घर की दुनिया कितनी अपनी सी है। घर का कोना-कोना आपका
होता है, दीवारें लगता है जैसे आपको बाहों में लेने के लिए आतुर हों। इस अपने घर
में पूर्ण स्वतंत्र हैं, चाहे नाचिए, चाहे गाइए या फिर धमाचौकड़ी मचाइए, सब कुछ
आपका है। बाहर की दुनिया में ऐसा सम्भव नहीं है। इस पोस्ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%98%E0%A4%B0-%E0%A4%A4%E0%A4%95/
श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Monday, March 30, 2015
Monday, March 23, 2015
कल तक थे चार पुरुषार्थ लेकिन अब हैं पाँच
श्रीराम और श्रीकृष्ण का जीवन देखिए, उनके जीवन का
कृतित्व समझिए। उन्होंने राष्ट्र-सुरक्षा को ही सर्वोपरी माना और आततायियों का
संहार ही उनका लक्ष्य रहा। रामायण और महाभारत काल इसी बात के साक्षी हैं कि
सृष्टि पर श्रेष्ठ विचार पनपने चाहिए और निकृष्ट विचारों का नाश होना चाहिए। ना
राम और ना ही कृष्ण ने कभी किसी कर्मकाण्ड या पूजा पद्धति को स्थापित किया, बस
वे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ही संकल्पित रहे। इस पोस्ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%95%E0%A4%B2-%E0%A4%A4%E0%A4%95-%E0%A4%A5%E0%A5%87-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5-%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%95/
Sunday, March 15, 2015
मन की किवड़िया खोल
मन की किवड़िया खोल - आलेख को पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%AE%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A5%9C%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%96%E0%A5%8B%E0%A4%B2/
Friday, March 13, 2015
मेरे शहर में -------
हर रोज ऐसी सुबह हो - अठखेलियां करता झील का किनारा
हो, पगडण्डी पर गुजरते हुए हम हो, पक्षियों का कलरव हो, सूरज मंद-मंद मुस्कराता
हुआ पहाड़ों के मध्य से हमें देख रहा हो, हवा के झोंकों के साथ पक रही सरसों की
गंध हो, कहीं दूर से रम्भाती हुयी गाय की आवाज आ रही हो, झुण्ड बनाकर तोते अमरूद
के बगीचे में मानो हारमोनियम का स्वर तेज कर रहे हों, कोई युगल हाथ में हाथ डाले
प्रकृति के नजदीक जाने का प्रयास कर रहा हो - कल्पना के बिम्ब थमने का नाम ना ले
ऐसी कौन सी जगह हो सकती है? आलेख को पूरा पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें -
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