कल दस का दम सीरियल
देखा, सलमान खान इसे होस्ट कर रहे हैं। बड़ी निराशा
हुई सीरियल देखकर, सलमान की ऊर्जा जैसे छूमंतर हो गयी हो! नकली
हँसी, दबी सी आवाज, दण्ड के नीचे दबे
से लगे सलमान! लेकिन सलमान के परे इस सीरियल पर मेरी दृष्टि में बात करना बनता है।
सीरियल में पूछे गए प्रश्न, अनुमान पर आधारित हैं और यह अनुमान है भारतीय
जनता की मानसिकता का। छोटे-छोटे प्रश्न हैं, जो हमारी आम
जिन्दगी से ताल्लुक रखते हैं लेकिन क्या हम इनका अनुमान लगा पाते हैं? हम भारत को समझने का दम भरते हैं लेकिन इन प्रश्नों के आगे लड़खड़ा
जाते हैं और जब सवाल के बाद जवाब आता है तो आश्चर्यचकित होना पड़ता है। तब लगता है
कि हम भारत को कितना समझ पाए हैं! प्रश्न की बानगी देखिये – कितने प्रतिशत भारतीय
जेवर गिरवी रखते हैं? भारत जैसे देश में जहाँ हर कहानी में साहूकार है
और जेवर गिरवी रखता आम नागरिक है, तब यही सोच हावी
होने लगती है कि यह प्रतिशत 70 से अधिक होगा। लेकिन उत्तर जब आया तब लगा कि यह
प्रतिशत तो 21 ही है। साहूकार और कामदार की कहानी जो रोज दोहरायी जा रही है, उस पर प्रश्न चिह्न लगना स्वाभाविक है।
हम मानते हैं कि
भारतीय पुरातनपंथी हैं और अक्सर यह कहते सुना जाता है कि एक लड़का और एक लड़की
दोस्त नहीं हो सकते। हमें लग रहा था कि उत्तर अधिक प्रतिशत लेकर आएगा लेकिन उत्तर
था – 25 प्रतिशत। ऐसे ही एक अन्य प्रश्न था – कितने लोगों को हिन्दी वर्णमाला पूरी
याद है? सोचा था कि यह प्रतिशत भी कम होगी लेकिन 60
प्रतिशत उत्तर था। उत्तर एक सर्वे के आधार पर थे और हो सकता है यह सर्वे भी चुनाव
जैसे ही हों! लेकिन मानसिकता की ओर संकेत तो करते ही हैं। सारे ही प्रश्नों को
देखकर लग रहा था कि हमारा अनुमान लगभग गलत है और यह अनुमान जो हमारे दिल-दीमाग पर
छाया हुआ है, उसका आधार फिल्में या साहित्य है। अब हिन्दी
भाषा की ही बात कर लें, देश में वातावरण ऐसा बनाया हुआ है कि हिन्दी भाषा की कोई कद्र ही नहीं है
लेकिन यहाँ सर्वे कह रहा है कि 60 प्रतिशत लोगों को वर्णमाला याद है! एक प्रश्न था
कि कितने प्रतिशत भारतीयों के घर में रोज मांसाहर
पकता है? अब उत्तर था 12 प्रतिशत। माहौल यह बनाया जा रहा
है कि सारा देश मांसाहारी हो गया है और प्रोटीन की कमी तो केवल मांसाहार ही पूरी
करता है इसलिये रोज मांसाहार करो और घर में भी पकाओ। सवाल देने वाली महिला मुस्लिम
थी और कह रही थी कि हमारे घर की लड़कियाँ मांसाहार नहीं करती, उसके मन में भी जिज्ञासा थी की भारत में कौन रोज खाता होगा! लेकिन
फिल्में देखें, विज्ञापन देखें, लगता
है कि भारतीयों का मुख्य भोजन मांसाहार ही है।
सीरियल कैसा बना है, मेरी चर्चा का विषय यह नहीं है, मैं तो इस बात पर
चर्चा करना चाह रही हूँ कि वह कौन सा भारत
है जिसे फिल्मों में और साहित्य में हमारे सामने परोसा जाता है? प्रश्नों के उत्तर से तो लग रहा था कि जिस भारत को हमपर थोपा जा रहा
है, हमारा भारत उससे अलग है! यही कारण है कि चुनावों में नतीजे हमारी सोच
से अलग आते हैं। कोई भी राजनैतिक और सामाजिक संगठन भारत की मानसिकता को समझ ही
नहीं पा रहे हैं बस फिल्म और साहित्य पढ़कर अनुमान लगाते हैं और वैसे ही व्यवहार
करते हैं। जबकि सच इससे परे हैं। मैं साहित्यकारों से हर बार कहती हूँ कि पढ़ने से
अधिक समाज के बीच जाकर साहित्य लिखो, जबकि वे चीख-चीखकर
यही दोहरा रहे हैं कि जितना पढ़ोंगे उतना
ही अच्छा लिखोंगे लेकिन मेरा मन इस बात को मानता नहीं और मैं उनसे विपरीत मत के
कारण अस्पर्श्य घोषित हो जाती हूं। साहित्य पढ़ने का केवल एक फायदा है कि हम विधा
की जानकारी पा लेते हैं बस। इसलिये साहित्य और फिल्मों से परे भारत को समझो, उसकी आत्मा में झांककर देखो, एक नया भारत दिखायी
देगा। घिसीपिटी बाते के बहकावे में मत आओ और भारत के बारे में अपनी राय मत बनाओ, बस खुले दिल से भारत को जानो। अपने पूर्वाग्रह से मुक्त होकर जीना सीखो, नया जीवन मिलेगा। दस का दम सीरियल में कितना दम है यह तो पता आगे
चलकर लगेगा लेकिन भारत की कहानी में बहुत दम है, यह
सिद्ध हो रहा है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन प्लास्टिक मुक्त समाज के संकल्प संग ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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