Sunday, April 24, 2011

बिटिया के बिना मन सूना जैसे मन की ईमेल को स्‍पेम में डाल दिया हो – अजित गुप्‍ता



फोन की घण्‍टी बज उठी, जैसे ही मैने हैलो बोलकर कहा कि हाँ बोलो बेटा, कैसी हो? उसी क्षण दो आँखों ने मेरा पीछा किया, दो कानों ने मेरी बातों पर अपना मन गड़ा दिया। मैं अपनी बेटी से बात कर रही थी और एक चेहरा मुझे निहार रहा था। मन में उथल-पुथल थी शायद। मेरे फोन बन्‍द करते ही मेरी मित्र ने पूछा कि बिटिया से बात कर रही थीं ना? हाँ, मैंने सहजता से कहा। उनका अगला प्रश्‍न चौंकाने वाला था। पूछ रही थीं कि आप बिटिया से मन की सारी ही बाते कर लेती होंगी? मैं उनके चेहरे को देख रही थी। बिटिया से तो मन की बाते होती ही हैं, आज ऐसा प्रश्‍न क्‍यों? उनकी भाव-भंगिमा देखकर लग रहा था जैसे किसी डायबिटीज के रोगी के सामने मिठाई रखी हो और वह उसे खा नहीं सके, बस मायूसी से उस मिठाई को देखता ही रहे। या यूँ कहूँ कि आप किसी को मेल करना चाहे और वह आपकी मेल को स्‍पेम में डाल ले। वे अपने आप से ही बातें करने लगी, कह रही थी कि बेटी से बात करना कितना सुखद होता है! मन की सारी बाते हो जाती है। मिसेज सिन्‍हा को भी रोज देखती हूँ, कई घण्‍टे वे बेटियों से बातें करती हैं। कितना खुश लगती हैं। मेरी देवरानी भी कितनी खुश रहती है, वो भी रोज ही अपनी बेटी से बातें करती हैं।
एक माँ जिसके बेटे तो हैं, बहुएं भी हैं लेकिन बेटी नहीं है, उसका दुख आज छलक पड़ा था। दुख का यह पैमाना मेरे लिए अन्‍जाना था। अपने मन की बात किसी से ना कर सकें तो मन में घुटन होती है लेकिन बेटी से इस घुटन का रिश्‍ता है यह कभी सोचा ही नहीं था। घर में कोई छोटी-मोटी बात हो, बेटे ने कुछ कह दिया हो, या बहु की बात समझ नहीं आ रही हो तो एक सहारा बेटी ही तो है, जिसे अपने मन की बात कहकर हल्‍का हुआ जा सकता है। लेकिन जिसके बेटी नहीं हैं वह क्‍या करे? आज मुझे मेरी मित्र की आँखों में अनायास ही उस पीड़ा के दर्शन हो गये। अपने में मस्‍त, साधन-सुविधाओं से सम्‍पन्‍न, लेकिन बेटी नहीं। बेटी ना होने का दर्द इस प्रकार प्रकट होगा, मुझे कल्‍पना नहीं थी। लोग तो बेटे की माँ से ईर्ष्‍या करते हैं, यहाँ आज बेटी की माँ से ईर्ष्‍या हो गयी। एक ठण्‍डी आह के साथ निकल आया दिल का दर्द कि काश मेरे भी बेटी होती!
कहावत है कि बेटी माँ का दर्द जानती है, उसे बाँटती भी है। इसके विपरीत बहुत कम बेटे होते हैं जो माँ के दर्द को समझते हैं या साझीदार बनते हैं। उनके पास शायद समय भी नहीं होता कि वे माँ की पूरी रामायण सुन लें। अभी रिश्‍तेदारी में एक विवाह सम्‍पन्‍न हुआ, बेटे से बात हुई तो बोला कि कैसी रही शादी? कुछ एकाध प्रश्‍न पूछकर बात समाप्‍त हो गयी। मैंने अपनी तरफ से ही कई बाते बताई लेकिन उसने प्रश्‍न दर प्रश्‍न नहीं किए। इसके विपरीत बेटी ने आगे होकर पूछा कि क्‍या-क्‍या हुआ शादी में? जहाँ-जहाँ भी बातों के चटखारों की उम्‍मीद थी, उन सभी बातों के लिए भी पूछा। बेटे को मैं बता रही थी और बेटी मुझसे पूछ रही थी, बस इतना ही अन्‍तर था। आस-पड़ोस की रोज-मर्रा की बातों से बेटी वाकिफ होना चाहती है, बेटा बेपरवाह सा सुन लेता है लेकिन उन बातों में रमता नहीं है। बस यही अन्‍तर है, बेटा और बेटी में। आप शायद इस बात का प्रतिवाद करें लेकिन यह तो सच है कि मन तक बेटियां ही पहुंचती हैं। मेरी मित्र की आँखों में मुझे जो दर्द दिखायी दिया, उस कारण मेरा भी नजरियां बदल गया है। अब मुझे बेटे वाली माँएं बेबस सी दिखायी देने लगी हैं। कहाँ जाएं अपने मन का दर्द बाँटने? एक उम्र आती है जब बेटा बड़ा हो जाता है और वह माँ का पल्‍लू छोड़कर अन्‍य जगह अपनी खुशियां तलाशता है। उस समय माँ एकदम अकेली हो जाती है और तब उसे अपने मन को बाँटने के लिए एक बिटिया की आवश्‍यकता होती है। बहु भी आपकी बेटी बन सकती है, लेकिन आप कितना भी प्रयास कर लें आपके मन की गहराइयों तक उसकी पहुंच नहीं हो सकती। मेरी मित्र का कहना था कि एक डर सा बना रहता है कि किस बात का क्‍या अर्थ निकाल लिया जाएगा लेकिन बिटिया के सामने यह डर नहीं होता। चाहे आप बेटी से कितना ही लड़ ले लेकिन यह आश्‍वासन हमेशा रहता है कि गलत अर्थ नहीं निकाला जाएगा। इस बारे में अनेक विचार हो सकते हैं, लेकिन मैने जो अनुभव किया, पूरी ईमानदारी के साथ आपसे सांझा किया। प्रभु का आभार भी माना कि मुझे एक बिटिया दी हैं, जिससे रोज एक घण्‍टा बात करके अपने मन को हल्‍का कर लेती हूँ, हँस लेती हूँ। इसलिए यदि आपके बेटी नहीं है तो मानिए आपके जीवन में आनन्‍द की वर्षा शायद कम हो और आप भी किसी माँ को बेटी से बात करते देख एक हूक सी अपने मन के अन्‍दर महसूस करते हों। आप इस बारे में क्‍या सोचते हैं? मन की गहराइयों तक बेटी की पहुंच होती है या बेटे की भी होती है?


