कहां गयी वो गरमा-गरम बहसें?
कभी नारीवाद के नाम पर, कभी राष्ट्रवाद के नाम पर, कभी सत्ता की नजदीकियों के कारण, कभी अन्ना हजारे और रामदेव आन्दोलन के कारण ऐसे ही न जाने कितनी बहसें हम ब्लाग पर करते आए थे। लेकिन आज सभी खामोश हैं। क्या बहस चुक गयी या फिर उसे निरर्थक मान लिया गया?
कभी नारीवाद के नाम पर, कभी राष्ट्रवाद के नाम पर, कभी सत्ता की नजदीकियों के कारण, कभी अन्ना हजारे और रामदेव आन्दोलन के कारण ऐसे ही न जाने कितनी बहसें हम ब्लाग पर करते आए थे। लेकिन आज सभी खामोश हैं। क्या बहस चुक गयी या फिर उसे निरर्थक मान लिया गया?