Sunday, November 9, 2014

63वें जन्‍मदिन पर - अपने मन की बात

63 बार मैं कार्तिक/नवम्‍बर के मास से गुजर चुकी हूँ। कितना कुछ बदल गया है, ना अब वह पथ है और ना ही वह पथिक है। जिन तंग गलियों में पहली बार आँखें खोली, वे कब की बिसरा दी गयी। जिसे खुले मैदान में बचपन दौड़ा, अब वह भी दूर हो चला है।http://sahityakar.com/wordpress/ 

Monday, November 3, 2014

अमेरिका को कैसे अपनाएं? भाग 2

अब आते हैं अपने दिन और रात पर। केलिफोर्निया के सेनोजे शहर में सुबह जल्‍दी ही हो जाती थी। भारत में जून महिना भरपूर गर्मी भरा रहता है लेकिन यहाँ मौसम बेहतर था। सुबह की भोर ठण्‍डक लिए होती थी तो जैसे-जैसे दिन चढ़ता था, धूप में तेजी आती जाती थी। लेकिन रात होते ही गर्मी फिर से अपनी कोठरी में जा दुबकती थी और ठण्‍डक अपने पैर पसारने लगती थी। सुबह छ: बजे से रात को नौ बजे तक दिन बना रहता था। पोस्‍ट को सम्‍पूर्ण पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/wp-admin/post.php?post=498&action=edit&message=1