55 comments:

  1. बेटियां शादी के पूर्व पिता को जितनी प्यारी होती हैं शादी के बाद माँ का उससे भी अधिक प्यार पाते दिखाई देती हैं ।

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  2. बात बस मां-बेटी की ही नहीं, पिता-बेटी की भी इतनी ही महत्वपूर्ण है. अनुभूतियों को सक्षम स्वर दिया है आपने.

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  3. अजित जी,
    ऐसे ही बिटिया को घर की शोभा नहीं कहा जाता...लेकिन जिसके घर में बेटी न हो सिर्फ बेटा या बेटे हों, वहां एक ही उपाय है बहू-सास ही बिटिया-मां बन कर दिखाएं...जहां तक बेटों की बात है ये उनके स्वभाव में ही नहीं होता कि ऐसी बातें करें, विवाह में क्या-क्या हुआ, किसने क्या-क्या पहना, क्या दिया-क्या लिया...इसलिए अमूमन उनका बस एकाध ही सवाल होगा...कैसी रही शादी...हां बेटियों को ज़रूर ये क्यूरेसिटी होगी कि क्या-क्या हुआ...वो एक-एक बात जानना चाहेंगी...बाकी जिस हाल में ऱाखे राम, उसी हाल में खुश रहना हर कोई सीख ले तो फिर बात ही क्या...

    जय हिंद...

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  4. मुझे बेटी नहीं है .. अभी से क्‍यूं डरा रही हैं आप ??

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  5. आप भी किसी माँ को बेटी से बात करते देख एक हूक सी अपने मन के अन्‍दर महसूस करते हों।
    हाँ जब अपनी बहू को उसकी माँ के साथ बात करते देखते है तो हूक सी उठती ही है |
    बहू को बेटी सा ही प्यार दो पर जब बेटी ही नहो तो ?क्या मालूम की बेटी को कैसा प्यार देते है ?ऐसा भी कहा जाता है |
    ये भी सच है की बेटो से ज्यादा बेटी ही मन की बात जानती है |

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  6. संगीता जी, डरा नहीं रही, बस जिनके बेटी नहीं है उनके मन की बात बता रही हूँ। अरे हम तो ब्‍लाग वाले लोग हैं, यहाँ अपना मन उड़ेलते रहते हैं। सब कुछ तो लिखते रहते हैं, मन के दुख और सुख, सब कुछ ही।

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  7. .
    इसमें कई शक नहीं कि बेटियाँ अधिक सँवेदनशील और सहनशील होती हैं । सुनने में अटपटा लगे, पर यह सच है कि एक 70 वर्षीय वृद्धा अपने पीहर से उतनी ही जुड़ी होती हैं, जितनी कि सद्द्यब्याहता षोडषी दुल्हन !
    क़ैफ़ी आज़मी ने कहीं लिखा है.. बेटियाँ न होतीं तो कौन बाप का मातम करता ! पूरी नज़्म यहाँ गैरज़रूरी है, फिर भी...

