कल ज्वैलर की दुकान पर खड़ी थी, छोटा-मोटा कुछ
खरीदना था। मुझे जब कुछ खरीदना होता है तब मैं अपनी आवश्यकता देखती हूँ, भाव नहीं।
मुझे लगता है कि भाव देखकर कुछ खरीदा ही नहीं जा सकता है। अपना सामान खरीदते हुए
ऐसे ही सोने के आज के भाव पर बात आ गयी, क्योंकि सोने के भाव रोज ही घटते-बढ़ते
रहते हैं। सेल्स-गर्ल ने एक मजेदार बात बतायी कि जब सोना सस्ता होता है तब हमारे
यहाँ ग्राहकी कम होती है लेकिन जब सोना महंगा होता है तब ग्राहकी बढ़ जाती है।
कारण है कि लोग सोचते हैं कि आज सस्ता हुआ है तो अभी और सस्ता होगा, इसलिये रूक
जाओ लेकिन जब महंगा होने लगता है तब चिन्ता हो जाती है कि खरीद लो नहीं तो और महंगा
हो जाएगा। एक हम जैसे लोग हैं कि ना सस्ता
देखते हैं और ना ही महंगा देखते हैं बस अपने मन की जरूरत देखते हैं। जब मन किया तब
खरीद लो, दुनिया के भाव तो चढ़ते-उतरते ही रहते हैं लेकिन मन के भाव स्थिर रहने
चाहिये। आज मन कर रहा है तो खरीद लो, मन की सुनने में ही सार है। कई बार लोग सेल
में चीजे खऱीदते हैं और सस्ती के चक्कर में ना जाने कितनी बेकार की चीजें खरीद
लाते हैं। मेरा मन तो हमेशा यही कहता है कि जब जरूरत हो और जितनी जरूरत हो उतना ही
खऱीदो, ना भाव की चिन्ता करो और ना मुहुर्त की। भाव की चिन्ता करने पर हम कभी भी
अपने मन को खुश नहीं रख पाते।
दुनिया पाई-पाई का हिसाब रखने से चलती है और मैं
मन की मौज का हिसाब रखना चाहती हूँ। जो लोग भी पाई-पाई का हिसाब रखते हैं वे अक्सर
महंगा ही खऱीदते हैं, जैसे मुझे सेल्स-गर्ल ने बताया कि हमारे यहाँ हर आदमी महंगे
के डर से महंगे भाव में ही खऱीदता है। एक पुरानी बात याद आ गयी, जब बच्चे पढ़ ही
रहे थे तब एक विवाह समारोह में जाने के लिये बिटिया को हवाई जहाज से जाना आवश्यक
था क्योंकि उसकी परीक्षा थी। अब या तो परीक्षा ही दो या फिर विवाह में ही जाओ, लेकिन
हवाई यात्रा से दोनों सम्भव हो रहा था। मैंने पतिदेव को समझाया कि अभी समय की मांग
है कि हवाईजहाज का टिकट लिया जाए, क्योंकि यह समय लौटकर नहीं आएगा। आज इसे हम टिकट
दिला रहे हैं और कल इसे हमारी जरूरत नहीं होगी। लेकिन यदि हमने आज नहीं दिलायी तो
इसके मन की कसक हम ताजिन्दगी नहीं मिटा सकेंगे। इसलिये पैसे को मत देखो, केवल
जरूरत और मन को देखो। लेकिन इस देश में लोग मन को मारे बैठे हैं, केवल पैसा ही
उनकी प्रमुखता में है। प्याज के भाव बढ़ गये, पेट्रोल के भाव बढ़ गये तो उनका
सबकुछ लुट गया, महिने में शायद 100-200 रू. अन्तर आया होगा लेकिन हमने ऐसा शोर
मचाया कि ना जाने क्या हो गया! हमारा मन सबके सामने खुलकर बाहर आ गया कि हम केवल
पैसे से ही संचालित होते हैं और फिर इस बात का जमकर फायदा उठाया गया। पैसा-पैसा
कर-करके हमने खुद को पैसे का दास बना लिया। चारों तरफ एक ही बात की पैसा कैसे
