Monday, February 25, 2013

शरीर की आवश्‍यकताएं और उनका आधुनिक प्रबंधन



घटना कुछ माह पुरानी है। मैं रेलमार्ग से उदयपुर से दिल्‍ली जा रही थी। अभी गाडी चलने में पर्याप्‍त समय था और मैं अपनी बर्थ पर आसन जमा चुकी थी। डिब्‍बे में बड़ी चहल-पहल थी, एक दल उदयपुर घूमने आया था और वे अपनी शय्‍याओं का प्रबंध कर रहा था। कुछ उनके पास थी और कुछ को वे प्राप्‍त करने की जुगाड़ में थे। पोस्‍ट को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - http://sahityakar.com/wordpress/%E0%A4%B6%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E2%80%8D%E0%A4%AF%E0%A4%95%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%8F%E0%A4%82-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%89%E0%A4%A8/

Sunday, February 17, 2013

तीन पीढ़ी का बचपन : कौन सही कौन गलत?

कहते हैं बचपन की कसक जीवन भर सालती है। बचपन के अभाव जिन्‍दगी की दिशा तय करते हैं। कभी अभाव मिलते हैं और कभी अभावों का भ्रम बन जाता है। कभी प्रेम नहीं मिलता तो कभी प्रेम का अतिरेक प्रेम को विकृत कर देता है। हमारी पीढ़ी के समक्ष तीन पीढ़ियां हैं। 
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Saturday, February 9, 2013

पुत्र-वधु परिवार की कुलवधु या केवल पुत्र की पत्‍नी?

पुत्र के विवाह पर होने वाली उमंग से कौन वाकिफ नहीं होगा? घर में पुत्र-वधु के रूप में कुल-वधु के आने का प्रसंग परिवारों को रोमांचित करता रहा है। माता-पिता को अपनी वधु या बहु आने का रोमांच होता है, छोटे भाई-बहनों को अपनी भाभी का और पुत्र को अपनी पत्‍नी का।
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Saturday, February 2, 2013