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  8. आपकी पीड़ा को अभी समझना कठिन है, बिटिया छोटी है, पर कल्पना करता हूँ तो अटपटा सा लगता है।

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  9. .

    शादी के बाद प्रतिदिन माँ से फोन पर बात करना एक रूटीन बन गया था। कुछ अपनी कहना , कुछ उनकी सुनना । मेरी एक ही दोस्त थीं , वो थीं मेरी माँ , हर छोटी-बड़ी बात का समाधान माँ चुटकियों में दे देती थीं। ३ अप्रैल २००७ में ५८ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद , मेरा सबसे बड़ा सहारा खो गया।

    माँ कहती थीं - "बच्चियां मोहिनी होती हैं" अर्थात मन मोहती हैं ।

    जब में मेडिकल कर रही थी तो बैचमेट्स के साथ एक बार गपशप हो रही थी। सहेली ने कहा - "उसे एक आशिक मिजाज पति चाहिए बस" ....फिर मेरी बारी आई अपनी इच्छा कहने की --" मैंने कहा पति तो अच्छा ही मिलेगा , मुझे तो बस दो बच्चे चाहिए , वो भी जुड़वां , जिसमें एक बेटी हो और एक बेटा। बेटा बड़ी हो तो खुशकिस्मती होगी , भाई को अच्छे संस्कार देगी।

    मेरी मुराद पूरी हुयी , बेटी मिली बड़ी संतान के रूप में । पहले मुझे माँ के रूप में सहेली मिली थी, अब 'बेटी' के रूप में एक बहुत अच्छी दोस्त मिल गयी है। अभी से मेरा इतना ध्यान रखती है , बड़ी होकर जाने कितना रखेगी।

    खुशनसीब हैं वो लोग जिनके घर बेटियां जन्म लेती हैं।

    जब मेरा विवाह हुआ तो ससुराल में बहस छिड़ी की बेटी वाले ज्यादा भाग्यशाली होते हैं अथवा बेटे-वाले? क्यूंकि मेरे पति तीन भाई हैं, बहन नहीं है उनके और मैं तीन बहन हूँ एक भाई के साथ।

    सबने कहा - बेटे-वाले भाग्यशाली होते हैं, जो दूसरों की पली-पलाई बेटियां अपने घर ले आते हैं।

    मैं बस इतना जानती हूँ की बेटियां बहुत सौभाग्य से और पुन्य कर्मों से मिलती हैं । मैं एक बेटी की माँ होने के कारण स्वयं को बहुत सौभाग्यशाली महसूस करती हूँ।

    आपकी पोस्ट ने 'माँ' की याद दिला दी , फोन-कॉल्स के उस सिलसिले की याद दिला दी जो अब नहीं होते हैं। आंसुओं के बीच लिखे इस कमेन्ट को शायद मेरी माँ आसमान से पढ़कर मुस्कुरा रही होंगी और अपनी भावुक बच्ची को आशीर्वाद दे रही होंगी।

    आपकी पोस्ट के माध्यम से फोन पर तो नहीं , फिर भी अपनी माँ से एक प्रकार का संवाद हो सका। इसके लिए आपका आभार।

    .

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  10. बेटियाँ अधिक सँवेदनशील और सहनशील होती हैं ।खुशनसीब हैं वो लोग जिनके घर बेटियां जन्म लेती हैं।

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  11. बचपन में माँ को खोया था --कोई दूसरी बहन भी न थी --जो दुःख दर्द बाटती--सहेलियों से अपना दर्द बताती रही पर जब पहला लड़का हुआ तो काफी दुःख हुआ उसी को लडकी समझ फ्राक पहनाती चोटी करती--उसके बाद जब पहली लडकी हुई तो इतनी ख़ुशी हुई की कह नही सकती --आज दो -दो लडकियों की माँ हूँ--

    सारा दर्द सुख उनसे ही बांटती हूँ --वो भी सारे दिन का खुला चिठ्ठा मुझे बताए बीना रह नहीं पाती --अभी शादी नहीं हुई है इसलिए उसका अनुभव नही है --सिर्फ यही कहुगी --

    "ओंस की एक बूंद -सी होती है बेटियाँ !
    हर हाल में खुश रहती है बेटियाँ !
    बेटा तो एक ही कुल को करेगा रोशन
    दो -दो कुलो को रोनक करती है बेटियाँ !"