बटोरा जाए, लोगों ने लाखों-करोड़ों बटोरने शुरू कर दिये और सस्ते-महंगे के चक्कर
में खर्च भी नहीं कर पाए। आज किसी भी वरिष्ठ नागरिक से पूछ लीजिए, वह यही कहेगा कि
पैसा बहुत है, खर्च ही नहीं होता, यही छोड़कर जाना होगा। लेकिन पैसा एकत्र करने का
मोह तब भी समाप्त नहीं होता। हमें रोजमर्रा की जरूरतों के लिये भी रोज ही संघर्ष
करना पड़ता है, घर में समझाना पड़ता है कि मन की जरूरतें पूरी कर लो नहीं तो मन मर
जाएगा और फिर हम भी मर जाएंगे। लेकिन हम पैसे को सहलाते रहते हैं और मन को मारते
रहते हैं। ज्वैलर से लेकर आलू-प्याज तक वाला व्यापारी हमारे मन को जान चुका है,
राजनैतिक दल जान चुके हैं कि हम केवल पैसे से ही संचालित होते हैं। बस तूफान खड़ा
होता है और राजनीति बदल जाती है। सदियों से हमें चन्द चांदी के सिक्कों से खऱीदा
गया है और हम पर राज किया है। हमने पैसे के लिये घर-परिवार सबको छोड़ दिया। हमारे
सामने हरा नोट लहरा दिया जाता है और हमारा मन डोल जाता है। सारी दुनिया कहती है कि
भारतीयों को गुलाम बनाना बहुत सरल है, बस उन्हें पैसा दिखाओ, वे बिक जाएंगे।
पाई-पाई बचाते हैं और रत्ती-रत्ती मन को मारते हैं, सस्ता ढूंढते हैं और महंगे में
सौदा खऱीदते हैं, यही हमारी नियति बनकर रह गयी है। कभी पैसे से इतर मन के भाव को देखना
सीख लो, दुनिया अपनी सी लगेगी। लोग कहते हैं कि मोदी अच्छा कर रहा है लेकिन हमारी
जमीन के भाव सस्ते हो गये हैं इसलिये मोदी के हटाना जरूरी है। हम यदि रिश्वत नहीं
लेंगे तो हमारा रूआब कम हो जाएगा, इसलिये मोदी को हटाना जरूरी है, हम बिल काटकर
देंगे तो टेक्स देना पड़ेगा, इसलिये मोदी को हटाना जरूरी है। न जाने कितने तर्क
हैं जो हमने पैसे के कारण मोदी को हटाने के लिये गढ़ लिये हैं। हमारे भ्रष्टाचार
पर आंच नहीं आए तो मोदी अच्छा है, हमारे सारे काम बेईमानी से हों लेकिन दुनिया
ईमानदारी से चले तो मोदी अच्छा है, मुझे एक पैसा भी टेक्स में नहीं देना पड़े और
देश अमेरिका जैसा वैभव युक्त बन जाए तो मोदी अच्छा है। भारतवासी पैसे के दास हैं,
भारतवासी पैसे के लिये संतान का सौदा भी कर लेते हैं, भारतवासी आलू-प्याज के कारण
सत्ता बदल देते हैं, ऐसे कितने ही सत्य दुनिया जानती है और व्यापार करती है। कब
भाव बढ़ाने हैं और कब घटाने हैं, व्यापार जगत का व्यक्ति जानता है। हम पैसे को दिल
में बसाकर रखते हैं और मन को मारते रहते हैं, यही पैसा वे चुपके से हमसे निकलवा
लेते हैं और हमारा मन भी मार देते हैं और पैसा भी लूट लेते हैं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-01-2019) को "क्या मुसीबत है" (चर्चा अंक-3220) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/01/2019 की बुलेटिन, " प्रत्यक्ष गवाह - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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