आइए गर्मी में सुहाने पलों को जी लें। जैसे आपके जीवन में सुबह की एक प्याली चाय तरोताजगी भर देती है और सारा दिन काम के लिए स्फूर्ति देती है, बस ऐसे ही भोर की ठण्डी पुरवाई आपको सारा दिन तरोताजा रखने में सक्षम है। कैसे? अरे मेरे अनुभव का लाभ ले। बस सुबह 5 बजे निद्रा देवी को बाय-बाय कह दें और आनन-फानन में अपने नित्य के कार्यों को सम्पादित करके पैरों में जूते डालिए और निकल पड़िए सूनी सड़क को गुलजार करने। उदयपुर का नाम तो आपने सुना ही होगा, हमारा छोटा सा शहर है। इस शहर में एक बहुत बड़ी झील है, नाम है फतेहसागर। मेरे घर से एकदम नजदीक। बस हम सुबह फतेहसागर की राह पकड़ लेते हैं। अभी भोर हो रही होती है, पुरवाई चल रही होती है और वातावरण में कहीं से नीम बौराने की गंध भर जाती है तो कहीं से अमलतास के फूलों से लदे वृक्षों के फूल रास्ते में झरते हुए मिल जाते हैं। कभी आपने अमलतास जब फूलता है तब उसकी झटा का आनन्द लिया है? शायद लिया हो।
अमलताश को फूलते हुए देखने का आनन्द ही अनूठा है। ना पत्तियां शेष रहती हैं और ना ही लम्बी फलियां। बस रहते हैं तो पीले रंग के झूमरनुमा फूल। शायद ड्रांइगरूम में लटकने वाले झूमरों की डिजायन यही की कल्पना का फल होगा? आज सुबह अचानक ही मेरी दृष्टि अमलताश के पेड़ पर पड़ गयी। पूरी तरह फूलों से लदा था। पास ही नीम भी बौरा रहा था और उसकी मंजरियों की भीनी-भीनी खुशबू मन को आल्हादित कर रही थी। इनके साथ ही आक में भी डोडेनुमा फल आ गया था। अब कुछ ही दिनों में उसमें से रूई निकलकर वातावरण में फैल जाएगी। बचपन में कुछ दिन हनुमानगढ़ रहने का अवसर मिला था, वो इलाका रेगिस्तानी इलाका है और वहाँ आक खूब होता है। हम बच्चे खूब रूइ एकत्र करते थे, मखमल सी रेशमी रूई। खैर अभी तो सुबह की सैर को चलें।
फतेहसागर का बहुत बड़ा घेरा है, हम उसके पिछवाड़े वाले भाग की सड़क पर जाते हैं। वहाँ लोगों का आवागमन कुछ कम होता है। लेकिन पक्षियों का कलरव खूब होता है। झुण्ड के झुण्ड पक्षी एक पेड़ से उड़कर दूसरे पेड़ पर जाते हुए किलोल करते हैं। अभी तो माइग्रेटिंग बर्डस का आना भी शुरू हो गया है तो जहाँ पर थोड़ा भी पानी कम हो गया है और पानी में छोटी सी धरती दिखायी देने लगती है बस वहाँ पक्षियों का शोर सुनायी देता है। लेकिन इनका समय तय है, आप यदि पाँच मिनट पहले आ गए तो आकाश में कम पक्षी मिलेंगे और देर से आए तब भी। बस निश्चित समय जाइए और पक्षियों का आनन्द उठाइए। अभी हम पक्षियों का आनन्द ही उठा रहे होते हैं कि नेहरू गार्डन के पीछे से थाली के आकार का लाल सुर्ख सूरज निकल आता है। नेहरू गार्डन क्या है? अभी बताती हूँ, फतेहसागर के बीच में एक पार्क बनाया गया है जहाँ नाव से जाया जाता है बस सूरज वहीं से इठलाता हुआ निकल आता है ठीक 6 बजे। आज आकाश में कुछ बादल थे, तो ये नटखट बादल महा शक्तिशाली सूरज को कभी बीच से काट देते थे तो कभी पूरा ही ढक लेते थे। बस उसकी किरणों को नहीं रोक पा रहे थे। सफेद-सफेद बादलों से छनकर लाल-लाल किरणे देखने का आनन्द ही कुछ और है। तभी किसी पेड़ पर बैठी कोयल कुहक उठी, साथ में चिड़ियों ने भी अपना स्वर मिला दिया। मन करता है कि यह सुबह बहुत लम्बी हो जाए लेकिन सूरज की गति को भला कौन रोक सका है? वो तो अपनी मंथर गति से आगे बढ़ने लगता है और हमारे कदम भी तेज हो जाते हैं। एक खुशनुमा सुबह को जी लेने के बाद, सारा दिन उसकी ताजगी में ही गुजर जाता है। तो कल आप भी सुबह का आनन्द लें और निकल पड़े गर्मी से लड़ने के लिए सारे दिन की खुराक लेने। बड़े शहरों वाले कहेंगे कि अजी हमारे यहाँ ऐसा फतेहसागर नहीं है। लेकिन पार्क तो हैं? उदयपुर में इतने पार्क और झीलों का साथ है कि कहीं भी रहिए आपको सुबह का आनन्द उठाने का पूरा मौका मिलेगा।
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अमलताश का वह पेड़ जिसने पोस्ट लिखा दी। |
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पक्षियों को कैमरे में कैद करना कठिन है
लेकिन ये पकड़ आ ही गए। |
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नेहरू गार्डन से सूर्योदय। |
45 comments:
ग्रीष्म की सुबह, अमलताश का पेड़ और सुहाना सूर्योदय, एक कविता भी लिख देतीं।
गुलमोहर, अमलतास, सेमल आदि के रंगों की बात ही निराली है। केरल में विशु की संक्रांति में अमलतास एक आवश्यक घटक है। बचपन में मैं भी एक बार आक के डोडे अल्मारी के ऊपर रखकर भूला था। बाद में वे पककर फट गये थे और माँ का पूरा दिन घर की धुलाई में लगा था।
गर्मियों के दिन और एक बड़ी सी झील के आस पास निवास स्थान, बड़ा सुखद अहसास है.
