कहावत है – जैसा देव
वैसा पुजारी। काली माता का विभत्स रूप, तो पुजारी भी शराब
का चढ़ावा चढ़ाते हैं, बकरा काटते हैं। डाकू गिरोह में डाकू ही शामिल
होते हैं और साधु-संन्यासियों के झुण्ड में साधु-संन्यासी। डाकुओं का सरगना मन्दिर
में जाकर भजन नहीं गाता और साधु कभी डाका नहीं डालता। जिस दिन डाकू सरदार ने भजन गाना
शुरू कर दिया समझो उसके साथी डाकू उसका साथ छोड़ देंगे। जितने डाके उतना ही
सम्मान। कुछ लोगों ने बड़ा शोर मचा रखा है कि नेताजी ने सरकारी सम्पत्ति पर कब्जा
किया और जब न्यायालय ने खाली करने को कहा तो बंगले को ही लूटकर-तोड़कर चलते बने।
नेताजी ने गलत किया यह तुम कह रहे हो, लेकिन उनके
पुजारियों से पूछो कि उनके देव ने सही किया या गलत! नेताजी ने वही किया जिस
सिद्धान्त पर उनने अपने दल की नींव रखी थी। देव को हर पल सतर्क रहना पड़ता है, कहीं उसके पुजारी उसे गलत ना समझ लें! बंगले में लूट-खसोट कर सामान
ले लिया मतलब हम अपनी ताकत बनाए हुए हैं, हमारे पुजारियों
निश्चिंत रहो, तुम्हारा देव जैसा था वैसा ही है, वह तुम्हें निराश नहीं होने देगा! पुजारी खुश हैं कि हमारे देव वैसे
ही हैं और सत्ता में आने पर हमें ऐसे ही लूट का मौका देंगे। भेड़िये के अभी दांत
शेष हैं।
एक और हल्ला आये दिन
मचता है, वो मरा तो तुमने शोर मचाया लेकिन यह मरा तो तुम
खामोश रहे। जिसका मरेगा वही तो शोर मचाएगा, तुम्हारा मरा तो
तुम शोर मचाओ। उन्हें शोर मचाना आता है तो तुम भी सीखो नहीं तो पीछे रह जाओगे।
किसके जनाजे में कितने लोग गिनने से काम नहीं चलेगा, अपना
दायरा बढ़ाओ फिर तुम्हारे जनाजे में भी भीड़ उमड़ेगी। वे अपने लोगों को महान बना
देते हैं तो तुम भी महान बनाना सीखो, फिर देखो खेल। चमत्कारी
भगवान के मन्दिर के बारे में तो सुना ही होगा, छोटा सा मन्दिर
लेकिन चमत्कार के कारण भक्तों की लम्बी लाइन और दूसरी तरफ बड़ा विशाल मन्दिर और भक्त
मुठ्ठी भर। इसलिये अपने देव को भी और अपने पुजारी को भी महान बनाना पड़ता है जब
जाकर शोर मचता है। अपने व्यक्ति की रक्षा भी करनी पड़ती है और सुरक्षा के लिये कभी
कभार आक्रमण भी करना पड़ता है। तब जाकर देव के पुजारी जुटते हैं। देव अगर कुछ
उपहार ना दे, मन्नत पूरी ना करे तो उस देव को कौन पुजारी
पूजेगा! देव वही जो अपने पुजारियों की चाहत पर खऱा उतरे। हम बंगला लूटने की ताकत रखते
हैं, किसी को फांसी पर लटकाने का दम रखते हैं तो
हमारे पुजारी हमें छोड़कर कहीं नहीं जाते। इसलिये जैसा देव वैसा ही पुजारी होता
है। खाली-पीली शोर मत मचाओ, दम है तो कुछ करके दिखाओ। तुमने संन्यासियों का
दल बनाया है तो तुम्हारे पुजारी बात-बात में सच का रास्ता दिखाते हैं, तुम लाख अच्छा करो लेकिन पुजारी तो केवल वही चाहता है, बस उसी की बात मानो। हम तो कायल हो गये इन लुटेरों के, जो हर पल अपने पुजारियों का ध्यान रखते हैं, उन्हें निराश नहीं करते। इनके देव बड़े महलों में रहते हैं और इनके
पुजारी झोपड़े में, फिर भी पुजारी खुश हैं कि देखो हमारे देव कितने
बड़े मन्दिर में रहते हैं। भगवान का मन्दिर विशाल होना चाहिये, पुजारी इसमें ही खुश रहता है, आधुनिक देव यह
मनोविज्ञान जानते हैं, तभी तो बंगले की लूटपाट करते हैं और वाहवाही
पाते हैं। धन्य हो गए इनके पुजारी, ऐसे देवों को पाकर।
जब वे धन्य हो गये तो तुम क्यों हलकान हुए जाते हो!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-06-2018) को "हो जाता मजबूर" (चर्चा अंक-2992) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्रीजी और शिवम् मिश्रा जी।
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