    बहुत सुंदर पोस्ट है अजित जी !

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  12. दुखती रग पर हाथ रख दिया...माँ सहेली जैसी है..हमेशा चिढाती रहती है कि दो बेटो की माँ सुनो......मेरे पास दिल का हाल बाँटने के लिए दो दो बेटियाँ ... आजकल बेटे के पास हैं लेकिन दिल का हाल हम दोनों बहनों से बाँटने के लिए ऑनलाइन आने की बाट जोहती रहती हैं...

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  13. आप ने अक्षरश:सच कहा है ।मेरी भी बेटी तो नहीं हैं पर अपनी मां के साथ अपनी बातों को सोचती हूं तो अब समझ पाती हूं कि साधारणत: चुप रहने वाली मेरी मां मुझसे इतनी बातें कैसे कर जाती थीं ।अब उनके देहान्त के बाद तो ये स्थिति और भी खलती है....अब तो सोचती हूं कि बहुओं को मुझसे इतना दुलार मिल जाये कि उन्हें ससुराल न लग कर अपना मायका ही लगे शायद तब बेटी के लिये तरसे मेरे मन को भी बिटिया मिल जाये ...दुआ कीजियेगा .....आभार !

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  14. अब तो मुझे भी लगने लगा है कि बेटियां पापा'ज डॉटर होतीं हैं. यह मैंने अपने घर में देखा और पिता बनने के बाद इसका अनुभव कर रहा हूँ.
    हमारे संस्कार ऐसे ही हैं कि हम अभी भी अवचेतन में बेटियों को 'पराया धन' मानते आ रहे हैं.
    और बेटियां विवाह के बाद अपने मायके से बहुत जुड़ी रहतीं हैं. आजकल तो ससुराल को लेकर उनका मन अधिकांशतः पहले से ही कलुषित कर दिया जाता है या हो जाता है. ऐसे में सास-बहु के वात्सल्यपूर्ण सम्बन्ध दुर्लभ होते जा रहे हैं.

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  15. माँ- बेटी का रिस्ता होता ही कुछ इसी तरह का. बहुत ही भावुक करती हुई एक सशक्त एवं सुन्दर प्रस्तुति.

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  16. मुझे लगता है की हर परिवार में एक पुत्री का होना बहुत ही जरुरी है क्योंकि वो एक संतुलन पैदा करती है. पुत्री के बिना घर भूतों का अड्डा होता है ये बात मुझे तब समझ आई जब मेरे घर एक पुत्री का जन्म हुआ. वो माँ बाप निश्चित ही अभागे हैं जिनके घर बिटिया नहीं होती.

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  17. अनुभूतियों को सक्षम स्वर दिया है आपने|धन्यवाद|

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  18. कोई तो गम है जिंदगी जीने के बहाने की तरह.

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  19. अजित जी मेरे कोई बहिन नही, लेकिन मेरी मां अपने दिल की सभी बाते मुझ से बचपन से ही करती थी,सुख दुख सब बाते... फ़िर बिटिया की जरुरत ही नही पडी होगी उन्हे, बहुं आई तो वो उन के पास रह ही नही पाई, जब कि उन कि दिली इच्छा थी कि बहूं से मन की हर बात बांटे गी, भाई की बहु आई तो वो बेटी नही बन पाई, ओर मां एक दिन चल बसी...

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  20. अजित जी,
    यह बात मैने भी काफी सुनी है.....कला (पेंटिंग..कढाई..क्रोशिया ) में मेरी अभिरूचि देख,अक्सर लोग कह देते हैं..."तुम्हारे घर में एक बेटी होनी चाहिए थी"
    जब कई लोग एक जगह इकट्ठे होते हैं...तो जितनी बातें...आपने पोस्ट में लिखी हैं, अक्सर इन सबकी चर्चा होती है...और मैं भी सर झुका कर हामी भर देती हूँ...बहस में नहीं पड़ती. पर यहाँ लिख रही हूँ.

    मैने अभी तक (आगे का नहीं पता )..ऐसा कुछ महसूस नहीं किया....शायद इसलिए कि हमें पता ही नहीं...बेटियों की माँ होना क्या होता है?... और एक चीज़ मैने देखी है..जिन सहेलियों के एक बेटा और एक बेटी है...वे लोग अक्सर बेटी से ही ज्यादा बातें करती हैं..बेटे से कम. पर मेरे पास तो चोइस ही नहीं थी..सो बेटो से ही करती रही. वैसे बेटो के साथ गॉसिप भले ही ना होती हो..बातें बहुत होती हैं.गॉसिप के लिए सहेलियाँ...बहनें तो है ही.

