एक पोस्ट मैंने लिखी थी बाघदड़ा नेचर पार्क पर। जहाँ हम पूर्णिमा की रात में एक नेचर पार्क में थे। (पूर्ण चन्द्र की रात में जंगल का राग सुनो ) वहाँ बातचीत करते हुए एक प्रश्न आया था कि आपका आयडल कौन है? कई लोगों ने उत्तर दिया और किसी ने यह भी कहा कि हम अपने जीवन में कोई आयडल नहीं बना पाए हैं। मेरे मन में एक उत्तर था लेकिन मैंने उस समय कुछ नहीं बोला क्योंकि मेरा उत्तर कुछ लम्बा था और उस स्थान पर कम बोलने को कहा गया था। इसलिए आज अपनी बात कहने के लिए और आप सब की राय जानने के लिए यहाँ लिख रही हूँ।
मेरा आयडल कौन यह प्रश्न के उत्तर के लिए मैंने कई व्यक्तियों के बारे में चिंतन किया लेकिन उनका एक या अनेक विचार आपके मन में प्रेरणा जगाते हैं लेकिन दूसरे कुछ विचार निराशा का भाव जगाते हैं इसलिए मन ने उन सारे नामों को नकार दिया। मैं दुनिया के कई लोगों से प्रभावित होती हूँ, या यूँ कहना सार्थक होगा कि लोगों के कृतित्व या विचार से प्रभावित होती हूँ। उस कृतित्व या विचार को अपने अन्दर धारण करने का प्रयास करती हूँ। सारे ही विचार या कार्य मैं अपने जीवन में नहीं उतार पाती लेकिन वे विचार मेरे जीवन के आसपास जरूर बने रहते हैं और उन विचारों के अनुकूल ना सही लेकिन प्रतिकूल जाने से अवश्य रोकते हैं। शायद आपके साथ भी ऐसा होता हो। कई बार बहुत छोटी सी घटनाएं मन में अंकित हो जाती है, उस घटना में छिपा दर्शन हमारे जीवन का अंग बन जाता है। इसलिए विचारों और कार्यों का समूह मन में दस्तक देते हैं और वे ही हमारे आदर्श बनते हैं। जब भी हम किसी एक कृतित्व से किसी व्यक्ति को आदर्श मान लेते हैं तब वह व्यक्ति आवश्यक नहीं कि हमेशा आपका आदर्श बना रहे। वर्तमान में अन्ना हजारे इसका उदाहरण है। उनके एक कृतित्व ने उन्हें करोड़ों लोगों का आयडल बना दिया। इसीकारण उनके विरोधी इस छवि को धूमिल करने में लगे हैं। इस कारण कोई एक व्यक्ति आयडल ना होकर यदि विचारों को हम आदर्श माने तब उस विचार पर हमारा विश्वास बना रहेगा नहीं तो जैसे ही उस व्यक्ति का धूमिल चेहरा आपके समक्ष आएगा वह आदर्श विचार भी हवा हो जाएंगे।
आप या मैं किन विचारों से प्रेरित होते हैं? जिन विचारों के साथ वक्ता का कृतित्व जुड़ा होता है। फिर वह व्यक्ति कोई अदना सा है या विशाल व्यक्तित्व का धनी इससे अन्तर नहीं पड़ता है। कई उदाहरण मेरे सामने हैं। उनसे मुझे प्रेरणा मिली। एक बार का वाकया है मैं एक जनजातीय गाँव में गयी। वह गाँव शहरी विकास से कोसो दूर था। प्रकृति के साथ जीना ही वहाँ के व्यक्तियों को रास आया हुआ था और वे शायद विकास के स्वरूप को देख भी नहीं पाए थे। एक बुजुर्ग व्यक्ति एक खाट पर बैठे थे। मैंने प्रश्न किया कि बाबा आपको यहाँ क्या कमी लगती है? उस व्यक्ति ने चारों तरफ देखा और कहा कि यहाँ सब कुछ ही तो है। उसका संतोष मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत बना। अब वह व्यक्ति मेरे आयडल नहीं हो सकते लेकिन वह विचार मेरे लिए आदर्श है। हमारे पास सबकुछ है लेकिन मन कहता है कि कुछ नहीं है और उस बुजुर्ग के पास कुछ नहीं था लेकिन वह कह रहा था कि सबकुछ है।
