समय दौड़ रहा है। आज सूरज ने भी अपनी रजाई फेंक दी है। किरणों ने वातायन पर दस्तक दी है। हमने भी खिड़की के पर्दे हटा दिए हैं। दरवाजे भी खोल दिए हैं। सुबह की धूप कक्ष में प्रवेश कर चुकी है। फोन की घण्टी चहकने लगी है। नव वर्ष की शुभकामनाएं ली और दी जा रही हैं। हम भारतीयों के जीवन में ऐसे अवसर वर्ष में कई बार आ ही जाते हैं। कभी दीवाली पर हम बेहतर जीवन की आशा लगाए दीप जला लेते हैं तो कभी होली पर रंगीन सपने सजाते हुए रंगों से सरोबार हो जाते हैं। कभी कोई पुरुष-हाथ भाई बनकर बहन के सामने रक्षा सूत्र की कामना से आगे बढ़ जाता है। कभी हम बुराइयों का रावण जला लेते हैं। कभी गणगौर की सवारी निकलाते हैं तो कभी शीतला माता को ठण्डा खिलाते हैं। ना जाने कितनी बार हम एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं?
बस उस पल में हम अपनों का स्मरण कर लेते हैं। न जाने कितने कुनबे बनाकर हम जीते हैं? सारी अला-बला से बचते हुए अपने-अपने सुरक्षा कवचों के साथ जीवन जीने का प्रयास करते रहते हैं। सब कुछ अच्छा ही हो इसकी सभी के लिए कामना भी करते रहते हैं। हमारी वाणी में शब्द-ब्रह्म आकर बैठ जाता है। सम्पूर्ण वर्ष हमें यही शब्द अनुप्राणित करते हैं, दिग-दिगन्त में गुंजायमान होते रहते हैं। सर्वे भवन्तु सुखिन: का दिग्घोष भारत की भूमि पर सर्वदा होता रहता है। हम दान को पुण्य मानकर ऐसे शुभ अवसरों पर बच्चों के हाथों से दान कराते हैं। हम उन्हें देना सिखाते हैं, मांगना नहीं। यदि मांगना है तो आशीष मांगते हैं। प्रभु के दर पर भी बस यही कहने जाते हैं कि तेरी कृपा चाहिए प्रभु। वहाँ अपना देय समर्पित करते हैं। बस केवल समर्पण और कोई आकांक्षा नहीं।
लेकिन आज रात को ही रोशनी हो गयी। कृत्रिम रोशनी। मन प्रफुल्लित नहीं हुआ अपितु मदहोश हो गया। सुबह के सूरज के समक्ष हमने आँखें नहीं खोली वरन सुप्रभात को बाय बाय करते हुए लम्बी तान कर सो गए। नये साल का सूरज निकला, गाने वाला कोई नहीं, बस सब तो नये साल का चाँद ढला गाने में ही मदहोश थे। मदहोशी के बहाने ढूंढते हुए हम, कैसे जीवन की नई राहों का सृजन करेंगे? कभी सूरज पूरब से निकला करता था लेकिन अब तो हम सूरज को ही भूल गए हैं। भोर क्या होती हैं, हमें मालूम नहीं। बस याद है तो रात के बारह बजे का बजर! कब टन हो और कब बोतल से झाग निकलकर वातावरण में फैल जाए? पता नहीं कौन होगा जो सूरज के रथ को फिर से साधने का मन बनाएंगा? हम भी इस मदहोशी से निकलकर नवनिर्माण की कल्पना कर सकेंगे? हम गाँवों में शहरों की कल्पना करते हैं, मोबाइल से लेकर टीवी तक सभी हमारी ईच्छाओं में बसे हैं। लेकिन इस नवीन दिन तो सारे ही शहर गाँवों की गलियों जैसे मदहोश हो जाते हैं। रास्ते में झूमते, लड़खड़ाते लोग, घर जाकर बेसुध बिस्तर में पड़े लोग ! मोटर सायकिल पर चीखते-चिल्लाते लोगों को डराते लोग ! उत्सव में महिलाओं का चीर-हरण करते लोग !
