगर किसी अव्यवस्था की आशंका है तो टिकट चेकर को ही यह अधिकार दिया जा सकता है कि वह किसी नौजवान को उपरी बर्थ पर जाने का निर्देश दे और बुजुर्ग को लोअर बर्थ आवंटित कर सके.

अब नवयुवकों में वो बुजुर्गों के सम्मान की पहले वाली भावना नहीं रह गयी है...वे भी कई बार अपनी बर्थ छोड़ने से इनकार कर देते हैं...रेलवे को इस समस्या पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छा सुझाव दिया है आपने!

virendra sharma said...

आरक्षण आवेदन पात्र में ६०-६५ आयु वर्ग भरने पर लोवर बर्थ खुद बा खुद मिलती है .आरक्षित कोटे से सीट प्राप्त करने पर कई मर्तबा यह नहीं भी हो पाता .एसी बतु में एक मर्तबा मेरे साथ ऐसा ही हुआ था .डिफेन्स कोटे से बर्थ मिली लेकिन वह ऊपरली थी जिसे एक युवा साथी ने सहर्ष बदल लिया मेरे साथ .अमूमन ऐसा नहीं ही होता है .

virendra sharma said...

आरक्षण आवेदन पत्र में ६०-६५ आयु वर्ग भरने पर लोवर बर्थ खुद बा खुद मिलती है .आरक्षित कोटे से सीट प्राप्त करने पर कई मर्तबा यह नहीं भी हो पाता .एसी टू में एक मर्तबा मेरे साथ ऐसा ही हुआ था .डिफेन्स कोटे से बर्थ मिली लेकिन वह ऊपरली थी जिसे एक युवा साथी ने सहर्ष बदल लिया मेरे साथ .अमूमन ऐसा नहीं ही होता है .लोग शक्की निकलतें हैं .दिल्ली मेट्रो में बुजुर्गों को पूर्ण सहयोग मिल रहा है लोग सीट दे देतें हैं बुजुर्गों को वाकिंग स्टिक वालों को .

kshama said...

Padh liya aalekh aapka....pooree tarah se sahmat hun!

अरुण चन्द्र रॉय said...

यह दिक्कत है अभी... समय पर आरक्षण करने पर लोअर बर्थ मिलता है.... सीट भर जाने के बाद संभव नहीं हो पता.... बाकी गाडी में युवाओं को सहयोग करना चाहिए...

Satish Saxena said...

बहुत कम लोगों का ध्यान बड़ी उम्र के लिए जाता है ....
आभार आपका !

दिगम्बर नासवा said...

नियम का पालन ओर सहयोग दोनों ही आवश्यक हैं ... ओर अक्सर लोग बुजुर्गों का सामान करते हुवे सीट अपने आप ही दे देते हैं ...

Smart Indian said...

सही बात। हमारी सोच में परिवर्तन आना चाहिये। रेलों, अन्य परिवहन व अस्पतालों तथा कार्यालयों, बैंकों आदि में ऐसी व्यवस्था भी होनी चाहिये कि वरिष्ठ नागरिकों को सीढियाँ भी चढनी पड़ें।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सीनियर सिटिजन में हमेशा लोवर बर्थ ही मिलती है,लेट रिजर्वेश्सन कराने पर
हो सकता है लोवर बर्थ ना मिले,मगर ऐसा
बहुत कॉम होता है,....

MY NEW POST...आज के नेता...

सदा said...

आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ ... इस ओर गंभीरता से ध्‍यान देना आवश्‍यक है ... आभार ।

रेखा श्रीवास्तव said...

ये तो रेलवे ने जब सीनियर सिटिजन को उम्र के साथ जो सुविधा दी है इसके साथ ही इसको भी लागू करना चाहिए खास तौर पर महिलाओं के लिए तो बहुत ही जरूरी है. उचित विषय पर लिखा लेकिन रेलवे तक पहुंचेगा तब तो.

virendra sharma said...

भी होता है लेकिन मांगने पर जो कुछ हाथ आता है उसपर बैठने में अस्थि पंजर हिल जातें हैं टूटी फूटी वील चेयर मिलती है .हेल्प लाइन वाले तब आतें हैं केबीज़ जब यात्री प्लेटफोर्म छोड़ चुके होतें हैं गाडी के टर्मिनेट होने के बाद .यह आलम है अपने यहाँ सुविधाओं का .
आपकी ब्लॉग उपस्थिति उत्साह बढ़ा गई कृपया 'ओस्टियो नेक्रोसिस 'पढ़ें और लिखें .

virendra sharma said...

स्टेशनों पर यूं विकलांगों के लिए वील चेयर का प्रावधान भी होता है लेकिन मांगने पर जो कुछ हाथ आता है उसपर बैठने में अस्थि पंजर हिल जातें हैं टूटी फूटी वील चेयर मिलती है .हेल्प लाइन वाले तब आतें हैं, केबीज़, जब यात्री प्लेटफोर्म छोड़ चुके होतें हैं गाडी के टर्मिनेट होने के बाद .यह आलम है अपने यहाँ सुविधाओं का .

आपकी ब्लॉग उपस्थिति उत्साह बढ़ा गई कृपया 'ओस्टियो नेक्रोसिस 'पढ़ें और लिखें .

प्रेम सरोवर said...

सार्थक पोस्ट । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

Udan Tashtari said...

अच्छा सुझाव!!

Anonymous said...

bahut hi umda sujhaaw hai aap ka,kaash is par amal bhi ho

Khushdeep Sehgal said...

अजित जी,
सहमत, सीनियर सिटीजंस के लिए ये सुविधा होनी ही चाहिए...

कभी सुबह या शाम के वक्त हापुड़-गाज़ियाबाद से होकर दिल्ली आने-जाने वाली गाड़ियों में कोई सफ़र करके देखे...यहां डेली पैसेंजर्स का आतंक चलता है...रिज़र्व या एसी डब्बों का होना यहां कोई मायने नहीं रखता...अगर कोई विरोध करे तो सब एकजुट होकर मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं...इनका इतना खौफ़ या सेटिंग है कि रेलवे स्टाफ भी इनसे उलझने में कतराता है...रेलवे को इस ओर भी गंभीरता से ध्यान देना चाहिए...

जय हिंद...

amrendra "amar" said...

shyd koi sun le in unchi diwaro me rehne wale

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

अच्छा सुझाव,...

NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...

Shanti Garg said...

बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

Satish Saxena said...

होली पर आपको तथा परिवार को हार्दिक शुभकामनायें ..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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महेन्द्र श्रीवास्तव said...

जी बुजुर्गों को लोवर बर्थ मिलनी ही चाहिए, कई बार उपलब्धता ना होने पर नहीं मिल पाता है।
वैसे आपकी बात बिल्कुल सही है कि बुजुर्गो को अगर ऊपर की बर्थ मिल जाती है तो दिक्कत होती ही है।

कविता रावत said...

bahut achha sujhav lekin sunne walen samajh sakte to phir rona kis baat ka tha...
sarthak prastuti hetu aabhar!