एक और घटना सुनाती हूँ, मेवाड़ में अकाल के दिन थे। पानी की बहुत ही तंगी थी। मैं पानी की तंगी के कारण पेरशान थी और इसी समय मेरी सफाई कर्मचारी ने घण्टी बजा दी। पानी की कमी पर उसने कहा कि हमें तो इस कमी से कोई फरक नहीं पड़ता है। क्योंकि हम सुबह तालाब पर जाते हैं, वहीं स्नान करते हैं, कपड़े धोते हैं और एक घड़ा पानी पीने के लिए ले आते हैं। मेरे हाथ वाशबेसन में बहते हुए पानी को अब रोक रहे थे। ऐसे ही मेरा एक नौकर था। सुबह नौ बजे आता था और शाम को पाँच बजे चला जाता था। हम लोग दिन में दो बजे भोजन करते थे तब उससे मैं कहती थी कि तू भी खाना खा ले। लेकिन उसने कभी खाना नहीं खाया। वह कहता था कि मैं घर से खाना खाकर आता हूँ और शाम को घर जाकर ही खाऊँगा। यदि आपके यहाँ दिन में खाने लगा तो मेरी आदत बिगड़ जाएगी। एक किस्सा और सुनाती हूँ, हमने जनजातीय क्षेत्र में अकाल के समय कुएँ गहरे कराने का काम किया। वनवासी से भी 25 प्रतिशत हिस्सा लिया गया। कुछ लोगों ने अग्रिम पैसा जमा करा दिया। लेकिन तभी वर्षा आ गयी और कुओं में पानी आ गया। हमने एक वनवासी को पैसे लौटाए तो उसने लेने से मना कर दिया। कहा कि मेरे कुए में तो पानी आ गया है अब मैं पैसे का क्या करूंगा आप लोग इससे परसादी कर लो।
यह सारे उदाहरण नामचीन व्यक्तियों के नहीं है। उन लोगों के हैं जिनका समाज में कोई स्थान नहीं है। लेकिन वे मेरे मानस में हमेशा बने रहते हैं। मैं इनका बार-बार उल्लेख भी इसीलिए करती हूँ कि इनके विचारों से मैं प्रेरित हो सकूं। इन जैसे ढेर सारे उदाहरण है जिनने मेरे मस्तिष्क पर दस्तक दी। मैंने अपनी लघुकथा संग्रह में इनपर लिखा भी है। इसके विपरीत कई ऐसे बड़े नाम भी हैं जिनका कृतित्व निश्चित ही प्रभावित करता है लेकिन वे प्रभावित नहीं कर पाते और ना ही दिल में अंकित हो पाते हैं। क्योंकि आज जितने भी बड़े नाम हैं उनके विचारों और कृतित्व में कहीं अन्तर दिखायी देता है जबकि इन गरीब लोगों के विचार और आचरण में कोई अन्तर नहीं है। ये विचार ही उनकी जीवन शैली है। इसलिए जब भी यह प्रश्न मेरे समक्ष यक्ष प्रश्न सा उपस्थित होता है, मेरे समक्ष न जाने कितने चेहरे जो समाज में कहीं नहीं हैं, वे ही दिखायी दे जाते हैं। सारे ही बड़े नाम मेरे सामने गौण हो जाते हैं। प्रतिदिन ही कोई न कोई विचार हमें प्रभावित कर जाता है और हम उसे अपने मन और मस्तिष्क दोनों में अंकित कर लेते हैं। जब ये विचार मन में अंकित हो जाते हैं तब वे हमारी पूंजी बन जाते हैं। जैसे पूंजी को हम प्रतिदिन उपयोग में नहीं लाते हैं लेकिन वे हमारे साथ रहती है। इसलिए मेरे पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं है कि मेरा आयडल कौन है? या मेरा गुरू कौन है? क्योंकि गुरू भी ऐसा ही व्यक्तित्व है जो कभी एक नहीं हो सकता। न जाने हम कितने लोगों से सीखते हैं। इसलिए इन लोगों को जिनसे मुझे प्रेरणा मिलती है उन्हें गुरु मानूं या आयडल समझ नहीं आता है। हो सकता है कि मेरे इन विचारों से आप सहमत नहीं हों और इससे इतर आपके अन्य विचार हों। इसलिए इस विषय की व्यापक चर्चा हो सके, मैंने इसे यहाँ लिखना उपयोगी लगा। आपकी क्या राय है? आपका आयडल कौन है?