फिर भी हम खुश हैं कि आज हमें एक दिन और मिल गया, मदहोशी में बिताने का। हम खुश हैं कि हम आगे बढ़ रहे हैं। हम खुश हैं कि देश प्रगति कर रहा है। लेकिन हम और भी खुश हैं कि हमें कुछ नहीं करना पड़ा। हमें तो चाहत है कि कोई सांता आए और हमें कुछ दे जाए। देश में सभी कुछ अच्छा हो, स्वत: ही हो। बस मैं भी देख रही हूँ कि सूरज कह रहा है कि मैं तुम्हें प्रकाश देता हूँ, तो बोलो तुम क्या देते हो? हवा मुझे झिंझोड़ रही है, पूछ रही है मैं तुम्हें जीने की साँस देती हूँ तो बताओ तुम क्या देते हो? मेरे घर के सामने का पेड़ भी झूम-झूम कर कह रहा है कि मैं तो तुम्हें फल-फूल देता हूँ तो बोलो तुम क्या देते हो? तब मैंने भी अपने आप से पूछा कि क्या मैं इस धरती को कुछ देती हूँ या केवल लेती ही हूँ? देने का भाव कब बिसरा दिया हमने? तारीखें बदलने से मन के भाव नहीं बदलते। मन के भाव बदलने के लिए सुबह की भोर में जीना सीखना होगा। जब लम्बी साँस अपने अन्दर लेकर प्राणवायु लेते समय मन में भाव आ ही जाता है कि इतनी अनुपम धरती पर हम क्या देकर जाएंगे?
39 comments:
नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें!
पल पल करके दिन बीता दिन दिन करके साल।
नया साल लाए खुशी सबको करे निहाल॥
आप सभी को नए साल की मुबारकबाद अल्लाह आपकी जिन्दगी को खुशियों से भर दे http://aapkiamanat.blogspot.com
बेहद गहन चिन्तन किया है ……………आपकी पोस्ट सोचने और मनन करने के लिये मजबूर करती है।
नव वर्ष की आपको और आपके पूरे परिवार को हार्दिक शुभकामनायें
इस सार्थक रचना के साथ आपको सपरिवार नव वर्ष की बधाई एवम हार्दिक शुभकामनायें ।
एक अलग तरह की प्रस्तुति... बहुत ही अच्छी लगी.नये वर्ष २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सुंदर लेख,आप के विचारो से सहमत हुं जी.
आप को ओर आप के परिवार को इस नये वर्ष की शुभकामनाऎं
विचारणीय पोस्ट ...नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।
अच्छा विचारेत्तेजक लिखा है आपने, आशा की जानी चाहिये कि समाज में भले ही कोई आशातीत बदलाव न हो ...एक चिंता तो जगनी ही चाहिये.
श्रेष्ठ चिंतन ...
नव वर्ष की बहुत शुभकामनायें !
आपकी पोस्ट सोचने लिये मजबूर करती है।
नव वर्ष की आपको और आपके पूरे परिवार को हार्दिक शुभकामनायें
विचारों को प्रवाह देता सार्थक लेख ....सच ही लिखा है कि आज की पीढ़ी तो शायद सूरज का उगना देखती ही नहीं ....
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
जब हम मदहोश होकर सोना बन्द कर सकेंगे तभी सूरज के रथ को पुनः साध सकने के अपने पूर्वजों के पथ का अनुकरण कर पाएँगे और सम्भव है कि तब हम आने वाली नस्लों के हितार्थ ऐसा भी कुछ करने की सोच सकें जिससे शायद प्रकृति भी स्वयं को 'दाता' के साथ ही इस मानव प्रजाति की ओर से कुछ सुख 'पाता' के रुप में भी हासिल हुआ महसूस कर सके ।
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
तय हो सफ़र इस नए बरस का
प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
सुवासित हो हर पल जीवन का
मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
शांति उल्लास की
आप पर और आपके प्रियजनो पर.
आप को सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर,
डोरोथी.
आपको को नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
नया साल शुभ और प्रगति-दायिनी हो !
सूरज के रथ के रास्तों पर न जाने कितने निर्मम अध्याय रचे जाते हैं। सूरज की राहों को निर्वाण कब मिलेगा।
कुछ दे कर जाएँ यही पशु को मनुष्य बनाता है।
सार्थक रचना। नए साल के अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकानाएं।
नए साल के उजले भाल पे
लिखें इबारत नए ख्याल से।
*
आपकी बात शायद कोई समझे इस साल ।
*
मुबारक 21 का 11।
गंभीर, संयत, संतुलित और झिंझोड देने वाली पोस्ट. दुबारा पढ़ने का आकर्षण बना है.
sarthak, vicharneey lekh.
nav varsh ki shubhkaamnaayen.
bahut achcha lagta hai aapka likha hua.
Kya khoob likhtee hain aap!
Naye saalki mubarakbaad qubool karen!
मंथन कराती रचना। नव वर्ष की शुभकामनाएं।
नए साल की पहली पोस्ट.....अच्छी लगी.