प्रवीण जी कविता तो आप अच्छी लिखते हैं।
उदयपुर की सैर अच्छी लगी..... मनोरम यात्रा वर्णन. प्लान तो हम भी कई बार बना चुके हैं मगर समयाभाव में यह यात्रा हो नहीं पाई ... आपकी पोस्ट के बाद मन एक बार फिर इस यात्रा पर निकलने को कर रहा है
उरयपुर वास्तव में ही बहुत सुंदर जगह है
कल पार्क में बेंच पर बैठ कर अमलताश के पैड को ही देख रह था ...... तो माली आ बोल गया "बाबु कुछ दिन और इन्तेज़ार करो...... पीले फूलों से लद जायेगा ये पैड भी सामने वाले(गुलमोहर) की तरह और आज आपकी ये पोस्ट........
बेहतरीन.
हमारे यहां भी बहुत सारी झीले ओर झरने हे, कभी कभार हम भी जाते हे, लेकिन वहां ज्यादा तर नंगे ही दिखते हे, ओर हम कपडो मे अपने आप को अजीब महसुस करते हे, फ़िर हमारा सारा दिन वही बीत जाता हे घर से हम खाना, तरबुज, ओर फिने का समान ले जाते हे, चाय वही गेस पर बना लेते हे, ठंडी हवा से नींद भी आने लगती हे लेकिन बच्चो ओर बडो के शोर से सो नही सकते, पाल्स्टिक की नाव मे हवा भर के हम सभी झील मे नाव का लुफ़त भी उठाते हे,
कई बार उदयपुर देखा है लेकिन आपकी पोस्ट में बहुत सुन्दर और सुहाना लगा झीलों का शहर उदयपुर |
Great post with lovely pics ! Hope I will visit this beautiful place some day.
आपका ये चित्रमय सफ़र ... उदयपुर की सुबह ... गुल्मोहर के रंग ...
बहुत कुछ ताज़ा करा गयी आपकी ये पोस्ट ....
प्रवीण जी की बात से सहमत.
एकदम कविता से शब्दों से सजी है ये पोस्ट.
बनारस में हमारे पुराने घर से लगा हुआ नीम का एक पेड़ था आप की पोस्ट में नीम के बौराने के समय आने वाली महक की बात पढ़ कर सच में मुझे वैसी महक आने लगी | अब एक पोस्ट पढ़ने का इससे अच्छा फायदा और क्या होगा की वहा लिखे शब्द पढ़ कर ही आप उसी वातावरण को महसूस करने लगे |
आपने तो भोर की सैर करा दी पर दिन भर की गर्मी का क्या करें डॉक्टर साहब:)
झीलों का शहर उदयपुर सुन्दर और सुहाना लगा ....
उदयपुर की यादों को फिर से ताज़ा कर दिया..बहुत सुन्दर शब्द चित्र..आभार
लुभावना दॄश्य प्रस्तुत कर दिया आपने तो ,बहुत खूब ।
हमारी सुबह तो रोज इन्ही अनुभवों से होकर गुजरती है....
अमलतास के जिक्र ने याद दिलाया..पता नहीं..कितने लोगो को मालूम है...केरल के नव-वर्ष "विशु" में जो १४ मार्च को पड़ता है...ये फूल भगवान को जरूर चढ़ाए जाते हैं.
हम सहेलियाँ भी सुबह-सुबह फूलों की चादर पर चलने का लुत्फ़ उठा लेती हैं...अमलतास....गुलमोहर की पंखुड़ियों की कारपेट सी बिछी होती है.
अलग-अलग भाषा में फूलों के नामो का ज्ञान भी होता है..जैसे 'हरश्रृंगार' को.. महाराष्ट्र में पारिजात कहते हैं.