40 comments:
आदरणीया अजित गुप्ता जी ,
इस प्रश्न का उत्तर देना बड़ा ही कठिन है ! शायद मेरा ( IDOL ) कोई नहीं है
क्या करें, एक अलग ही ढाँचा है व्यक्तित्व का, किसी आदर्श में फिट ही नहीं होता है।
यह सही है कि आदर्श विचार होते हैं न कि व्यक्ति विशेष ।
इसलिए सीखने को कहीं भी मिल सकता है । एक छोटे से बच्चे से भी सीख सकते हैं ।
एक चीटीं खाने का छोटा सा टुकड़ा लेकर बार बार आगे चलती है , गिरती है , फिर चलती है । उसे ध्यान से देखकर हमें भी मेहनत करने की सीख मिलती है ।
हर व्यक्ति में कोई न कोई कमी होती है । इसलिए किसी व्यक्ति को आदर्श बनाना मुश्किल होता है ।
ए.राजा
वाह! कमाल का आलेख है।
मैं तो आयडल ही मानता हूं। गुरु से तो गुरु मंत्र की ज़रूरत पड़ती है।
मेरे आयडल गांधी जी हैं।
@ विचारों और कार्यों का समूह मन में दस्तक देते हैं और वे ही हमारे आदर्श बनते हैं।
तभी तो हमने अपने विचार रखने के लिए “विचार”
ब्लॉग ही बना डाला। (विचार)
काजल कुमार जी आपका आदर्श पसन्द आया। हा हा हा हा।
@ अजित जी
दुनिया का सबसे बड़ा घपला कर देना मामूली जिगरेवाले का काम नहीं न हो सकता :)
Good job.
धर्म के नाम पर हर तरह की बात को नहीं मानना चाहिए बल्कि वही बात माननी चाहिए जिससे इंसानियत का कुछ भला होता हो।
व्यक्ति का आदर्श उसके सद्भाव व महापुरोशों के चरित्र ही होते हैं !
आज जितने भी बड़े नाम हैं उनके विचारों और कृतित्व में कहीं अन्तर दिखायी देता है जबकि इन गरीब लोगों के विचार और आचरण में कोई अन्तर नहीं है। ये विचार ही उनकी जीवन शैली है।
... इसलिए देखनेवालों की नजर में वो गरीब हों .. पर खुद की नजर में अमीर होते हैं !!
जब जिस समय हम किसी से कुछ सीखते हैं तो तब वह हमारा अईडियल बन जाता है... हम नहीं सीखते तो अडियल बन जाते हैं :)
सच कहती हैं ..मैं भी अपने आइडिअल के खांचे में आजतक किसी एक को फिट नहीं कर सकी.
एक आदर्श व्यक्ति तो नहीं है परंतु हाँ ऐसे ही बहुत सारे व्यक्तियों के आदर्श से बहुत कुछ सीखा इसलिये अभी तक तो कोई आदर्श नहीं है।
विचारपूर्ण आलेख, आयडल तो हमें चुनना होता है, चुनना आसाना है। पर सबसे अहम माता पिता का आशीर्वाद है, जिस पर आज बहुत जोर देने की जरूरत है।
बहुत सुंदर विचार
अच्छे विचार , प्रगति और कार्य
के लिए किसी आयडल की जरुरत नहीं पड़ती जैसे वैज्ञानिक ! उनके सामने वश कुछ नया कर डालने की जिद्द होती
है मन में कुछ
विचित्र कर डालने की आस्था ही
वश काफी लगती है ! वैसे आपके अनुभव भी विचित्र झांकी प्रस्तुत करते है !सुंदर
पहले तो बात करती सी इस खूबसूरत अभिव्यक्ति के लिए बधाई स्वीकार करें।
मेरे विचार से कोई एक व्यक्ति कभी पूर्ण आदर्श नहीं हो सकता। हम अपनी सुविधा..सुख के अनुसार आदर्श भी गढ़ लेते हैं। हम जैसे हैं, वैसे ही आदर्श भी तलाशते हैं। छोटा चोर किसी शातिर को अपना आदर्श मानेगा। कोई भलामानुष किसी दूसरे उससे भी अच्छे भलेमानुष को।
सच्चे चरित्र के दर्शन निर्धन व्यक्तियों में आसानी से दिख जाते हैं। धनी, बाह्य आडंबर में अपनी सच्चाई भी छुपा जाते हैं। हम आदर्शों की बात करते हैं मगर सच्चाई के धरातल पर कई चूक करते रहते हैं। बाद में पछताते भी हैं। यही पछताना..गलती का एहसास हमें सुधारता रहता है और हम किसी आदर्श को तलाशते रहते हैं।
....
