हमारी सामाजिक मान्यताएँ पीपल के पेड़ के समान होती हैं, पेड़ चाहे सूख गया हो लेकिन उसकी जड़ें बहुत गहराई तक फैली होती हैं। वे किसी हवेली के पुराने खण्डहर में से भी फूट जाती हैं। छोटे शहर की मानसिकता सामाजिक ताने-बाने में गुथी रहती हैं, हम कई बार महानगरों में पहुँचकर वहाँ की चाल से चलने लगते हैं लेकिन हमारी मान्यताओं वाले पीपल के पेड़ की जड़ हवेली के खण्डहर में से फूट जाती हैं।
हमारे समाज में विवाह सात जन्मों का बन्धन है लेकिन जब कोई विवाह को ही नकारता हुआ, खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों की तर्ज पर लिविंग रिलेशन में रहने लगे तब वह पीपल की जड़ न जाने कहाँ-कहाँ से फूट पड़ती है। मानसिकता साथ नहीं देती और तू तेरे रास्ते और मैं मेरे, कहकर अलग हो जाते है।
मानसिक बैलेंस को बनाकर रखना एक चुनौती है। जैसे ही अनैतिक कदम पड़े और हमारी मान्यताएँ हमें आगाह करने लगती हैं, हम नहीं मानते और कब संतुलन गड़बड़ हो जाता है, पता ही नहीं चलता। जहां भी सामाजिक मान्यताओं के पेड़ सुदृढ़ हैं और उन्हीं के वारिस पेड़ को काटने का प्रयास करते हैं तब पेड़ की जड़ हवेली से भी फूटने लगती है। विशाल हवेली जर्जर होने लगती है। मानसिक संतुलन अवसाद की स्थिति में आ जाता है।
बॉलीवुड ऐसी जगह है जहाँ सामाजिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ा दी गयी हैं। कहते हैं कि कलाकार नैतिक होता है इसलिये फक्कड़ होता है लेकिन जब कलाकार अनैतिकता के दलदल में धंस जाये तो कलाकार कहाँ रह जाता है! वह केवल सौदागर बन जाता है। एक तरफ उसकी मर्यादाएँ खड़ी होती हैं तो दूसरी तरफ बाज़ार! जिसके पेड़ की जड़ें जितनी गहरी और विस्तृत होती हैं वही जड़ें कहीं से भी फूट पड़ती हैं!
कलाकार और बाजार, में से एक को चुनना होगा। नैतिकता और अनैतिकता में से एक के साथ चलना होगा। सामाजिक मान्यताओं और खुलेपन में से किसी एक के दायरे में रहना होगा। नहीं तो फिर मानसिक अवसाद और स्वयं को समाप्त करने का संकल्प सामने होगा। कब पीपल के पेड़ की जड़ें हमारे अन्दर से फूट पड़ेंगी और हम बेजान हो जाएंगे, पता ही नहीं चलेगा।
#sushantsingh
हमारे समाज में विवाह सात जन्मों का बन्धन है लेकिन जब कोई विवाह को ही नकारता हुआ, खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों की तर्ज पर लिविंग रिलेशन में रहने लगे तब वह पीपल की जड़ न जाने कहाँ-कहाँ से फूट पड़ती है। मानसिकता साथ नहीं देती और तू तेरे रास्ते और मैं मेरे, कहकर अलग हो जाते है।
मानसिक बैलेंस को बनाकर रखना एक चुनौती है। जैसे ही अनैतिक कदम पड़े और हमारी मान्यताएँ हमें आगाह करने लगती हैं, हम नहीं मानते और कब संतुलन गड़बड़ हो जाता है, पता ही नहीं चलता। जहां भी सामाजिक मान्यताओं के पेड़ सुदृढ़ हैं और उन्हीं के वारिस पेड़ को काटने का प्रयास करते हैं तब पेड़ की जड़ हवेली से भी फूटने लगती है। विशाल हवेली जर्जर होने लगती है। मानसिक संतुलन अवसाद की स्थिति में आ जाता है।
बॉलीवुड ऐसी जगह है जहाँ सामाजिक मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ा दी गयी हैं। कहते हैं कि कलाकार नैतिक होता है इसलिये फक्कड़ होता है लेकिन जब कलाकार अनैतिकता के दलदल में धंस जाये तो कलाकार कहाँ रह जाता है! वह केवल सौदागर बन जाता है। एक तरफ उसकी मर्यादाएँ खड़ी होती हैं तो दूसरी तरफ बाज़ार! जिसके पेड़ की जड़ें जितनी गहरी और विस्तृत होती हैं वही जड़ें कहीं से भी फूट पड़ती हैं!
कलाकार और बाजार, में से एक को चुनना होगा। नैतिकता और अनैतिकता में से एक के साथ चलना होगा। सामाजिक मान्यताओं और खुलेपन में से किसी एक के दायरे में रहना होगा। नहीं तो फिर मानसिक अवसाद और स्वयं को समाप्त करने का संकल्प सामने होगा। कब पीपल के पेड़ की जड़ें हमारे अन्दर से फूट पड़ेंगी और हम बेजान हो जाएंगे, पता ही नहीं चलेगा।
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