    हाँ, बेटियाँ घर की रौनक हैं...इसमें कोई दो मत नहीं...मन की बातें समझने -बांटने वाली बात अब तक तो महसूस ना हुई...और जैसा कि आपने लिखा है, इसलिए यदि आपके बेटी नहीं है तो मानिए आपके जीवन में आनन्‍द की वर्षा शायद कम हो ..अब तक ये अहसास नहीं हुआ...ईश्वर करे आगे भी ना हो.

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  21. बेटियां मां का सुकून होती हैं, पिता के दिल का एक नाज़ुक कोना ।
    सच घर में एक बेटी का होना बहुत ज़रूरी है ।

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  22. @विचार शून्य जी
    आपका ये कथन "वो माँ बाप निश्चित ही अभागे हैं जिनके घर बिटिया नहीं होती." कुछ ज्यादा तल्ख़ हो गया.

    भविष्य का पता नहीं...इसलिए दावा नहीं कर सकती (शायद लोग बडबोलापन कहें ) पर मेरी भी दो बेटियाँ हैं जो कहीं और बड़ी हो रही हैं...बाद में उनके दो अपने घर हो जाएंगे..
    आमीन :)

    बहू-बेटी के रिश्ते पर मैने भी कुछ गहरी नज़र रखी है...और एक पोस्ट लिखी थी..शायद आप पढना चाहें
    बहू और बेटी के बीच का घटता -बढ़ता फासला.
    http://rashmiravija.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html

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  23. रश्मि रविजा जी, मैंने यह अन्‍तर अनुभव ज्‍यादा नहीं किया था, लेकिन मेरी मित्र ने जो कहा वो वाकयी मुझे सोचने पर मजबूर कर गया। अभी आपके बेटे छोटे हैं लेकिन बड़े हो जाने दीजिए। मेरी चाहना तो यही है कि आपको खूब बोलने वाली बहु मिले। लेकिन अक्‍सर ऐसा होता नहीं है, अपने आसपास तो यही देख रही हूँ। एक अन्‍तर बहु और बेटी का बताती हूँ कि आप बेटी से कैसी भी मजाक कर लीजिए, उसके पति के बारे में, ससुराल के बारे में वो हँस देगी लेकिन बहु से भूलकर भी उसके पीहर की बात की तो समझिए शाम बेकार हो गयी।

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  24. डॉ अमर कुमार जी, कैफी आजमी की वो नज्‍म लिखे, पढ़ने का मन हो आया है।

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  25. वन्‍दना जी, अजी कभी अपने मन की बात भी लिख दिया करें, बस एक जैसे शब्‍दों को हमेशा ही कट-पेस्‍ट कर देती हैं। हम आपको कैसे जान पाएंगे?

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  26. एक बिटिया यहां http://akaltara.blogspot.com/2010/10/blog-post.html पर भी है.

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  27. बेटियां हैं बाग की शीतल पवन.
    या की तपती घाम में छाया सघन
    [श्री कृष्णचन्द्र गोस्वामी (विभास)

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  28. .@ ajit gupta ji

    1975 में एक सड़क दुर्घटना में क़ैफ़ी साहब की बाँह की हड्डी टूट गयी थी, वह लखनऊ मेडिकल कॉलेज़ में एडमिट थे । मैं हाउस-ज़ॉब में था । शबाना भी एक दिन के लिये आयीं थीं, तब मैंनें जाना कि रेशमी ज़िल्द ( चमड़ी ) क्या होती है, अपने बेतक़ल्लुफ़ी की वज़ह से जूनियर डॉक्टर्स में बड़े लोकप्रिय हो चले थे कैफ़ी साहब । तब उन्हीं दिनों यह सुना था, IPTA के सिलसिले में 1991 में जब उनसे दुबारा मिलने का इत्तेफ़ाक हुआ, तो इस नज़्म की याद दिलायी । वह अपने फ़ालिज़-ग्रस्त चेहरे की ज़ानिब इशारा कर हँस कर टाल गये । ठीक से सँजो नहीं पा रहा, पर लाइनें कुछ यूँ थीं.....हो सकता है कि लाइनें इधर उधर भी हो गयीं हों