न जाने हम कितने लोगों से सीखते हैं।......
apka lekh bahut sahi hai.......ek vyakti idol nahin ho sakta.
किसी एक व्यक्ति को ही अपना आदर्श घोषित कर देना बहुत मुश्किल है !
डॉक्टर दी,
मैं रिक्शे से जा रहा था और रिक्शेवाले के मोबाइल पर फोन आ गया, उसने तुरत फोन उठाकर कहा कि मैं ड्राइव कर रहा हूँ बाद में बात करूँगा! मुझे हँसी आ गयी मगर वो आदर्श था. मैंने उसपर एक पोस्ट भी लिखी थी..
अपने आस-पास देखें तो हम पाते हैं कि परमात्मा की हर रचना हमें प्रेरित करती हैं.. कभी सोचा है दी आपने कि आप भी किसी की आयडल हो सकती हैं और हों भी!! सोचिये और लिखिए इसपर भी!!
व्यक्ति नही विचार से प्रेरित हुआ जाता है ..आईडल बनाना मुश्किल है .
जिनके कहने और करने में अन्तर नहीं होता वो ही आदर्श बन सकते हैं ..
ajit ji...har ladki ke bachpan se uske pita hi shayad idol hote hain. lekin jaise-2 ladki anubhavo ki seedhiya chadhti jati hai idol badalte jate hain.
aapne sahi kaha...aaj ham jis se kuchh seekhne ko paa jaye vo hi idol ka kaam karte hain arthart uske vichar. har uttam vichar pradan karane wala hamara idol hai.
acchha lekh.
जीवन के पडाव में कई लोगों से सामना होता है... कुछ नामी और कुछ अनजाने लोग। सबमें कुछ न कुछ सीखने योग्य बातें होती हैं.... लोगों की अच्छाईयों को ग्रहण कर आगे बढते रहना चाहिए।
वैसे मेरा कोई आईडल है या नहीं इस पर कभी विचार नहीं किया पर सीखने की ललक हमेशा से रही है जब भी कुछ सिखने का अवसर मिले नहीं छोडता.... ये कह सकते हैं कि कुछ देर के लिए जिससे कुछ सीखा वही आईडल की भूमिका में रहा.....
निश्चित ही विचार आदर्श होने चाहिए! आलेख में दिए गए उदहारण प्रेरक हैं!
आते जाते नज़र में आने वाले ऐसे छोटे छोटे सन्दर्भ ही आदर्श की कसौटी पर खरा उतारते हैं!
सच ही कहा...एक को फिट करना संभव नहीं.
वाकई सच कहा आप ने मैं आपकी हर एक बात से सहमत हूँ खास कर इस बात से जो आपने अंतिम पंक्तियों में लिखी है,कि गुरु एक नहीं है, हम नित नए दिन किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखते ही हैं। जिनमें से कुछ के विचार हमारे मन पर अंकित हो जाते है। आपकी इस पोस्ट पर मुझे सिंघम फ़िल्म का एक स्मवाद याद आया जो एक गरीब पुलिस वाले ने खलनायक से कहा था कि "मेरी जरूरतें कम है इसलिए मेरे हाथ में दम है"
शायद यही वहज है कि गरीब के पास कुछ न होते भी संतुष्टि है और हमारे पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं... बहुत ही बढ़िया आलेखा
किसी एक व्यक्ति को idol मानना बहुत कठिन है. किसी व्यक्तित्व के कुछ पहलू प्रभावित करते हैं तो अन्य के और कुछ. आपके सभी आदर्श एक व्यक्ति में मिलें यह बहुत मुश्किल है. मुख्य प्रश्न व्यक्ति का नहीं विचारों का है और जहाँ से आपको अच्छे विचार मिलें, ग्रहण करें. व्यक्ति नहीं बल्कि विचारों को अपना idol बनाएँ...
