Saturday, April 27, 2013

लेखन और पठन का अपना ही मिजाज होता है

लेखन का भी जैसे एक मिजाज होता है वैसे ही पढ़ने का भी अपना ही मिजाज होता है। हमारी सुबह तय करती है कि आज क्‍या लिखा जाएगा या क्‍या हमारा मन पढ़ने को करेगा। इंटरनेट खोलने पर अनेक लेख, कविता, कहानी आदि हमारे सामने आकर बिखर जाते हैं लेकिन हमारा मन बस कभी कहीं पर अटकता है तो कभी कहीं पर।
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Saturday, April 20, 2013

समाज भेड़िये पैदा कर रहा है और समाज के ठेकेदार जनता से सुरक्षा-कर वसूल रहे हैं

एक घना और फलदार वृक्ष था, उसमें सैंकड़ों पक्षी अपना बसेरा बनाए हुए थे। उसमें इतने फल लगते थे कि उन सभी पक्षियों का पेट भर जाता था। पास में ही एक नदी बहती थी, वृक्ष की जड़े उसी नदी से पानी लेती थी और पेड़ को हरा-भरा रखती थी। नदी जिस शहर से होकर गुजरती थी, वहाँ एक रसायन उत्‍पाद करने वाला कारखाना था। उस कारखाने का रसायन युक्‍त पानी उसी नदी में आकर मिलता था। शहर की अन्‍य सारी गन्‍दगी भी उसी नदी में समाती थी। पेड़ उसी नदी का पानी लेने को मजबूर था।
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Saturday, April 13, 2013

मधुमक्‍खी शहद बनाती हैं और मनुष्‍य जहर बनाता है

प्रकृति अपने यौवन पर है, बगीचों में जहाँ तक नजर जाती है, फूल ही फूल दिखायी देते हैं। भारतीय त्‍योहार प्रकृति पर आधारित हैं इसी कारण यह मौसम त्‍योहारों का भी रहता है। अभी होली गयी, फिर नया साल आ गया और अब गणगौर। त्‍योहारों के कारण परिवारों में प्रेम भी फल-फूल रहा है। और जब मन में केवल प्रेम ही हो, सब कुछ सकारात्‍मक हो तब लिखने की बेचैनी मन में नहीं होती है। 
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