वाह जी वाह । आनंद आ गया सुहानी सुबह का वर्णन पढ़कर और सुन्दर तस्वीरें देखकर ।
इस नैसर्गिक सुख का क्या मुकाबला.
बहुत सुंदर फोटो हैं......उदयपुर जाना हुआ है..... प्राकृतिक छटा अभी भी बची हुई है वहां ......
काव्यात्मक वर्णन पढ़कर मन आनंद से प्रफुल्लित हो उठा।
बहुत सुन्दर बधाई
पढ़ते पढ़ते भी मार्निंग वाक सा आनन्द आया...एकदम तरोताजा कर देने वाली पोस्ट.
एक सुबह जी है जो गर्मी के दिनों में थोड़ी राहत देता है, बाकी तो पूरा दिन और रात दोनों समय लोग बहाल रहते है ..वैसे तो आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हो गई है पर सभी के पास नही है..
गर्मी की सैर करती बढ़िया रचना..धन्यवाद
सुबह की इतनी खूबसूरत शुरुआत ...
अमलतास और गुलमोहर अपने पूरे शबाब पर हैं इन दिनों ...
बहुत खूबसूरत तस्वीरें !
वाह आपकी पोस्ट तो आखों को भी सकून दे गई ..कल्पना से ही रोमांचित हो उठे ...प्रकृति जितनी शांति और कोई नहीं दे सकता मन को ।
लगभग 6 महीने पहले उदयपुर के एक दिनी भ्रमण के दौरान आप द्वारा उल्लेखित फतहसागर झील के साथ ही आसपास के ये स्थान भी देखे ते लेकिन पर्यटकों का समय मार्निंग वाक नहीं हो सकता । वो कमी आपकी इस पोस्ट से पूरी हो रही है । धन्यवाद सहित...
गर्मियों के दिन और एक बड़ी सी झील के आस पास निवास स्थान, बड़ा सुखद अहसास है.
अपन भी दीवाने हैं उदयपुर के।
पोस्ट पढ़ कर ही सुबह की सैर का आनंद आ गया ...बहुत अच्छी लगी पोस्ट ...
आपने याद दिला दी उदयपुर यात्रा की।
हम ठंड में थे उयदपुर में आपने गरमी में भी यात्रा का मजा दे दिया।
धन्यवाद आपका।
बहुत रोचक,मनमोहक वर्णन लिखा आपने.आपके शहर का खंबा छूकर व रात के अँधेरे में ही झील देखकर, होटल के कमरे में सोकर, सुबह सूरज निकलने से पहले ही आगे की यात्रा पर निकल गए थे हम.आज आपकी आँखों से देख लिया.
घुघूती बासूती
आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html
बहुत सुंदर लेख
aapne to subah ki sair ke liye lalcha diya...ab kal se subah jaldi uthana hi hoga...
aapne to subah ki sair ke liye lalcha diya...ab kal se subah jaldi uthana hi hoga...
aapne to subah ki sair ke liye lalcha diya...ab kal se subah jaldi uthana hi hoga...
aapne to subah ki sair ke liye lalcha diya...ab kal se subah jaldi uthana hi hoga...
गर्मी की सुबह... झील का किनारा... कुदरत का नज़ारा.....काश एक बार ही सही ऐसी सुबह का आनन्द लेने का मौका मिल जाए.
आनंदवर्धक प्रातःभ्रमण करवाया आपनें, जैसे आपके शब्दों के साथ साथ सृष्ठि खिल रही हो, और प्रकृति अंगडाई ले रही हो।
उषा का मनोरम चित्रण!!
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सुज्ञ: ईश्वर सबके अपने अपने रहने दो
हमारे यहाँ तो बहुत नहरें गोबिन्द सागर झील और पहाद बहुत हैं । मै तो अक्सर चली जाती हूँ। मगर आज उदयपुर की हवा का भी आनन्द ले लिया। शुभकामनायें।
आप के सभी ब्लांग पढ़े मन के भा्वों की सुन्दर अभिव्यक्ति है । आप का अभिव्यंजना मे स्वागत है
अच्छी सैर करा दी अपने तो घर बैठे ही
ब्लॉग जगत में पहली बार एक ऐसा सामुदायिक ब्लॉग जो भारत के स्वाभिमान और हिन्दू स्वाभिमान को संकल्पित है, जो देशभक्त मुसलमानों का सम्मान करता है, पर बाबर और लादेन द्वारा रचित इस्लाम की हिंसा का खुलकर विरोध करता है. साथ ही धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कायरता दिखाने वाले हिन्दुओ का भी विरोध करता है.
इस ब्लॉग पर आने से हिंदुत्व का विरोध करने वाले कट्टर मुसलमान और धर्मनिरपेक्ष { कायर} हिन्दू भी परहेज करे.
समय मिले तो इस ब्लॉग को देखकर अपने विचार अवश्य दे
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