बहुत दिनों बाद पोस्ट लिखने का समय मिला है। आज अपनी पसंदीदा ब्लोग्स को पहले पढ़ा फिर सोचा कि इस पोस्ट के माध्यम से अपनी उपस्थिति भी दर्ज करा ही दूं। कल ही बेटा वापस अमेरिका रवाना हुआ है, बहुत दिनों का भरा-भरा घर सूना सा हो गया है। वापस वे ही एकान्त के दिन लौट आए हैं। कहते हैं कि भारत में मानसून चतुर्मासा होता है लेकिन हमें तो उसकी फुहारे साल या दो साल में कुछ दिनों के लिए ही भिगो पाती हैं। खैर यह सब तो हमारी पीढ़ी का कटु सत्य है और इसी में खुश भी हैं। मुझे लगता है कि प्रेम ऐसी वस्तु है जो सभी कुछ भुला देती है। भगवान यदि हर व्यक्ति को प्रेम से सरोबार कर दे तो वह शायद कुछ और करे ही ना! जब दिल चुक जाता है तो दीमाग सक्रिय होने लगता है। बहुत ढेर सारे अनुभव भी हैं इन दिनों के लेकिन अभी तो इस पोस्ट के माध्यम से केवल अपनी उपस्थिति ही दर्ज करा रही हूँ। क्योंकि मुझे कल ही वाराणसी के लिए निकलना है। इस बार 30 और 2 अगस्त को दिल्ली भी रहना होगा और 31 एवं 1 अगस्त को वाराणसी में। किसी से मिलने का योग बनता है या नहीं, यह नहीं जानती। अब वाराणसी से आकर मिलती हूँ, तब तक के लिए राम राम।
श्रीमती अजित गुप्ता प्रकाशित पुस्तकें - शब्द जो मकरंद बने, सांझ की झंकार (कविता संग्रह), अहम् से वयम् तक (निबन्ध संग्रह) सैलाबी तटबन्ध (उपन्यास), अरण्य में सूरज (उपन्यास) हम गुलेलची (व्यंग्य संग्रह), बौर तो आए (निबन्ध संग्रह), सोने का पिंजर---अमेरिका और मैं (संस्मरणात्मक यात्रा वृतान्त), प्रेम का पाठ (लघु कथा संग्रह) आदि।
Thursday, July 28, 2011
Saturday, July 16, 2011
अभी ब्लाग जगत से छुट्टियों के दिन चल रहे हैं - अजित गुप्ता
आज-कल में आप सभी ने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी होगी, नए विचारों से सभी को अवगत कराया होगा। एक सार्थक विचार विमर्श हो इसका भी मन होगा। टिप्पणियां भी आ ही रही होगी, अधिकतर स्थापित पाठकों की और कुछ नवीन पाठकों की। स्थापित पाठकों में एक नाम का अभाव आपको खटक रहा होगा। मन ही मन ना जाने क्या क्या कयास भी लगाए जा रहे होंगे। लेकिन ज्यादा कुछ मत सोचिए, मैं भी आप सभी के विचारों का अभाव
अनुभव कर रही हूँ। इन दिनों पारिवारिक व्यस्तता अधिक है, बच्चे आए हुए हैं। और आप जानते ही हैं कि जब बच्चे घर आए हों तब सारी दुनिया भूली सी लगती है। अभी वे सब सो रहे हैं इसलिए इतना सा भी लिख पा रही हूँ। लेकिन शीघ्र ही अपने नए अनुभवों के साथ आपके समक्ष आती हूँ। आप सभी की पोस्ट बाद में पढ़ती हूँ। तब तक के लिए विदा।
अनुभव कर रही हूँ। इन दिनों पारिवारिक व्यस्तता अधिक है, बच्चे आए हुए हैं। और आप जानते ही हैं कि जब बच्चे घर आए हों तब सारी दुनिया भूली सी लगती है। अभी वे सब सो रहे हैं इसलिए इतना सा भी लिख पा रही हूँ। लेकिन शीघ्र ही अपने नए अनुभवों के साथ आपके समक्ष आती हूँ। आप सभी की पोस्ट बाद में पढ़ती हूँ। तब तक के लिए विदा।
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