यदि मैं आप से पूछूं कि जिन्दगी के किस कार्य में
सबसे बड़ा कष्ट है? तो आप दुनिया जहान का चक्कर कटा लेंगे अपने दीमाग को लेकिन यदि
यही प्रश्न में किसी महिला से पूछूं तो झट से उत्तर दे देगी कि माँ बनने में ही
सबसे बड़ा कष्ट है। अब यदि मैं पूछूं कि सबसे बड़ा सुख क्या है? तब भी वही बात
होगी कि पुरुष का ध्यान कई सुखों की तरफ जाएगा लेकिन महिला खटाक से कहेगी कि माँ
बनना ही सबसे बड़ा सुख है। जिस क्रिया में सबसे बड़ा कष्ट है उसी से होने वाली
प्राप्ति में सबसे बड़ा सुख है। लेकिन हम यह बात भूलते जा रहे हैं, हमने इस सत्य
को सदियों से भुलाना शुरू कर दिया था। जब भी हम पर कष्ट आया हमने सरल मार्ग चुन
लिया, कष्ट से समझौता कर लिया। सदियों से देश पर संकट आते रहे हैं, लेकिन हमने
संघर्ष के स्थान पर सुख का मार्ग चुन लिया। कभी हम बिना लड़े ही गुलाम बन गये, कभी
हमने अपने धर्म को ही बेच दिया, कभी हमने अपनी बेटियों के बदले सुख का सौदा कर
लिया। वर्तमान में नयी पीढ़ी ने देश ही छोड़ दिया। देश में कष्ट ही कष्ट हैं, यह
कहकर दूसरे देश में शरण ले ली। जब हमने मातृत्व जैसा कष्ट ही नहीं उठाया तब हम
मातृत्व का सुख कैसे पा सकेंगे? हम वास्तविक सुख से ही अनभिज्ञ हो गये। क्योंकि
जितना कष्ट उठाओंगे उसके बाद ही जो सुख मिलेगा वह अमृत जैसा लगेगा।
समाज ने हमें एक अनुशासन में बांधा लेकिन हमने ना
तो उस कष्ट को सहा और ना ही उसमें परिवर्तन के लिये संघर्ष किया बस पलायन कर लिया।
सामूहिक परिवारों में अनेक कष्ट थे तो हमने सामूहिक परिवार तोड़ दिये और उस सुख से
वंचित हो गये। फिर परिवारों में भी कष्ट लगने लगा तो परिवार तोड़ दिये, पति-पत्नी
में कष्ट हुआ तो विवाह संस्था को तोड़ दिया। मातृत्व और पितृत्व की जिम्मेदारी से
कष्ट हुआ तो लिंग भेद को तोड़ दिया। हम कष्टों से
भागते रहे लेकिन कष्ट तो प्रकृति का उपहार है, कष्ट हमारे साथ लगे रहे। अब
यह स्थिति हो गयी है कि व्यक्ति अकेला खड़ा है, ना उसके पास देश बचा है, ना उसके
पास समाज बचा है और ना उसके पास परिवार बचा है। अब तो जीवनसाथी भी नहीं बचा और ना
बचे हैं बच्चे। चारों तरफ से संकटों में घिर गये हैं हम। कोई चिल्ला रहा है – देश बचाओ,
कोई चिल्ला रहा है - धर्म बचाओ, कोई चिल्ला रहा है - समाज बचाओ, कोई चिल्ला रहा है
- परिवार बचाओ। चारों तरफ चिल्ल पौ मची है लेकिन कोई भी महिला की तरह कष्ट को धारण
करने को तैयार नहीं। सृष्टि को रचने के लिये महिला कितना कष्ट सहती है, यह समझने
को भी कोई तैयार नहीं।
एक महिला संतान को जन्म देने के लिये कष्ट उठाती
है, आप कहेंगे कि हाँ नौ माह कष्ट उठाती है। मैं कहूँगी कि आप यहीं पर गलत हैं। एक
माँ जीवन देने के लिये लगभग 30 से 40 वर्ष लगातार कष्ट उठाती है। इस कष्ट के समय
वह अकेली खड़ी होती है। उसके साथ हमदर्दी भी नहीं होती अपितु अस्पर्श्य का दंश
उसके समक्ष खड़ा होता है। माँ बनने की प्रथम प्रक्रिया से वह जब गुजरती है तब उसे
जो कष्ट सहना पड़ता है, वह कष्ट शायद ही किसी पुरुष ने कभी झेला हो! हर माह इसी
कष्ट से लगातार 30-40 साल तक गुजरना पड़ता है तब जाकर वह सृजन करती है। सृजन का फल
जब शिशु रूप में उसकी गोद में आता है तब संसार का सबसे बड़ा सुख उसे प्राप्त होता
है और इस सुख को भी कोई भी पुरुष प्राप्त नहीं कर सकता।
इसलिये कष्ट तो जीवन का अनिवार्य अंग हैं, कष्ट से
होकर ही सुख निकलता है। हमारे देशवासियों को कष्ट से डर लगने लगा है। हमने आसान
रास्ते चुन लिये हैं। सत्ता के करीब रहने के आसान तरीके। इसके लिये मन के पोर-पोर
को मारना पड़े तो मार देंगे लेकिन कष्टों भरे जीवन को कभी अंगीकार नहीं करेंगे।
संघर्ष की ओर बढ़े सारे ही कदम राजनीति की ओर मुड़ जाते हैं, बस सत्ता मिल जाए तो
सारे कष्ट दूर हो जाएं। महिला भी यही सोचने लगी है कि सृजन में बहुत कष्ट हैं,
नहीं अब नवीन सृजन नहीं। समाज भी नवीन चिंतन से भाग रहा है और देश भी नये कलेवर के
साथ खड़ा नहीं हो पा रहा है। सब कष्टों से डर गये हैं। मेरे ऊपर भी अभी सात दिन
पहले एक डर हावी हुआ, दुनिया से कट गयी लेकिन फिर सुबह हुई और मैंने सोचा कि महिला
हूँ तो कष्टों से क्या डरना? कष्टों को धारण कर लो फिर सुख का कोई मार्ग निकल ही
जाएगा। चार साल पहले भी दुनिया ने मुझे ठोकर मारने का प्रयास किया था, मैंने भी
ठोकर मार दी। पहले भी मैं 25 सालों से लिख रही थी लेकिन जब दुनिया ने कष्ट दिया तब
मैंने अपने मन का, अपनी संवेदना का लिखना शुरू किया और मैं आप लोगों से जुड़ गयी।
अब जो सुख मुझे मिल रहा है, वह जीवन का सबसे हसीन सुख है। कष्ट आते हैं, मैं प्यार
से उन्हें अपनी झोली में भर लेती हूँ और निकल पड़ती हूँ नवीन सृजन की ओर, बस कष्ट
कब सुख में बदल जाते हैं, मुझे भी पता नहीं लगता। आप भी सच्चे कष्ट से रूबरू होने
की पहल कीजिये, आपको भी अपना देश मिलेगा, समाज मिलेगा, परिवार मिलेगा और जब अपना
मिलेगा तो सच्चा सुख मिलेगा। राजनीति की ओर देखना ही सरल मार्ग की तलाश है, सरल
मार्ग से कभी सृजन का सुख नहीं मिलता। उत्तिष्ठ भारत:।
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 05/01/2019 की बुलेटिन, " टाइगर पटौदी को ब्लॉग बुलेटिन का सलाम “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशिवम् मिश्राजी आभार।
ReplyDeleteओंकार जी आभार।
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