जब
भी किसी महिला को खिलखिलाकर हँसते देखती हूँ तो मन करता है, बस उसे देखती ही रहूँ।
बच्चे की पावन हँसी से भी ज्यादा आकर्षक लगती है मुझे किसी महिला की हँसी। क्योंकि
बच्चा तो मासूम है, उसके पास दर्द नहीं है, वह अपनी स्वाभाविक हँसी हँसता ही है लेकिन
महिला यदि हँसती हैं तो वह मेरे लिये स्वर्ग से भी ज्यादा सुन्दर दृश्य होता है।
फेसबुक पर कुछ महिलाएं अपनी हँसी डालती हैं. उनके जीवन को भी मैंने जाना है और अब जब उनकी हँसी देखती हूँ
तो लगता है कि जीवन सार्थक हो रहा है। कहाँ हँस पाती है महिला? पल दो पल यदि किसी
प्रसंग पर हँस लें तो कैसे उसे हँसना मान
लेंगे?
बचपन
में एक लड़की हँस रही थी, माता-पिता ने
टोक दिया, ज्यादा हँसों मत, लड़कियों के लिये हँसना ठीक नहीं है। बेचारी लड़की समझ
ही नहीं पायी कि हँसने में क्या हानि है? आते-जाते जब सभी ने टोका तो उसकी हँसी
कहीं छिप गयी। सोचा जब अपना घर बसाऊंगी तो जी भर कर हँसूंगी लेकिन किसी पराये घर
को अपना कहने में हँसी फंसकर रह गयी। दूसरों को हँसाने का साधन जो बनना था उसे, तो
भला वह वहाँ भी कैसे हँसती? वार त्योहार जैसे चूंदड़ पहनकर अपनी पुरानी साड़ी को
छिपाती आयी हैं महिलाएं, वैसे ही कभी हँसी को ओढ़ने का मौका मिल जाता है उन्हें।
जब त्योंहार गया तो चूंदड़ को समेटकर पेटी में
रख दिया बस।
बड़ा
होने की बाट जोहती रही महिला, कब बेटा बड़ा हो और माँ का शासन चले तो जी भरकर
हँसे। लेकिन तब तो पल दो पल की हँसी भी
दुबक कर बैठ गयी। दिखने को लगता है कि किसने रोकी है हँसी? लेकिन महिला जानती है कि उसकी हँसी किसी
पुरुष के अहम् को ठेस पहुँचाने का पाप कर देती है। शायद दुनिया का सबसे बड़ा पाप
यही है। कोई काले लिबास में कैद है तो कोई सफेद लिबास में कैद है, उसका स्वतंत्र
अस्तित्व कहीं है ही नहीं। हँसने पर आज्ञा-पत्र लेना होता है या किसी का साथ जरूरी
होता है। महिलाएं इसलिये ही इतना रोती हैं कि उन्हें हँसने की आजादी नहीं है, वे
रो-कर ही
हँसने की कमी को पूरा करती हैं। इसलिये जब भी किसी महिला को रोते देखो तो
समझ लेना कि यह हँसने की कमी पूरा कर रही है। मैं तो रोती भी नहीं हूँ बस किसी
महिला को हँसते देख लेती हूँ तो मान लेती हूँ की मैं ही हँस रही हूँ।