    आँख जो सपना सँजोए, वो अरमान हैं बेटियाँ,
    याद रखना इस जहाँ की शान हैं बेटियाँ ।
    आसमानों में ये उडें, जमीं पे दुश्मनों से लडें,
    बेखौफ हो कर फर्ज पे, कुर्बान हैं बेटियाँ ।
    माँ बाप को जो तंज न करे, दर्द देना न जाने,
    अपने ही घर में आपकी, मेहमान हैं बेटियाँ ।
    मुरझा कर भी उफ न करे, वो गुलदान हैं बेटियाँ ।
    नाजुक कन्धों पर भी उठा ले, खिलखिलाते हुये
    कितनी नाजुक, कितनी सुन्दर, कितनी प्यारी
    आप ही के ख्वाबों की, निगेहबान हैं बेटियाँ ।
    माँ के कोख में क्यों कत्ल करते लोग इन्हें,
    ये खुदा है ये ही ईश्वर, ये रहमान हैं बेटियाँ ।
    थोडा पातीं ज्यादा देती, क़ैफ़ी ऎसी एहतराम हैं ये
    खुशी बाँटे फिर भी न जताये, एहसान हैं बेटियाँ

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  29. महिलाओं के जीवन में बहुत सी ऐसी बातें भी होती हैं जो वो सिर्फ लड़कियों /महिलाओं से ही कह सुन सकती हैं ...ऐसे में बेटिओं का साथ बहुत सुकून देता है ...मैं इस सुकून को अक्सर महसूस करती हूँ :)

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  30. bet i to aalok hai srijan ki vachika hai,namrata hai ,shikshika hai, vah to
    anter se mukt hai ,bhed karna ,uski mahatta ko kam karna hai.sunder kathy
    aabhar ji .

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  31. सशक्त भावों को सुन्दरता और सहजता बयां किया आपने...... बेटी हूँ माँ से दूर भी हूँ ....एक एक शब्द अपने ही मन की आवाज़ लग रहा है...... जो माँ को लगता वैसा ही बेटियां भी महसूस करती हैं......

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  32. अजित जी

    अभी दो दिन पहले ही मम्मी और पापा १५ दिन मेरे साथ रह कर गए उनके जाने के बाद बस अचानक से ही मन और आँखे भर आई बेटी ने पूछ क्यों रो रही हो मम्मी मैंने जवाब दिया मेरी मम्मी चली गई न इसलिए, तो कहने लगी की मै भी रोने लगूंगी अगर तुम रोओगी मैंने कहा तुम्हे क्यों रोना आएगा तुम्हारी मम्मी तो तुम्हारे पास है तो बोली मत रोओ मम्मी मै बड़ी हो कर तुम्हारी मम्मी बन जाउंगी और तुम मेरी बेटी बन जाना फिर मै तुन्हें छोड़ कर नहीं जाउंगी | किसी बेटे से हम उम्मीद नहीं कर सकते ही वो इन भावनाओ या ये कहे की किसी भी भावनाओ के ऐसे समझ सकता है या माँ को इस तरह दिलाशा दे सकता है ये काम तो बेटिया ही कर सकती है | इस समय खुद मै इन्ही भावनाओ में बह रही हूँ | पूरी पोस्ट और टिप्पणिया सभी मन को छूने वाली लगी |

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  33. ाजित जी सही कहा। मेरी खुशी तो आपसे तीन गुना अधिक है। महसूस ही नही होता कि हम अकेले हैं। तीनो से बारी बारी बात हो जाती है। शुभकामनायें।

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  34. व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
    दिनेश पारीक



    दूरियां होने से यादे धुंधली हो जाती लेकिन कुछ यादें ऐसी होती है जो जिंदगी भर आप के साथ रहती है | यादे खट्टी मीठी सी उन्ही यादो के झरोखों से आप सब के लिए एक कविता लायी हूँ | जो कि मेरी नहीं अश्वनी दादा कि है उनकी ही इजाजत से आप सब के सामने रख रही हूँ |
    काश कभी ऐसा हो जाए ,
    दुनिया में बस हम और तुम हो ,
    सारा जग खो जाए ,

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  35. व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
    दिनेश पारीक



    दूरियां होने से यादे धुंधली हो जाती लेकिन कुछ यादें ऐसी होती है जो जिंदगी भर आप के साथ रहती है | यादे खट्टी मीठी सी उन्ही यादो के झरोखों से आप सब के लिए एक कविता लायी हूँ | जो कि मेरी नहीं अश्वनी दादा कि है उनकी ही इजाजत से आप सब के सामने रख रही हूँ |
    काश कभी ऐसा हो जाए ,
    दुनिया में बस हम और तुम हो ,
    सारा जग खो जाए ,

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  36. बहुत सच कहा है..मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता कि अगर मेरे बेटी नहीं होती तो क्या करता... ज़िंदगी कितनी उदास होती. बेटी ही माता पिता के सबसे करीब होती है और उसका प्यार निस्वार्थ होता है. जब तक सुबह शाम उससे फोन पर बात नहीं कर लेते दिल को सुकून नहीं मिलता.