नव वर्ष पर आप को ढेर सारी बधाइयाँ.
_____________
'पाखी की दुनिया' में नए साल का पहला दिन.
बिलकुल सही कहा आपने। हम स्वार्थी हो गये हैं केवल मै के लिये सोचते हैं। आपको सपरिवार नये साल की हार्दिक शुभकामनायें।
सार्थक बात रखी है आपने,
उत्सव का उत्साह तभी है जब वह हमें आनंद दे।
स्वच्छन्दता तो अन्ततः दुखद ही बन जाती है।
आम आदमी के हित में आपका योगदान महत्वपूर्ण है।
उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनायें !
-डॉ० डंडा लखनवी
तारीखें बदलने से मन के भाव नहीं बदलते। मन के भाव बदलने के लिए सुबह की भोर में जीना सीखना होगा। सीखना होगा , यह तब कोई बात बनेगी , तब होगा नया कुछ , जीवन का मायने । अच्छी पोस्ट । नववर्ष की शुभ कामनाएं ।
बहुत प्रेरक विचार है -जैसी धरती हमें मिली ,उसे कुछ और सुन्दर बना कर ,अपनी आनेवाली संतानों को सौंप सकें ,इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है !
धरती को कुछ देने की बात काफी विचारणीय है वास्तव में हमें सोचना पड़ेगा की हम क्या दे रहे है और हम क्या दे सकते है |
वैसे पीने वालो को तो बहाने की जरुरत नहीं है वो तो जब चाहते है शुरू हो जाते है |
आप को नया साल मुबारक हो |
आप सभी का आभार। नव वर्ष पर जितने भिन्न विचार आएंगे उतना ही मनुष्य विचारवान बनेगा। इसलिए प्रत्येक नवीन विचार का स्वागत करें। बस आवश्यकता है कि ये विचार नकारात्मक ना हो। नकारात्मक विचार आपके मन के लिए भी हानिकारक होते हैं।
गहन चिन्तन से उपजी है आपकी पोस्ट ... सच में आज देश की भावी पीड़ी इस महत्त्व को नहीं समझ रही ....
आपको और परिवार में सभी को नव वर्ष मुबारक ...
विचारणीय आलेख |
क्या हम इस उप संस्क्रती के वाहक नहीं है ?
बहुत सालो पहले कवी सम्मेलनों में नामी गिरामी कवियों को वाटर बेग में झाग का पानी पीते देखा था |तभी वो लोग बुजुर्ग थे और देश की संस्कृति को बचाने की कविताये पढ़ते थे मंच पर |
नव वर्ष के स्वागतार्थ इससे अच्छी और सार्थक पोस्ट क्या हो सकती है !
आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !
साभार,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
छुट्टियों के कारण आने में थोडा विलम्ब हुआ .
अच्छा चिंतन लगा.
नववर्ष आपको शुभ हो .
आदरणीय अजित जी,
आपका यह गद्यलेख, एक सशक्त काव्य से कम नहीँ।बहुत कुछ कह दिया है आपने।सूरज का यह रथ किन किन को आलोकित करेगा, राम ही जाने किन्तु जिन्हे किरणोँ की दरकार होगी, यकीन जानिये उन्हे प्रस्तुत लेख से बहुत कुछ मिलेगा।धन्यवाद
बहुत ही सार्थक आलेख...
नव-वर्ष की शुभकामनाएं
Happy New Year Maa'm I like your style of writing...really good.
अजित जी नववर्ष पर आपका लेख भारतीय संस्कारों को नमन के साथ बहुत कुछ और भी कह गया . हम भारतीय तो हैं ही उत्सव प्रिय कहते हैं ना सात वार नौ त्यौहार । हमारे घरों में हर महीने ना जाने कितने त्यौहार व्रत होते हैं जो जीवन में नयी उमंग नया उत्साह भर जाते हैं . और आपके राजस्थान में तो त्यौहार ही त्यौहार हैं । आपको नव वर्ष की शुभकामनाएं अब तो ये पुरानी पड़ने वाली हैं लोहड़ी , पोंगल , उत्तरायण , मकर संक्राति ,बिहू जो दस्तक दे रहा है . ज़ी न्यूज पर मेरा कार्यक्रम मंथन देखें हर रोज़ सुबह साढ़े 6 बजे भारतीय पर्वों और उत्सवों का महत्व है उसमें और आप से तो इसमें और भी बहुत मदद मिल सकती है । आपने ब्लॉग की दुनिया में पहला कदम रखने पर जो स्नेह दिया उसके लिए दिल से आभार
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