किसी एक को आयडल बनाना मुझे तो संभव नहीं लगता .सीखना चाहें तो बहुतों से कुछ-न-कुछ सीखा जा सकता है .भगवान दत्तात्रय ने तो मकड़ी ,चींटी आदि को भी अपना गुरु माना था .
किसी एक में अपने मनचाहे सारे गुण पाना, मुश्किल होता है...इसलिए किसी एक को अपना आदर्श चुनने के बजाय बेहतर है कि हर जगह से कोई अच्छी बात सीखने की कोशश की जाए.
मुझे अपने गाँव की एक अनपढ़ काकी की एक बात हमेशा याद आती है... उनकी बहू ने उनसे बहुत झगड़ा किया...उन्हें गालियाँ दीं...फिर भी काकी ने बहू की तबियत खराब होने पर तेल लगा...उसके बदन की मालिश कर दी...इस पर उनकी बेटी ने जब नाराज़गी जताई तो मेरे सामने ही उन्होंने उस से कहा.."तेरे लिए ही करती हूँ...आज मैं दूसरे की बेटी कोई प्यार दूंगी...उसकी सेवा करुँगी तो मेरी बेटी को भी अपने ससुराल में सुख मिलेगा "
इतनी सी बात....बड़ी बड़ी किताबें पढ़ने वाली महिलाएँ अगर समझ जाएँ...तो सास-बहू के बीच कभी कोई झगड़ा ही ना रहे.
समय समय पर इंसान अलग अलग मानसिक परिस्थिति में अलग अलग व्यक्ति से प्रभावित होता रहता है .. मेरा मानना है वो सभी गुरु के सामान ही जीवन पर असर डालते हैं ...
गुरु ही तो आइडल हैं...ये सभी असाधारण लोग आइडल हैं। आपने खुद ही प्रश्न का उत्तर दे रखा है!! जरूरी नहीं कि नामी-गिरामी लोग ही इस कटेगरी में शुमार हों। आप यह भी सही कह रही हैं कि अक्सर बड़े लोग बहुत छोटे देखे गए हैं!
आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
आदर्श कोई ना कोई सबका होता है अब वो माने या ना माने। मेरे आदर्श गुरुनानक जी है।
मेरे आदर्श कलमाडी है.. :)
जब भी राष्ट्रवादी विचारों के प्रस्तोता को प्रभावशाली कार्य करते देखता हूँ... आदर्श स्वीकार कर लेता हूँ... तब तक उस व्यक्ति के गीत गाता हूँ जब तक वह लोकरंजक छवि लिये जीता है.... वर्तमान में सदाचारिता की शिक्षा देते 'अन्ना' आदर्श बनाए जा सकते हैं. 'निरामिष' पर शाकाहार की तार्किक और संतुलित व्याख्या करते 'हंसराज सुज्ञ जी' आदर्श बनाए जा सकते हैं....नवोदित पत्रकारों के लिये 'सुरेश चिपलूनकर जी आदर्श हो सकते हैं.... नवोदित कवियों के लिये 'दिनेश चंद्र गुप्त 'रविकर जी' आदर्श हो सकते हैं... मेरे लिये ये सभी आदर्श बने हुए हैं... मैं इन जैसा बनना चाहता हूँ.
बचपन में पढ़ी दत्त्तात्रेय के चालीस गुरु की याद हो आई..। यही चिंतन उन्होंने किया था।
कुछ आयडल नाम बता कर निबंध लिखने के काम आते हैं, लेकिन कई एक याद भी नहीं आते, जज्ब हो कर हमारा संस्कार बनाते हैं. 'बाघदड़ा' शायद मूलतः बघधरा है, यानि ऐसा गांव जहां बाघ ने किसी को धर लिया हो.
राहुल सिंह जी, यहां बाघ बहुत थे तो कहा जाता था कि बघों का दडबा है इससे बाघदडा हो गया।
बहुत अच्छा आलेख, इसे फिर से पढ़ना होगा।
प्रेरक उदाहरण। चाहें तो बहुत कुछ है सीखने को संसार में। जनसेवा कार्यों में आपके सहयोग के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। यह आलेख कई बार पढा है और भविष्य में भी दोहराऊंगा।
वाकई कुछ आम से लोग, घटनाएं और कभी प्रक्रति भी आदर्श बन जाती है ,एक सन्देश दे जाती है; यदि ध्यान देना चाहें तो...
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