    पिछले दो सप्ताह बेटी आयी हुई थी और इस वजह से ब्लॉग जगत में जाने का समय ही नहीं मिलता था. ज़िंदगी सिर्फ़ बेटी तक ही सिमट कर रह गयी थी. आपका आलेख एक बेटी के माता पिता के दिल की आवाज़ है. आभार !

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  37. बेटियां मां के बे‍हद करीब होती हैं, आपने बहुत ही अच्‍छा लिखा है .. इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  38. डॉ अमर कुमार ने अपनी पहली टिप्पणी में मेरे मन की बात कह दी है.उसे मेरी भी टिप्पणी मार लिया जाये.

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  39. अजित जी ,बहुत बढिया लगी आपकी ये पोस्ट | इतनी टिपण्णीयां देख कर जी खुश हुआ लेकिन एक कसक रहा गयी की वो कौनसी बात है जिसके चलते आज भी बेटी की चाहत समाज में नहीं है मेरे विचार से तो दो ही कारण है पहला उसकी सुरक्षा दूसरा दहेज का दानव | अगर इस समाज में ये दो बुराईया हटा दी जाए तो बेटियों के द्वारा ये जग जगमगा उठे |मै खुशकिस्मत हूँ की मेरी एक ही सन्तान है वो भी बिटिया के रूप में |

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  40. डॉ अमर कुमार जी प्रस्तुत…।
    कैफी आजमी की वो नज्‍म ही हमारी प्रतिक्रिया समझी जाय।

    कृतज्ञ हूँ बेटियों को सम्मान देने के लिये!!

    >
    >

    सुज्ञ: भगवान रिश्वत लेते है?

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  41. अनुभूतियों का सम्वेदन्शील चित्रण


    कोमल भावों के लिए………
    निरामिष: सामिष : माँस हिंसा का मूल, महाहिंसा का कारण

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  42. अजित जी -बिटिया माँ की एक अच्छी दोस्त होती है उसके साथ मन मिला के उसके बहुत से दर्द राज प्यार को बाँट अपना एक अद्भुत रिश्ता कायम कर लेती है दर्द है तो एक ही न जाने क्यों इसे अब भी हासिये पर रखा जा रहा मुख्य कारन दहेज़ और बेटियों की सुरक्षा है शायद ??
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

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  43. अच्छा ब्लॉग अच्छी पोस्ट.माना कि बेटियाँ माँ बाप के बहुत करीब होती है और जहाँ सिर्फ बेटे होते है उन परीवारों में अक्सर बेटियों की कमी महसूस की जाती है.लेकिन अब इतना भी नही कि बेटे वाले बेबस या अभागे होते है या बेटे वालों का घर भूतों का डेरा होता है.ये थोडा ज्यादा ही हो गया.रश्मि जी की दूसरी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी.

    बेटों में भी संवेदनशीलता उतनी ही होती है लेकिन उन्हें अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त करने से रोका जाता है और इसकी शुरुआत बचपन में ही हो जाती है बेटा यदि रोना चाहे तो उसे क्या कहकर रोका जाता है बताने की जरुरत नही.अब इस पर ज्यादा बात करने के बजाए यहाँ टिप्पणी में आए एक उदाहरण को लेकर (क्षमा सहित) अपनी बात रखना चाहूँगा.
    बेटी ने माँ की आँखों में आँसू देखकर कारण पूछा,माँ ने बताया और बेटी ने जो कुछ कहा उसे सुनकर कोई भी माँ अभिभूत होगी.मेरा भी मानना है कि बेटियाँ ऐसी ही होती है.
    लेकिन अगर इसी सिचुएशन में बेटा होता तो क्या होता ?दो सम्भावनाएँ हो सकती है (जितना मैं समझता हूँ और अक्सर देखने को मिलता भी है)-
    नं 1-बेटा माँ के पास आता है और रोने का कारण पूछता है माँ टाल देती है बेटा जिद करता है और इस बार माँ बता देती है.बेटे का जवाब होता है आप रोइये नहीं नाना नानी को फिर से बुला लीजिए मैं उन्हें कमरे में बंद कर दूँगा.
    नं 2-ये मुझे सच के थोडी ज्यादा करीब लगती है.माँ को रोते देख बेटा सीधे सवाल करता है मम्मी आप रो क्यों रही है आपको किसने मारा?माँ थोडा मुस्कुराती है मगर जवाब नहीं देती.पर बेटे की फिर वही जिद मम्मी बताओ आपको किसने मारा मैं बडा होकर उसे बंदूक से मारूँगा.इस बार माँ की हँसी छूट जाती है लेकिन रोने का कारण वो अभी भी नहीं बताती और हँसते हुए 'किसीने नही' कहकर टाल देती है.

    तो दिलासा तो बेटे ने भी अपने तरीके से दिया और वह भी माँ के प्रति संवेदनशील है बस थोडे शब्द बदल गये हैं लेकिन माँ की भी थोडी प्रतिक्रीया बदल गई है.शायद उसे लगता नहीं है कि बेटा उतनी गहराई से बात को समझेगा.

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  44. माफ कीजिएगा टिप्पणी ज्यादा ही लंबी हो गई.एक प्रोफाइल से आपके ब्लॉग का पता मिला.इस पोस्ट पर कहे बिना रहा नहीं गया.

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  45. । इसलिए यदि आपके बेटी नहीं है तो मानिए आपके जीवन में आनन्‍द की वर्षा शायद कम हो और आप भी किसी माँ को बेटी से बात करते देख एक हूक सी अपने मन के अन्‍दर महसूस करते हों। आप इस बारे में क्‍या सोचते हैं? मन की गहराइयों तक बेटी की पहुंच होती है या बेटे की भी होती है?


    मन तक तो बेटियाँ ही पहुंचती हैं ...हो सकता है की आज किसी को बेटी की कमी न खलती हो पर जो बात एक माँ अपनी बेटी के साथ कर सकती है वो घर के किसी अन्य सदस्य के साथ नहीं ...मैं आपकी हर बात से सहमत हूँ ....


    " my son is my son till he gets a wife , but my daughter is my daughter all her life ...

    from A father's diary .

    एक बेटी की कमी बेटों की शादी के बाद महसूस होती है ...वैसे भी बेटे बहुत कम ऐसे होते हैं जो आपकी हर छोटी बड़ी बात पर ध्यान दें .. संक्षेप में बात सुनी और खत्म ...

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  46. हमारे तो बेटे ही हैं जी। और हम अपनी मां से कुछ ज़्यादा ही जुड़े रहे। पिता से शायद उस तुलना में कम।

    बाक़ी बेटी की कमी बहू में पूरी कर लेंगे।

    हमारी बीवी के पास ओप्शन नहीं है ... सो देखता हूं दिन भर उन्हीं से खुसुर-पुसुर करते रहती हैं।

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  47. वहा वहा क्या कहे आपके हर शब्द के बारे में जितनी आपकी तारीफ की जाये उतनी कम होगी
    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अपने अपना कीमती वक़्त मेरे लिए निकला इस के लिए आपको बहुत बहुत धन्वाद देना चाहुगा में आपको
    बस शिकायत है तो १ की आप अभी तक मेरे ब्लॉग में सम्लित नहीं हुए और नहीं आपका मुझे सहयोग प्राप्त हुआ है जिसका मैं हक दर था
    अब मैं आशा करता हु की आगे मुझे आप शिकायत का मोका नहीं देगे
    आपका मित्र दिनेश पारीक

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  48. शायद यह सही नहीं है। यह मां और बेटे पर निर्भर करता है।

    हमारा एक बेटा है कोई बेटी नहीं - विदेश में रहता है। कम से कम सप्ताह में एक बार मेरी पत्नी और एक बार वह स्वयं फोन करता है। मुझे तो अक्सर लगता है कि उनकी बातें समाप्त ही नहीं होती।

    हांलाकि मेरी उससे कम बात होती है। हम केवल ईमेल करते हैं।

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  49. यह विभान-प्रसूत निर्णय अपनी बीती व्यक्त करने तक सही हो सकता है पर सार्वभौम नहीं, बेटों की तरफ से भी ऐसी बहुत सी प्रीतिकर बातें हैं, और संभव है वे भी कहीं - किन्हीं प्रसंगों में अपेक्षया श्रेष्ठता का दावा भी करती हों...! ...सादर !!

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  50. * विभाजन-प्रसूत

    क्षमा-सहित..

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  51. iss angle sei to kabhi socha hi nahi ,ye sach hei jitna freely man ki har bat beti sei ki ja sakti hei
    kisi aur sei nahi.Vo aapko yah bhi samja deti hei ki aap sahi soch rahei ya galat,aur aapko bura bhi nahi lagta.khas bat yei bhi hei ki jab tak har bat beti sei nahi ho chain bhi nahi padta.

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  52. बहुत सच्ची बात कही आपने। बेतियों से भावनात्मक जुड़ाव कुछ ज्यादा ही हो जाता है। न सिर्फ़ माँ का बल्कि पिता का भी। अपने अनुभव से बता रहा हूँ...।

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  53. इससे जुड़ा एक रोचक पहलू यह भी है। बेटी बनाम बहू और बेटा बनाम दामाद का विष्लेषण करती यह पोस्ट रचना त्रिपाठी की है।
    http://tootifooti.blogspot.com/2009/07/blog-post_19.html

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